समाजिक विषमताओं की उधेड़बुन है 'नाच्यौ बहुत गोपाल'

समाजिक विषमताओं की उधेड़बुन है नाच्यौ बहुत गोपाल
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यंग थिंकर्स फ़ोरम द्वारा पुस्तक परिचर्चा आयोजित

ग्वालियर। यंग थिंकर्स फ़ोरम के बुक रीडिंग क्लब द्वारा लॉक डाउन के समय ऑनलाइन पुस्तक परिचर्चा आयोजित की गई। परिचर्चा में बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के शोधार्थी शुभम चौहान ने प्रसिद्ध उपन्यासकार अमृतलाल नागर के शोधात्मक उपन्यास 'नाच्यौ बहुत गोपाल', एक्सीलेंस कालेज की छात्रा व राष्ट्रबोध की संस्थापक ऋतुल बसु ने स्वपन दासगुप्ता की हाल ही में आई पुस्तक अवेकनिंग भारत माता एवं सुकृति श्रीवास्तव ने जोसफ मर्फी द्वारा लिखी गई बेस्टसेलर पुस्तक 'अवचेतन मन की शक्तियां' पर प्रकाश डाला। शुभम चौहान ने अमृतलाल नागर जी के उपन्यास "नाच्यौ बहुत गोपाल" पर अपने विचार रखे।

समाजिक विषमताओं की उधेड़बुन का उपन्यास है 'नाच्यौ बहुत गोपाल'समाजिक विषमताओं की उधेड़बुन का उपन्यास है 'नाच्यौ बहुत गोपाल'

शुभम चौहान ने बताया कि 'सफाईमित्र ' जाति किन समाजिक परिस्थितियों में अस्तित्व में आई, उसकी धार्मिक- समाजिक मान्यताएं क्या हैं,यदि इन प्रश्नों के उत्तर चाहिए तो अमृतलाल नागर के नाच्यौ बहुत गोपाल उपन्यास का अध्ययन करना चाहिए।

नागर लिखते हैं कि सफाई मित्रों के जीवन के सम्बंध में मैंने थोड़ा बहुत जितना अध्ययन किया है।

समाजिक अवधारणाओं और तात्कालिक परिस्थितियों ने न जाने किन किन विषमताओं को जन्म दिया इसके अध्ययन के लिए इतिहास के पन्नों की यात्रा आवश्यक है।

उपन्यास का समयकाल बीसवीं सदी के तीसरे-चौथे दसक का है जब गाँधी के नेतृत्व में आंदोलन चल रहा है और कहानी लिखने का समयकाल स्वतंत्र भारत में लगे आपातकाल के समय का है। अतः इन दोनों समयकालों के सामाजिक और राजनितिक परिस्थितियों का भी चित्रण है। नागर ने मेहतर समाज पर गहन अध्ययन किया है, अतः सफाई मित्र समाज के इर्द-गिर्द बुनी इस उपन्यास द्वारा पाठक उनके सामाजिक, धार्मिक और इतिहासिक तथ्यों से भी रु-ब-रु होते हैं।

नाच्यौ बहुत गोपाल' उपन्यास की नायिका निर्गुनिया के माध्यम से स्त्री के शोषण और अत्याचार का यथार्थ चित्रण किया है। निर्गुण एक साथ दोहरा दुख भोगती है - एक तो स्त्री होने का, दूसरा सफाई मित्र होने का। दरअसल निर्गुण, पुरुष जाति द्वारा किए गए शोषण के कारण ही ब्राह्मण कुल में उत्पन्न होकर भी सफाई मित्र बनना स्‍वीकार करती है। वह अपने जीवन के कटु यथार्थ के बारे में कहती है। 'दुनिया में दो पुराने से पुराने गुलाम हैं - एक भंगी और दूसरी औरत। जब तक ये गुलाम हैं आपकी आजादी रुपये में पूरे सौ के सौ नए पैसे भर झूठी है।'

हजार वेदनाओ, कष्टों को सहने के बाद भी निर्गुनिया के संस्कार उसे धर्म बदलने की अनुमति नहीं देते हैं न जाने ऐसे कितने अवसर आए जब उसे ईसाई, इस्लाम धर्म को स्वीकारने के लिए कहा गया परन्तु उत्तर में निर्गुनिया कहती है कि 'पराय धरम की मौत भयावनी होती है। उससे तो अपने धरम की मौत लाख दर्जें अच्छी होती है।'

एक और जब देश आजादी की लड़ाई लड़ा था तो वहीं दूसरी ओर निर्गुनिया समाज के पुन उत्थान के लिए लड़ती है, पाठशाला खोलती है,हरिजन आंदोलन में जेल जाती है।

तबलीग और उपन्यास...

उपन्यास में निर्गुनिया और आर्यसमाजी स्कूल खोलने की योजना बनाते हैं तभी वहां तबलीग़ वाले मौलाना आएं, उन्होंने कहा !अगर तुम इन काफिरों के चंगुल में आ गए तो याद रखो कि कयामत के दिन तुम्हारा बुरा हाल होगा। तुम से दोखज की आग में जलाए जाओगे। 'तबलीग' की इस मीटिंग ने बस्ती में आग लगाई।

उपन्यास का अंत भावुक होता है निर्गुनिया अपनी पति मोहना की मौत के बाद अकेलापन महसूस करती है 70-72 वर्ष की यह पात्र ने अपने जीवन में कितनों प्रहारों को झेला, कितने प्रहार सहे, जिंदगी- मौत से लगी!पर एक तेजस्विता का व्यक्तित्व लिए अडिग रही।वह मिशाल है उस बाल्मिकी समाज कि जो स्वयं को कमजोर समझता है,वह बच्चों को पढ़ाती है तो समाज का नेतृत्व भी करती हैं।

अवेकनिंग भारत माता - राष्ट्र को और दक्षिणपंथ को समझाती पुस्तक

ऋतुल बसु ने चर्चा के दौरान पूछा -

राष्ट्र की संकल्पना और अवधारणा क्या है? भारतीय राष्ट्रवाद क्या है? भारत का दक्षिणपंथ पश्चिम के दक्षिणपंथ से कैसे भिन्न है? दक्षिण होने के क्या अर्थ तथा मायने हैं?

ऋतुल ने बताया कि भारतीय सभ्यता को अभी तक के प्रमुख विचारकों और चिंतकों की लेखनी से समझने का प्रयास है यह पुस्तक। इस पुस्तक में 27 चयनित लेख हैं जो तीन भागों में विभक्त हैं। सीताराम गोयल, महर्षि अरविंद घोष, जादूनाथ सरकार, भगिनी निवेदिता, आनंद कूमारस्वामी, आर सी मजूमदार आदि विद्वानों के विचारोत्तेजक व भारतीय संस्कृतिबोध व इतिहासबोध को जागृत करने वाले इन लेखों को स्वपनदास गुप्ता ने संगृहीत किया है।

ऋतुल ने बताया कि हमारे राजनीतिक दर्शन में पश्चिमी विचारों का प्रभाव बहुत ज्यादा है लेकिन पक्ष में राजनीतिक विचारों से भारतीय समाज को समझा नहीं जा सकता, यह पुस्तक इसी समस्या पर काम करते हुए भारतीय राजनीतिक विचारों को पाठक के सामने रखती है।

सकारात्मक विचारों से मिलेंगे बेहतर परिणाम -

सुकृति श्रीवास्तव ने पुस्तक अवचेतन मन की शक्ति पर चर्चा करते हुए बताया कि जोसेफ मर्फी की यह किताब विश्व की बेस्ट सेलिंग किताबों में से एक है। जो लोगों को उनके अवचेतन मन की शक्ति और उसके प्रभाव के बारे में बताती है। पुस्तक के माध्यम से जोसेफ मर्फी बताते हैं कि अगर आपके विचार सकारात्मक होंगे तो उसके परिणाम ही सकारात्मक ही निकल कर आएंगे। सुकृति ने बताया कि इस पुस्तक का अध्ययन करने और इसमें बताई तकनीक को अमल में लाने से आप उस चमत्कारिक शक्ति को जान लेंगे, जो आपको दुविधा, दुख, उदासी और असफलता के कुचक्र से बाहर निकलने में मदद करेगी। यह चमत्कारिक शक्ति आपको मंजिल तक पहुँचने में मदद देगी, आपकी समस्याएँ सुलझाएगी, आपको मानसिक और शारीरिक बेड़ियों से स्वतंत्र करेगी। यह आपको पुनः स्वस्थ, उत्साही और शक्तिशाली बना सकती है। जब आप अपनी आंतरिक शक्तियों का प्रयोग करना सीख लेंगे, तो आप भय की कैद से स्वतंत्र हो जाएँगे और सुखमय जीवन का आनंद लेंगे।

अवचेतन मन की शक्तियों के चार सूत्र और तकनीकें

1. कल्पना - गंतव्य की इच्छित परिणाम की कल्पना करें

2. प्रार्थना - ईश्वर से रार्थना करें, प्रार्थना में बड़ी शक्ति होती है

3. कृतज्ञता - ईश्वर को और सहायता करने वालों का ध्यावाद करें

4. क्षमा करना सीखें - पुरानी बातों को भूल जाएँ

देश विदेश से युवाओं ने भाग लिया-

सऊदी से भी G20 में कार्यरत भोपाल मूल के प्रवासी भारतीय गौरव जयसिंघानिया ने भाग लिया। इस परिचर्चा में जबलपुर, इटारसी, ग्वालियर, शिवपुरी, इंदौर, दिल्ली से भी युवा जुड़े। अगली परिचर्चा 18 अप्रैल को दोपहर 3 बजे ऑनलाइन होगी।

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