उच्च न्यायालय के आदेश से सरकार में मचा हड़कंप: जानवरों के डॉक्टर से इंसानों का इलाज, नेताओं की जिद ने खोली प्रतिनियुक्ति के 'चारागाह’ की पोल…

जानवरों के डॉक्टर से इंसानों का इलाज, नेताओं की जिद ने खोली प्रतिनियुक्ति के चारागाह’ की पोल…
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भोपाल। मप्र उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंडपीठ द्वारा 3 दिन पहले नगर निगम ग्वालियर में प्रतिनियुक्ति पर जमे 61 अधिकारी एवं कर्मचारियों को वापस उनके मूल विभागों में भेजने के आदेश से पूरा सरकारी तंत्र हिल गया है।

मप्र में पिछले कुछ सालों से नेताओं और अधिकारियों ने अपने चहेतों को उपकृत करने के लिए प्रतिनियुक्ति को जरिया बना लिया है। सामान्यत: विशेष योग्यता वाले शासकीय सेवक को गोपनीय चरित्रावली के आधार पर प्रतिनियुक्ति पर भेजा जाता था, जिसका अब कोई पालन नहीं किया जा रहा है।

यही वजह है कि ग्वालियर नगर निगम में नेताओं की जिद पर स्वास्थ्य अधिकारी की कुर्सी पर जानवरों के चिकित्सक को भेजा गया था। जब यह मामला उच्च न्यायालय पहुंचा तो पूरे तंत्र की पोल खुल गई।

दरअसल, डॉ. अनुराधा गुप्ता ने ग्वालियर नगर निगम में पशु चिकित्सक डॉ. अनुज शर्मा को स्वास्थ्य अधिकारी बनाए जाने का मामला उठाया। निगम से लेकर शासन तक इसकी जानकारी भेजी गई, लेकिन राजनीतिक रसूख ऐसा था कि किसी ने नहीं सुना।

आखिरकार मामला उच्च न्यायालय पहुंचा। उच्च न्यायालय ने ग्वालियर निगमायुक्त संघप्रिय के आदेश को धारा 54 के तहत निरस्त कर दिया। इसके साथ ही सालों से निगम में जमे 60 अधिकारी एवं कर्मचारियों को भी वापस मूल विभाग लौटने के आदेश जारी कर दिए हैं। खास बात यह है कि उच्च न्यायालय ने आदेश में प्रतिनियुक्ति पर जमे अधिकारी एवं कर्मचारियों के नाम का उल्लेख किया है।

इसके बाद सभी विभाग प्रतिनियुक्ति पर बुलाए गए या भेजे गए अधिकारियों एवं कर्मचारियों का रिकॉर्ड खंगालने में जुट गए हैं। पिछले दो दिन से मंत्रालय में सामान्य प्रशासन विभाग प्रतिनियुक्ति से जुड़ी फाइलें खंगाल रहा है।

विभाग के एक अधिकारी के अनुसार उच्च न्यायालय ने आदेश में शासकीय सेवकों के नाम का उल्लेख किया है, इसलिए उन पर कार्रवाई होगी। अन्य संस्थाओं पर आदेश का असर नहीं होगा। हालांकि अधिकारी ने बताया कि भविष्य में निकायों में पदस्थापना संबंधी आदेश में धारा 54 का पालन किया जाएगा। यानी प्रतिनियुक्ति पर भेजने की सूचना जारी की जाएगी।

नगरीय निकायों में 4000 से ज्यादा प्रतिनियुक्ति पर जमे

मप्र में सबसे ज्यादा अधिकारी एवं कर्मचारी नगरीय निकायों में ही प्रतिनियुक्ति पर जमे हैं। भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर नगर निगम में प्रतिनियुक्ति वालों की संख्या ज्यादा है। प्रतिनियुक्ति पर लोनिवि, पीएचई के इंजीनियर, राजस्व विभाग के पटवारी, राजस्व निरीक्षक और कुछ निकायों में तहसीलदार पदस्थ हैं। नगर पालिका एवं नगर परिषदों में शिक्षक, दूसरे विभागों के लिपिक पदस्थ हैं।

नगरीय प्रशासन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सामान्यत: किसी सड़क, आवास, सीवेज या अन्य किसी परियोजना के लिए विशेषज्ञ योग्यता वालों को प्रतिनियुक्ति पर बुलाया जाता है। परियोजना पूरी होने के बाद भी ये निकायों में जमे रहते हैं। कुछ निकायों में प्रतिनियुक्ति पर जमे इंजीनियर, लिपिकों को सीएमओ तक का दायित्व सौंपा गया है। खास बात यह है कि इनमें से ज्यादातर प्रतिनियुक्ति पदस्थापना राजनीतिक दखल से ही होती है। प्रदेश के निकायों में 4000 से अध‍िक अध‍िकारी एवं कर्मचारी प्रति‍न‍ियुक्‍त‍ि पर हैं

यह है नियम

प्रतिनियुक्ति की अवधि सामान्यत: 5 वर्ष तक की होती है। जिसे आवश्यक होने पर सेवाएं सौंपने वाले विभाग की सहमति से 7 वर्षों तक बढ़ाया जा सकता है। हालांकि दोनों विभागों की सहमति से कभी भी प्रतिनियुक्ति समाप्त की जा सकती है। साथ ही काम संतोषजनक नहीं होने पर भी मूल विभाग को सेवाएं लौटाई जा सकती हैं।

प्रतिनियुक्ति की प्रमुख शर्त यह है कि जिस विभाग को सेवाएं लेनी होती हैं, उसे संबंधित विभाग से 3 नामों का पैनल, गोपनीय प्रतिवेदन, विभागीय जांच आदि की जानकारी लेनी होती है। इसके बाद दोनों विभाग सहमत होने पर ही प्रतिनियुक्ति आदेश जारी होता है। सेवाएं लेने वाले विभाग के लिए आवश्‍यक है कि वह पदस्थापना के आदेश तत्काल जारी करे। इसके बाद ही मूल विभाग को उस कर्मचारी को कार्यमुक्त करना चाहिए। हालांकि इन नियमों का मौजूदा स्थिति में पालन नहीं हो रहा है।

मंत्रियों ने उड़ाई थीं नियमों की धज्जियां

सरकार के शुरुआती दिनों में मंत्रियों के स्टाफ में पिछली सरकारों के मंत्रियों के साथ रह चुके अधिकारी एवं कर्मचारियों को पदस्थ नहीं किया गया था। मंत्रियों ने चहेतों को स्टाफ में रखने के लिए प्रतिनियुक्ति का रास्ता अपनाया था। पहले चहेते को अपने विभाग में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ कराया, फिर ओएसडी बनाकर स्टाफ में रखा। वर्तमान में परिवहन एवं शिक्षा मंत्री के एक ओएसडी प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ हैं। हालांकि सामान्य प्रशासन विभाग ने उनकी पदस्थापना मंत्री स्टाफ में निज सहायक के रूप में की थी। जिस पर उन्होंने ज्वाइन ही नहीं किया। न ही उनकी सेवाएं विभाग को लौटाई गईं।

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