बैंसली नदी पुनर्जीवन अभियान एक सार्थक पहल

ग्वालियर। जिसमें जुनून होता है, मंजिल से पहले ना उसको सुकून होता है। इन पंतियों को चरितार्थ कर रहे हैं गिर्राज गोयल। जो पिछले महीने ही केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय के निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं और भविष्य में ग्वालियर को जल संकट से बचाने के लिए जल संचयन व प्रबंधन के कार्य में जुट गए हैं। ग्वालियर निवासी श्री गोयल ने माधव प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की तदुपरांत भारतीय इंजीनियरिंग सेवा में चयनित होकर देश को अपनी सेवाएं प्रदान की। पिछले 5 साल केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय में निदेशक के पद पर कार्य करते हुए उन्होंने जल संचयन व प्रबंधन के क्षेत्र में कई उपलब्धियां प्राप्त की। सेवानिवृत्ति के बाद वह बैसली नदी पुनर्जीवन अभियान में जुट गए हैं। वह पद पर रहते हुए भी इसके लिए कार्य करते रहें और सरकारी बंदिशो से मुक्त होकर मिशन मोड में काम कर रहे हैं। उनके प्रयासों से बैसली नदी की डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) जर्मनी की संस्था निशुल्क बना रही है और आशा है की केंद्र सरकार की कुछ योजनाओं के तहत कुछ कार्य किया जा सकेगा।
श्री गोयल बताते हैं 35 किमी लंबी बैसली नदी को पुनर्जीवित करने का निश्चय किया है। बैसली नदी का जलग्रहण क्षेत्र ग्वालियर जिले में ही 46742 हेक्टेयर है और इसमें बरसात के मौसम में 330 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) पानी बेकार बह जाता है। ऐसे में विशेष उपाय कर इस पानी को संग्रहित किया जा सकता है, ताकि वर्षभर नदी के जल का उपयोग किया जा सके। बैसली नदी का उद्गम भदावना जल प्रपात से होता है, जो उटीला के जंगलों में स्थित पहाड़ों पर है। भदावना जल प्रपात एक पिकनिक स्पाट के साथ-साथ एक धार्मिक स्थल भी है। बैसली नदी गंगा बेसिन में सिंध नदी की सहायक है। पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न कारणों से इस नदी की स्थिति खराब हुई है। इसके उद्गम से गोहद बांध तक इस नदी का प्रवाह विलुप्त होता जा रहा है। इस नदी के जलग्रहण क्षेत्र में भूजल तेजी से कम हो रहा है। इसके किनारे व उप-बेसिन में स्थित 45 गांव इस स्थिति के कारण समस्याओं का सामना कर रहे हैं और इस कारण गांवों में पानी का संकट गहराता जा रहा है। इस नदी में सिर्फ वर्षा के समय ही पानी नजर आता है और बाकी समय में यह सूखी रहती है।
श्री गोयल ने बताया ऐसे में नदी के पुनर्जीवन के प्रयास शुरू कर रहा हूं। नदी के उद्गम स्थान के पास बांध और तालाब बनाकर पानी रोका जा सकता है, जिसे धीरे-धीरे नदी में छोड़ा जा सके। नदी के 46 हजार हेक्टेयर के जल अधिग्रहण क्षेत्र में क्वांटम जियोग्राफिक इंफार्मेशन सिस्टम से मैपिंग कर लगभग 300 जल संरक्षण संरचनाओं, तालाबों व स्टॉप डेम का निर्माण किया जाये तो 30 एमसीएम पानी को क्षेत्र में रोका जा सकता है। जल अधिग्रहण क्षेत्र में आने वाली पहाडिय़ों पर सघन पौधरोपण जन सहयोग से इन पौधों की देखभाल की जा सकती है। इस क्षेत्र में पडऩे वाले खेतों में मेड़ तैयार की जाएंगी और पेड़ लगाए जाएंगे। अगले सप्ताह वृक्षारोपण शुरू होगा। ग्रामीण घरों में छतों पर वर्षा जल संग्रहण कर बोरवेल को रिचार्ज करने की व्यवस्था की जाए इसके लिए सरपंचों के साथ बैठक हो चुकी है। इसके अतिरिक्त खेती के तौर तरीकों में सुधारकर कम जल उपयोग में लाने वाली फसलें व प्राकृतिक खेती को बढ़ावा के लिए किसानों को जागरूक किया जाएगा।
उन्होंने बताया ग्वालियर के ग्रामीण क्षेत्र के ग्राम दुहिया, अरौली, बरौड फुटकर। शहरी क्षेत्र में हनुमान बांध, वीरपुर बांध, मामा बांध, रायपुर बांध जैसे कई स्थान चिन्हित किए हैं। और कर भी रहे हैं। जहां पर स्टेट कालीन बांध, तालाब बने हैं उनके भंडारण संरचना में जीर्णोद्वार कर जल संचयन किया जा सकता है जिससे ग्वालियर जिले के जल स्तर में इजाफा होगा। विभिन्न आयामों को देखते हुए बची हुई सारी जिंदगी में जल संचयन व प्रबंधन के कार्य में लगाना चाहता हूं जिससे आने वाली पीढ़ी को जल संकट का सामना ना करना पड़े। मैं सामाजिक क्षेत्र में कार्य कर रही संस्थाओं, स्कूली और कॉलेज के विद्यार्थियों युवाओं से आह्वान करता हूं की जल संचयन ब प्रबंधन के क्षेत्र में अपना योगदान दें।
