होली पर गोकाष्ठ का दहन, पेड़ बचाकर संरक्षित कर रहे पर्यावरण

ग्वालियर,न.सं.। नगर निगम की लालटिपारा गोशाला बेसहारा जानवरों को आसरा देने के साथ पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। यहां मशीन से तैयार गोकाष्ठ का उपयोग हर रोज शहर के मुक्तिधामों में अंतिम संस्कार के लिए तो होता ही है, होलिका दहन के लिए लोग इन्हीं को ले जाते हैं। इस साल भी 30 टन गोकाष्ठ तैयार किए जा रहे है।
गोशाला का प्रबंधन संभाल रहे स्वामी ऋषभ देवानंद महाराज का दावा है कि केवल होलिका दहन में ही शहर में लगभग 500 पेड़ों को नष्ट कर जला दिया जाता था। गोकाष्ठ के उपयोग से इन पेड़ों को संजीवनी मिलेगी। गोशाला में करीब 7000 गोवंश हैं। इनसे हर रोज बड़ी मात्रा में गोबर निकलता है। इसके उपयोग के लिए समाजसेवी ममता कुशवाह ने गोकाष्ठ बनाने की मशीन लगाई। मशीन से 6 लोग हर रोज 5 से 10 क्विंटल गोकाष्ठ बनाते हैं। यह गोकाष्ठ शहर के मुक्तिधामों में अंतिम संस्कार के लिए नियमित उपयोग होने के साथ जरूरतमंदों को भी विक्रय किए जाते हैं।
ममता कुशवाह ने बताया कि प्रत्येक गोकाष्ठ का वजन दो किलो के करीब होता है। मशीन में गोबर को डाल दिया जाता है। इससे करीब 2 किलो वजनी दो फीट की लकड़ी निकलती है। सूखने के बाद लगभग 500 ग्राम पानी का वजन कम हो जाता है।
कई पेड़ों की बच जाती है जान
गोशाला की देखरेख करने वाले स्वामी ऋषभ देवानंद महाराज ने बताया कि अंतिम संस्कार के अलावा होलिका दहन में भी बड़ी संख्या में पेड़ों को नष्ट कर दिया जाता है, जबकि गोकाष्ठ इसका बड़ा विकल्प है। एक हजार क्विंटल गोकाष्ठ से करीब 500 पेड़ों की जान केवल होलिका दहन के दिन ही बच जाती है। लगातार प्रचार और समाजसेवियों के जुडऩे से अब अधिकांश लोग होलिका दहन में इसका ही उपयोग करते हैं। इस दिन बिक्री के लिए गोकाष्ठ कम पड़ जाते हैं।
कई राज्यों में जा चुकी हैं मशीनें
पिछले सात साल से गोकाष्ठ बनाने के काम में जुटीं ममता कुशवाह ने बताया कि उनके द्वारा बनाई गई मशीन कानपुर, जयपुर, मुंबई, सागर, कटनी, भिंड, मुरैना, सबलगढ़, रायसेन, दिल्ली में जा चुकी हैं। एक मशीन की कीमत 60 हजार रुपये है। मशीन चलाने में दिनभर में करीब 100 रुपये की बिजली की खपत होती है। एक किलो गोकाष्ठ की कीमत पांच रुपये है। हर साल होली पर करीब पांच लाख रुपये तक के गोकाष्ठ बिक जाते हैं।
होलिका दहन से पहले होगा प्रचार प्रसार
इस बार होलिका दहन से पहले गोकाष्ठ के लिए शहर के विभिन्न चौराहों पर बैनरों से प्रचार किया जाएगा। ताकि अधिक से अधिक लोग गौशाला में आकर गोकाष्ट से ही होलिका दहन करें।
इस बार पेड़ों की लकडिय़ों की बजाय गोबर से बने गोकाष्ट से किया जाएगा होलिका दहन
इस बार होलिका दहन पर वृक्षों की अनावश्यक कटाई रोकने और गौवंश के संरक्षण के लिए कस्बा में संचालित कामवन जीव सेवा समिति द्वारा अनूठी पहल शुरू की गई है। जिसके अंतर्गत होलिका दहन पेड़ों की लकडिय़ों की बजाय गोबर से निर्मित गौकाष्ट से करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। समिति की इस पहल से जहां पेड़ों की कटाई मे कमी आएगी। दूसरी ओर के गोबर से बनी इस लकड़ी से पर्यावरण प्रदूषण कम होगा और गौशालाओं को प्रत्यक्ष रूप से सहयोग भी प्राप्त होगा। गौ सेवक गुलाब चंद गुप्ता ने बताया कि समीपवर्ती क्षेत्रों में स्थापित जरखोड, खिटावटा धमसिंगा, गौशालाओं में बड़ी बड़ी मशीनों द्वारा बड़े पैमाने पर इन लकडिय़ों का निर्माण किया जा रहा है। यह गौकाष्ठ देखने में हल्की लेकिन अंदर से ठोस और इसमें छेद होने के कारण जलाने में भी मशक्कत नहीं करनी पड़ती है। सदस्य श्रीराम गर्ग ने बताया कि होलिका दहन, हवन और अंतिम संस्कार के लिए गौकाष्ठ समिति द्वारा आसानी से उपलब्ध करायी जाएगी। इस पहल की कामयाबी के प्रथम चरण में 20 क्विंटल के ऑर्डर प्राप्त हो चुके हैं। समिति के दो गौ उत्पाद केन्द्रों सब्जीमंडी स्थित श्रीराम गर्ग और पंचायती गोपालजी के पास गुलाब ईमित्र पर पंचगव्यों से निर्मित उत्पाद और गौकाष्ठ हमेशा उपलब्ध होगी। उन्होंने बताया इस प्रकार के आयोजन का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण और गोशाला को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराना भी है। उन्होंने बताया लोगों को भी इससे सीख लेनी चाहिए और पर्यावरण संरक्षण में अपनी भूमिका निभानी चाहिए।
