ग्वालियर : 600 करोड़ के आलोक गृह निर्माण समिति के घोटाले को दबाने के प्रयास, ऐसे समझें जमीन की कीमत

- पहले दिया वसूली का नोटिस, अब सीमांकन के जरिए लटकाने के प्रयास
ग्वालियर, विशेष प्रतिनिधि। बहुचर्चित आलोक गृह निर्माण समिति द्वारा ग्वालियर विकास प्राधिकरण को 12,499 वर्ग मीटर भूमि का गोलमाल किए जाने के बाद समिति को पहले तो नोटिस देकर अनुज्ञा निरस्त करने की चेतावनी दी गई, किंतु इसके बाद दबाव के चलते जहां तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी वीरेन्द्र सिंह का तबादला किया गया और अब इस मामले को लटकाने के लिए सीमांकन हेतु जिलाधीश को पत्र लिखा गया है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि जीडीए के अधिकारी भारी दबाव में हैं। उन्हें अपने राजस्व की चिंता की बजाय समिति की ज्यादा फिक्र है। बता दें कि इस समिति को 12,499 वर्ग मीटर भूमि जीडीए को शर्तों के मुताबिक देना थी। जिसकी बाजारू कीमत लगभग 600 करोड़ रुपए है।
उल्लेखनीय है कि आलोक गृह निर्माण सहकारी संस्था द्वारा ग्राम मेहरा सिरोल में आवासीय योजना के तहत ग्वालियर विकास प्राधिकरण और नगर एवं ग्राम निवेश से इस शर्त के साथ अनुज्ञा ली थी कि उसके द्वारा उक्त क्षेत्र में ग्वालियर विकास प्राधिकरण की देखरेख में विकास कार्य कराए जाएंगे। किंतु इन शर्तों का पूरी तरह उल्लंघन किया गया। जिसमें प्राधिकरण को सौंपे जाने वाले 11.5 प्रतिशत भूखंड, जिसका कुल रकबा 12,499 वर्ग मीटर होता है का विक्रय/व्ययन अवैध रूप से कर दिया गया। यह भूखंड लगभग सवा लाख वर्ग फीट हैं, जिसकी बाजारू कीमत 600 करोड़ रुपए बताई गई है। जीडीए के तत्कालीन मुख्य कार्यपालन यंत्री वीरेन्द्र सिंह ने पांच मार्च 2020 को आलोक गृह निर्माण सहकारी संस्था के अध्यक्ष एवं अन्य को पत्र क्रमांक/ग्वा.वि.प्रा./ 20/1637 जारी करते हुए कारण बताओ सूचना भेजी थी। जिसमें राज्य शासन, संयुक्त संचालक नगर तथा ग्राम निवेश व आवास एवं पर्यावरण विभाग के कई पत्रों का हवाला देते हुए लिखा था कि प्राधिकरण के देखरेख में ग्राम मेहरा सिरोल स्थित भूमियों पर विकास करने तथा प्राधिकरण को आर्थिक लाभ होने की शर्त पर अनापत्ति दी गई। परंतु आपके द्वारा न तो ग्वालियर विकास प्राधिकरण की देखरेख में कॉलोनी विकसित की गई न ही प्राधिकरण के आर्थिक लाभ हेतु आवास एवं पर्यावरण विभाग के पत्र क्रमांक एफ/68/ 2004/32/ दिनांक 11.3.05 में उल्लेखित 50 प्रतिशत से अधिक भूखंड ग्वालियर विकास प्राधिकरण को सौंपे गए।
इस प्रकार आपके द्वारा प्राधिकरण को सौंपे जाने वाले 11.5 प्रतिशत भूखंड जिसका कुल रकबा 12499 वर्ग मीटर होता है, उसे प्राधिकरण को न सौंपकर स्वयं उसकी बिक्री/व्ययन अवैध रूप से कर दिया गया है। जिससे प्राधिकरण को गंभीर आर्थिक क्षति हुई है, जो संयुक्त संचालक नगर तथा ग्राम निवेश के पत्र क्रमांक 1525/03386/नग्रानि/2008 ग्वालियर दिनांक 6.10. 2008 के द्वारा स्वीकृत अभिन्यास की कंडिका दो का स्पष्ट उल्लंघन है। नोटिस में कहा गया था कि आवास एवं पर्यावरण विभाग द्वारा ग्राम मेहरा सिरोल आवासीय योजना तथा अन्य इसी प्रकार की योजनाओं में प्राधिकरण द्वारा मप्र नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम 1973 तथा उसके अंतर्गत बनाए गए नियमों में विकास योजना क्षेत्र अनापत्ति दी जाकर निजी विकास की अनुमति दी जाना प्रावधानिक नहीं होने से ऐसी एक दर्जन अनुमतियां तत्काल प्रभाव से निरस्त कर दी गई थीं, किंतु आपकी संस्था से संबंधित विकास अनुमति निरस्त होने से शेष रह गई थी। अत: आप दो सप्ताह के भीतर कारण स्पष्ट करें कि क्यों न आपको दी गई अनुज्ञा निरस्त की जाए। पत्र में 11.5 प्रतिशत भूखंड रकवा 12,499 वर्ग मीटर का बाजार मूल्य वसूलने की कार्रवाई की बात भी लिखी गई थी।
ऐसे समझें जमीन की कीमत
सचिन तेंदुलकर जैसे पॉश क्षेत्र में बाजारू मूल्य के हिसाब से एक वर्गफीट जमीन की कीमत लगभग पांच हजार रुपए है। चूंकि यह जमीन लगभग सवा लाख वर्गफीट है तो इसकी कीमत 600 करोड़ रुपए बैठती है।
नोटिस देने वाले को किया चलता
तत्कालीन सीईओ द्वारा जैसे ही यह नोटिस जारी किया गया, इसके बाद समिति संचालकों ने अपनी पहुंच का इस्तेमाल कर 600 करोड़ रुपए के न तो भूखंड समर्पण किए और न ही राशि जमा की। उल्टे सीईओ सिंह को ही चलता करवा दिया। इसके बाद डिप्टी कलेक्टर केके गौर को नया सीईओ नियुक्त किया गया, जिन्होंने इस फाइल को देखना भी मुनासिब नहीं समझा। उल्टा समिति को लाभ देने अपने विभाग के तीन अधिकारियों की जांच समिति गठित कर दी। इस समिति द्वारा गोलमाल रिपोर्ट तैयार की गई, जिसमें सुझाव दिया गया कि राजस्व विभाग जिलाधीश कार्यालय से उक्त समिति की भूमि का सीमांकन कराया जाए। जिस पर श्री गौर ने पिछले दिनों जिलाधीश को पत्र लिखकर सीमांकन के लिए निवेदन किया है। यहां ताज्जुब यह है कि जब समिति द्वारा नगर एवं ग्राम निवेश के नियमों का साफ-साफ उल्लंघन किया, जो उनके पत्रों से स्पष्ट है फिर अचानक भूमि के सीमांकन की बात कहां से पैदा हो गई। इससे ऐसा लग रहा है कि जीडीए समिति पर कार्रवाई नहीं चाहती। जबकि समिति द्वारा भूखंडों का विक्रय कर वहां निर्माण कार्य जारी हैं।
यह कैसा माफिया विरोधी अभियान
एक ओर प्रदेश शासन द्वारा हर प्रकार के माफिया के खिलाफ अभियान चलाकर सरकारी जमीनें बचाई जा रही हैं। ऐसे में जीडीए को जिस समिति द्वारा 600 करोड़ रुपए की चपत लगाई गई है, उस ओर प्रशासनिक अधिकारी और राज्य शासन क्यों उदासीन है। यह विचारणीय प्रश्न है।
सीईओ से सीधी बात
प्रश्न:- आलोक गृह निर्माण समिति को तत्कालीन सीईओ द्वारा पांच मार्च 2020 नोटिस देकर 12,499 वर्ग मीटर भूमि के बराबर बाजारू कीमत अदा करने को कहा गया था, इस पर क्या कार्यवाही हुई?
गौर:- किसी समिति को इस तरह का नोटिस दिया गया है, ऐसा मेरी जानकारी में नहीं है। 600 करोड़ की जमीन का मामला हो ही नहीं सकता।
प्रश्न:- हमारे पास नोटिस और स्वदेश द्वारा प्रकाशित समाचार की कटिंग है, दिखाएं क्या?
गौर:- तो फिर आप संपदा अधिकारी सुभाष सक्सेना से बात कर लें।
प्रश्न:- अच्छा तो आपके ध्यान में यह मामला आ गया क्या?
गौर:- हां, हमने इस मामले में विभाग के तीन सदस्यों की समिति से जांच कराई है, जिसकी रिपोर्ट के आधार पर समिति को प्राप्त भूमि का सीमांकन कराने के लिए जिलाधीश को पत्र लिखा है।
इनका कहना है
आलोक गृह निर्माण समिति को नोटिस देने के बाद अब तक कार्यवाही क्यों नहीं की गई, इस बारे में संबंधित अधिकारी से बात कर आवश्यक कार्यवाही की जाएगी।
आशीष सक्सेना, संभागीय आयुक्त
