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कांग्रेस को 'नाथ' से 'आस'

कांग्रेस को नाथ से आस
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भोपाल/राजनीतिक संवाददाता। कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सत्ता के शिखर तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया इस चुनाव में उतनी महत्वपूर्ण भूमिका में दिखाई नही देंगे। इसका कारण यह है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उन्हें उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की वैतरणी पार लगाने का जिम्मा सौंपा है। कांग्रेस की एक अन्य मुश्किल पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी बन रहे हैं। जो जान बूझकर विवादित बयानों से सरकार और संगठन को परेशान किए रहते है। ऐसी स्थिति में मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस की नैया मुख्यमंत्री कमलनाथ के सहारे ही है।

तो क्या नहीं चलेगा नाथ का जादू

मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ ने लोकसभा में कांग्रेस को फायदा दिलाने के लिए अपने पद का उपयोग करते हुए कई चुनावी योजनाएं शुरू कीं एवं लुभावनी घोषणाएं भी कीं, कांग्रेस की नई सर्वे रिपोर्ट आ गई है, पंरतु सर्वे रिपोर्ट कहती है कि मध्यप्रदेश में कमलनाथ का जादू नहीं चलेगा। 2014 में शिवराज सिंह ने 29 में से 27 सीटें दिलवाईं थीं परंतु 2019 में कमलनाथ 29 में से सिर्फ 7 सीटें ही दिलवा पाएंगे। इसमें से भी दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और कांतिलाल भूरिया की जीत कमलनाथ की कृपा से नहीं होगी अत: कमलनाथ सिर्फ 3 सीटों की ही बढ़त दिलवा पाएंगे। छिंदवाड़ा की तो गणना करना ही नहीं चाहिए। आइए देखते हैं सर्वे रिपोर्ट देशभर में क्या हालात बता रही है।

वचन पत्र में मध्य प्रदेश के इन मुद्दों को भी शामिल करने की तैयार

माना जा रहा है कि वचन पत्र में कांग्रेस मध्य प्रदेश के लिए बड़ी घोषणा कर सकती है।प्रदेश के विकास को लेकर कांग्रेस के वचन पत्र में कई वादे भी शामिल किए जा सकते है। इनमें रोजगार, शिक्षा, रेलों की संख्या से लेकर आम आदमी को राहत देने वाले मुद्दे शामिल किए जा सकते है। मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था में किसी तरह के बदलाव से परहेज करें, ताकि जातीय आधार पर सियासत न हो सके, बेरोजग़ारी की समस्या से निपटने के लिए परंपरागत रोजग़ार को बढ़ावा दें, इसके लिए अधिनियम लाया जाए, परंपरागत व्यावसाय राइट एक्ट लागू करें, किसानों को उपज का सही दाम दिलाने के लिए सेंट्रल मंडी की स्थापना, पीडीएस सुधारने के लिए डि सेंट्रलाइज्ड व्यवस्था लागू करें, रक्षा से जुड़े मामलों में राजनैतिक बयानबाज़ी पर पूरी तरह से रोक, स्वास्थ्य, सेवा और शिक्षा का पूरी तरह से राष्ट्रीयकरण कर समामता लाने, उद्योगों को हर राज्य में प्रोत्साहित करने के लिए शासकीय केन्द्रीय नीति के अनुसार और मनरेगा की तर्ज पर शहरी युवाओं के लिए रोजगार गारंटी कार्यक्रम जैसे मुद्दों को भी जगह दी जा सकती है।

दस सीटों पर भरोसा

कांग्रेस के सूत्र बताते हैं कि पार्टी को इस बार उन दस सीटों पर भरोसा है। जिन पर पार्टी को 2014 के चुनाव में जीत और कम वोट के अंतर से हार मिली थी। मोदी लहर में दिग्गज चुनाव हार गए थे, लेकिन इस बार कोई लहर नहीं है। 15 साल बाद प्रदेश की सत्ता में वापसी से राजनीतिक समीकरण भी बदले हैं। इसी कारण कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने के लिए आश्वान्वित है। 2009 में कांग्रेस ने एक दर्जन सीटें जीती थी। वहीं 2014 में 3 सीटों पर एक लाख से कम मतों से हार हुई थी, 9 सीटों पर एक से दो लाख के बीच की हार मिली और 7 सीटों पर दो से तीन लाख के बीच की हार हुई थी।

एक लाख से कम मतों से हार वाली सीटें

सतना: कांग्रेस प्रत्याशी अजय सिंह भाजपा के गणेश सिंह से महज 8 हजार 688 मतों से हारे थे। कांग्रेस की यह सबसे कम अंतर की हार थी। अजय सीधी से टिकट मांग रहे थे, लेकिन उन्हें सतना से लड़ाया गया था। इस बार इन दोनों सीटों से उनका दावा मजबूत है। पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह भी तगड़े दावेदार हैं।

ग्वालियर: कांग्रेस प्रत्याशी अशोक सिंह भाजपा प्रत्याशी नरेंद्र सिंह तोमर से 29 हजार 699 मतों से हारे थे। इस बार यहां से अशोक के साथ ही ज्योतिरादित्य सिंधिया की पत्नी प्रियदर्शिनी राजे का नाम प्रमुख दावेदारों में माना जा रहा है। यहां तोमर के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर भी है, इसलिए कांग्रेस को इस सीट पर काफी उम्मीदें हैं।

बालाघाट : भाजपा प्रत्याशी बोध सिंह भगत से कांग्रेस की हिना कांवरे 96 हजार 41 मतों से हारी थीं। अब हिना विधानसभा उपाध्यक्ष बन हैं। यहां पवन कांवरे सहित अन्य दावेदार हैं। उधर, बोध सिंह की स्थिति कमजोर है, इसलिए पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन अपनी बेटी मौसम के लिए टिकट मांग रहे हैं। कांग्रेस यहां भी काफी उम्मीद है।

सवा लाख से कम मतों से हार वाली सीटें

धार : कांग्रेस प्रत्याशी उमंग सिंघार 1 लाख 4 हजार 328 मतों से हारे थे। भाजपा प्रत्याशी सावित्री ठाकुर जीती थीं। उमंग विधानसभा चुनाव जीतकर मंत्री बन गए हैं। वे लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे, लेकिन कांग्रेस इस सीट को अपने लिए मजबूत मानती है, क्योंकि सावित्री को लेकर सत्ता विरोधी लहर के हालात हैं।

सीधी : भाजपा प्रत्याशी रीति पाठक 1 लाख 8 हजार 46 मतों से जीती थीं। कांग्रेस प्रत्याशी इंद्रजीत कुमार हार गए थे। इंद्रजीत का निधन हो चुका है और उनके बेटे कमलेश्वर प्रदेश में मंत्री बन गए हैं। यहां से पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह की तगड़ी दावेदारी है। कांग्रेस यहां दलबदल का दांव भी खेल सकती है, क्योंकि यहां बसपा की स्थिति अच्छी है।

मंडला : भाजपा प्रत्याशी फग्गन सिंह कुलस्ते 1 लाख 10 हजार 469 मतों से जीते थे। कांग्रेस के ओंकार सिंह मरकाम हार गए थे। इस आदिवासी सीट पर कांग्रेस को काफी उम्मीद है। ओंकार प्रदेश में मंत्री हैं। यहां कांग्रेस के पास आधा दर्जन उम्मीदवार है। यहां मुख्यमंत्री कमलनाथ का भी प्रभाव काम करता है।

यहां गणित उपचुनाव से बदला

शहडोल : 2014 में भाजपा के दलपत सिंह 2 लाख 41 हजार 301 मतों से जीते थे। कांग्रेस से राजेश नंदनी सिंह की हार हुई थी। इनका निधन हो चुका है। दलपत के निधन के बाद भाजपा ने ज्ञान सिंह को मंत्री पद से इस्तीफा दिलवाकर 2016 में ये सीट फिर से हथिया ली। वे 60 हजार 383 वोट से जीते थे। उपचुनाव में कांग्रेस से हिमाद्री सिंह हारीं। हालांकि, हार का अंतर 60 हजार तक आ गया, इसलिए कांग्रेस को यहां ज्यादा उम्मीद है। ज्ञान के खिलाफ विरोध के स्वर मुखर है।

रतलाम : 2014 में भाजपा प्रत्याशी दिलीप सिंह भूरिया ने 1लाख 8 हजार 447 मतों से कांग्रेस प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया को हराया था। दिलीप के निधन के बाद 2015 में हुए उपचुनाव में कांतिलाल ने भाजपा की निर्मला भूरिया को 88 हजार 832 मतों से हरा दिया। मोदी सरकार के आने के बाद यह देश में पहला उपचुनाव था, जिसमें भाजपा को शिकस्त मिली। कांग्रेस इस सीट को मजबूत मानती है।

भरोसे की दो सीट

गुना-छिंदवाड़ा : 2014 में गुना और छिंदवाड़ा सीट ही कांग्रेस ने जीती थीं। गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया और छिंदवाड़ा से कमलनाथ जीते थे। अब कमलनाथ मुख्यमंत्री हैं। उनके पुत्र नकुलनाथ का छिंदवाड़ा से चुनाव लडऩा लगभग तय है। सिंधिया और उनकी पत्नी प्रियदर्शनी गुना से प्रमुख दावेदार हैं। सिंधिया को उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी के साथ आधी सीटों का प्रभार मिला है, इसलिए वे वहां व्यस्त हैं। ऐसे में प्रियदर्शनी ने यहां मैदान संभाल रखा है। ये दोनों सीटें कांग्रेस का अभेद्य गढ़ मानी जाती हैं।

ये भी कमजोर कड़ियां

कांग्रेस सागर, भिंड और रीवा को भाजपा की कमजोर कड़ी मानती है। वजह ये कि मोदी लहर में सागर में 1 लाख 20 हजार 737, भिंड में 1 लाख 59 हजार 961 और रीवा में 1 लाख 68 हजार 726 मतों से कांग्रेस की हार हुई थी। भिंड में तो भागीरथ प्रसाद के ऐन मौके पर कांग्रेस छोड़कर भाजपा जाने का नुकसान पार्टी को हुआ था। अब मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा में जीत का फायदा पार्टी को मिलने की उम्मीद है।

Updated : 19 March 2019 4:10 PM GMT
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Naveen Savita

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