दबंगों ने बावड़ी में भरा मलबा, अब उसी जगह को बेचने की तैयारी

ग्वालियर,न.सं.। इंदौर के बेलेश्वर महादेव मंदिर की बावड़ी जैसी घटना ग्वालियर में कभी भी घट सकती है। दरअसल, ग्वालियर में ऐसे आधा दर्जन से भी अधिक प्राचीन व धार्मिक स्थल हैं, जहां लोग आस्था के आगे जान की परवाह तक नहीं करते हैं। ग्वालियर में भी इंदौर की तरह कभी भी इस तरह के हादसे की संभावना बनी हुई है। इतना ही नहीं कई ऐतिहासिक प्राचीन बावडिय़ां प्रशासन की अनदेखी के चलते अपना अस्तित्व खोती नजर आ रही है। एक जमाना था जब ये बावडिय़ां शहर के लोगों का मुख्य पेयजल स्त्रोत हुआ करती थी। मगर आज इन बावडिय़ों की सुध लेने वाला कोई नहीं हैं। उधर कुछ दंबग लोग को बावडिय़ों को बंद कर उनका अस्तित्व ही मिटा रहे है। इंदौर की घटना के बाद जिलाधीश अक्षय कुमार सिंह ने गूगल मीट के जरिए ग्वालियर शहर सहित पूरे जिले में खुले बोर, कुंए, बावड़ी व असुरक्षित जलाशयों का तीन दिन के भीतर सर्वे कराने व इनके समीप भारतीय दंड संहिता की धारा-133 व 144 का उल्लेख करते हुए बोर्ड भी प्रदर्शित कराने के निर्देश दिए थे। अधिकारियों ने दिखावे के लिए सर्वे को तो शुरु कर दिया है लेकिन तीन दिन बीत जाने के बाद भी कहीं भी कुंए व बावड़ी के आस-पास बोर्ड नजर नहीं आ रहे है। बता दें शहर में छोटे-बड़े कुएं,बावड़ी की संख्या 3044 हैं। इनमें कुछ पर अतिक्रमण तो कुछ में कचरा व पानी भरा हुआ है।
कुंए में भरा कचरा, बावड़ी के सिर्फ जीने ही दिख रहे
समाधिया कॉलोनी में बनी बावड़ी को मलबे से पाट दिया गया है। यहां पर अब सिर्फ बावड़ी के जीने ही दिख रहे है। वहीं पास में बने कुएं में कचरा भर दिया गया है। क्षेत्रीय लोगों ने बताया कि मदन कक्कड़ नाम के शख्स ने बावड़ी में मलबा डालवा बावड़ी को बंद करवा दिया है। जिसकी शिकायत नगर निगम अधिकारियों से की गई थी लेकिन राजनीतिक दबाव के चलते यहां कार्यवाही नहीं हो सकी। इस बावड़ी में भी इंदौर जैसा हादसा होने का खतरा बना हुआ है।
कचरे से अटी पड़ी सेना पति हनुमान मंदिर की बावड़ी
जिले में प्राचीन काल में बावडिय़ां अच्छा जल स्रोत थीं। इनसे बड़े क्षेत्र में जलापूर्ति होती, लेकिन जिले में यह बावडिय़ां जर्जर हो चुकी हैं। यही कारण है कि जती की लाइन स्थित सेनापति अनुमान मंदिर परिसर में बनी बावड़ी प्रशासन व पुरातत्व विभाग की बेरुखी के कारण यह इतिहास मिट्टी में तब्दील हो रहा है। ईंटें जर्जर होकर टूट रही हैं और चारों तरफ घास-फूंस व बड़े-बड़े पेड़ खड़े हैं। बावड़ी के अंदर गंदगी डाली जा रही है। धीरे-धीरे बावड़ी अपनी पहचान खोती जा रही है। इसके जीर्णोंद्धार को लेकर किसी ने कोई योजना नहीं बनाई। यदि जल्द ही इसके जीर्णोद्घार की तरफ ध्यान नहीं दिया गया तो वह दिन दूर नहीं जब इतिहास पूरी तरह से मिट्टी में मिल जाएगा। मंदिर के पुजारी मनोज पाराशर का कहना है कि इस बावड़ी का इतिहास 300 वर्ष पुराना है। उन्होंने बताया कि आठ वर्ष पूर्व तक बावड़ी में इतना पानी था कि हाथ से निकाल सकते थे, इसके अलावा क्षेत्र का जल स्तर पर बावड़ी से बेहतर रहता था। लेकिन आज बावड़ी खत्म होती जा रही है। उन्होंने यह भी बताया कि बावड़ी को संरक्षित करने के लिए कई बार अधिकारियों को पत्र भी लिखे गए, लेकिन आज दिन तक किसी भी विभाग की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई।
दस वर्ष से अधिकारियों ने नहीं दिया ध्यान
बिरला नगर लाइन नम्बर 1 में फक्कड़ बाबा आश्रम पर करीब 250 वर्ष पूरानी ज्ञान केन्द्र बावड़ी बनी हुई है। बावड़ी से आस-पास के क्षेत्र का जल स्तर बेहतर रहता था। लेकिन इतनी पुरानी बावड़ी पर किसी भी अधिकारी की नजर नहीं है।मंदिर के पुजारी ने बताया कि दस वर्ष पूर्व तक बावड़ी में पानी था और इसकी सफाई भी करवाई जाती थी, लेकिन अब बावड़ी पर किसी का ध्यान नहीं है। जबकि इसका समय रहते संरक्षण किया जाए तो गर्मी के मौसम में होने वाली पेयजल किल्लत से कुछ हद तक निजात मिल सकती है। राज्य सरकार ग्रामीण क्षेत्र के प्राचीन जल स्त्रोतों को सुधारने के लिए कई योजनाएं चला रही हैं, लेकिन शहर के प्राचीन जल स्त्रोतों के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं हो रहे हैं। ये जल स्त्रोत समय के साथ अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं।
कुए पर बनाया सामुदायिक भवन
बिरला नगर चन्दनपुरा स्थित सिंधिया पार्क के पास एक समुदायिक भवन बना हुआ है। लेकिन करीब पन्द्रह वर्ष पूर्व जब कुएं का पानी सूख गया तो उसका बिना भराव किए ही पटिए से पाट दिया गया। इतना कुएं के ऊपर ही एक सामुदायिक भवन का निर्माण भी किया गया है, जिसमें शादी-विवाह सहित अन्य कार्यक्रम होते हैं। लेकिन किसी को नहीं पता कि यह समुदायिक भवन कुएं के ऊपर बना हुआ है।
दरगाह में बनी असुरक्षित बावड़ी
साईं बाबा मंदिर रोड स्थित हजरत ख्वाजा सईदउद्दीन खानून रे.अ. राहे विलायत चिश्ती की दरगाह परिसर में वर्षों पुरानी बावड़ी बनी हुई है। स्थानीय लोगों का कहना है कि मान्यता है कि बावड़ी के पानी के उपयोग से बीमारियां दूर होती हैं। लेकिन सुरक्षा के लिहाज से बावड़ी सुरक्षित नहीं है, बावड़ी के ऊपर किसी भी प्रकार से जाली नहीं लगाई गई है। बावड़ी पर सिर्फ एक हरी चादर बिछा दी गई है, जिससे गंदगी न हो।
दादाजीधाम में लगाए बैरिकेड्स
दादाजीधाम मंदिर में मूर्ति के आगे ही बावडी का मुख्य द्वारा बना हुआ है। जहां संस्था के सदस्यों ने लोहे का जाल डाल दिया और बाहर की ओर दूसरे द्वार पर भी चैंबर बनाकर उसे पाट दिया है। जिला प्रशासन ने कार्रवाई करते हुए दादाजीधाम के सुभाष मार्केट की ओर से जाने वाले रास्ते व गजराराजा की ओर से आने वाले रास्ते पर बैरिकेड्स लगाकर बंद कर दिया है।
धीमी गति से चल रहा सर्वे
-सर्वे टीम ने भले ही सर्वे शुरु कर दिया हो, लेकिन यह सर्वे काफी धीमी गति से चल रहा है। अगर यही हाल रहा तो एक साल में भी सर्वे पूरा नहीं हो पाएगा।
-ग्वालियर में 47 बावडिय़ां है। इनमें से 10 में पानी है।
-वार्ड के 1,2,3,7 में ही सर्वे शुरु कर दिया गया है।
573-कुएं हैं जिनमें पानी भरा है। जबकि 10 बावड़ी में पानी है।
268 कुंए में कचरा भरा हुआ है। बावडिय़ों की बात करे तो 13 बावडिय़ों में कचरे के ढरे लगे हुए है।
321- कुएं बंद कर दिए गए
360 कुए सूख चुके है। 24 बावडिय़ा भी सूख चुकी है।
इनका कहना है
खुले बोर को सुरक्षित करने के लिए पहले से ही पीएचई अमला बोरिंग होने के बाद उनको बेलडिंग से बंद कर देता है। मैं भिंड व मुरैना के अधिकारियों को पत्र लिखकर खुले बोर को सुरक्षित करने के निर्देश दूंगा।
आरएलएस मौर्य
मुख्य अभियंता
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी
सर्वे का कार्य चल रहा है, जहां जहां बावडिय़ों को संरक्षित करने की जरुरत पड़ेगी उसे भी हम कराएंगे।
अक्षय कुमार सिंह
जिलाधीश
