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सवर्ण आरक्षण पर कांग्रेस क्यों खेल रही राजनीति ?

सवर्ण आरक्षण पर कांग्रेस क्यों खेल रही राजनीति ?
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सब पर मेहरबानी सामान्य वर्ग से विमुख क्यों कांग्रेस

भोपाल/विशेष संवाददाता। राज्य सरकार ने लोकसभा चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के वोट बैंक का लाभ उठाने के लिए इस वर्ग के लिए तो अध्यादेश के जरिए 27 प्रतिशत आरक्षण लागू कर दिया है। लेकिन सामान्य गरीबों के लिए दस प्रतिशत आरक्षण लागू करने में नियमों का पेंच लगा दिया है। भाजपा का कहना है कि कांग्रेस सरकार द्वेश की राजनीति कर रही है, हकीकत तो यह है कि कांग्रेस सरकार सामान्य वर्ग को आरक्षण देना ही नहीं चाहती। इसलिए समिति बनाकर प्रक्रिया का बहाना कर रही है, जबकि इसकी जरुरत हीं नहीं है। प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने मध्यप्रदेश में शैक्षणिक संस्थाओं एवं शासकीय नौकरियों में दस प्रतिशत आरक्षण लागू करने के लिए नियम तय करने का बहाना ले लिया है।

सर्वविदित है कि प्रदेश में सामान्य गरीबों को दस प्रतिशत आरक्षण देने के लिए क्या प्रक्रिया हो। इसे किस तरह क्रियान्वित किया जाए। इसके दायरे में किस आय वर्ग को शामिल किया जाए। इस आरक्षण को लेने के लिए परिवार की क्या पात्रता की शर्तें हो यह सब तय करने के लिए चार मंत्रियों की एक मंत्रिपरिषद समिति का गठन कर दिया है। सहकारिता मंत्री डॉ. गोविंद सिंह को इस समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। वहीं, स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट, वित्त मंत्री तरुण भनोत और नर्मदा घाटी तथा पर्यटन मंत्री सुरेन्द्र सिंह हनी बघेल को इस समिति का सदस्य बनाया है।

मोदी सरकार के फैसले के मायने

केंद्र के 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण को बड़े राजनीतिक बदलाव के रूप में आंका जा रहा था। प्रदेश के विधानसभा चुनाव में हुई भाजपा की हार के पीछे सवर्णों की नाराजगी को बड़ी वजह माना गया था। प्रदेश में सपाक्स चुनाव में कोई करिश्मा नहीं कर पाया, लेकिन 15 साल के भाजपा शासन को बेदखल करने में उसकी अहम भूमिका मानी जाती है। विधनसभा चुनाव के दौरान चली राजनीतिक बयानों की आंधी में तमाम प्रशस के बावजूद सवर्ण वर्ग की नाराजगी दूर न हो सकी और वे सडक़ के साथ-साथ राजनीति में उतर आए। मोदी ने निर्धन सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देकर इस गुस्से को थामने की कोशिश की है। प्रदेश में केन्द्र सरकार से दिया गया 10 प्रतिशत आरक्षण का मामला वोब् की राजनीकति के कारण फिलहाल अटक गया है। सरकार ने एक समिति बनाई है, जो इस आरक्षण के पहलुओं पर विचार कर अपनी रिपोर्ट देगी। यानी ये मामला अभी टल गया है। लोकसभा चुनाव में ये बात अहम रहेगी कि सवर्णों का रुख किस ओर रहता है।

कैसे लटका मामला

सरकार जैसा चाहती थी वैसा ही हुआ। सरकार की मंषा थी कि इस मुद्दे को फिलहाल टाल दिया जाएए ताकि लोकसभा चुनाव में भाजपा इस मुद्दे का राजनीतिक लाभ न उठा लेए लेकिन इसके साथ कांग्रेस यह भूल बैठी कि यदि इस मुद्दे को ज्यादा टालने की कोशिश की गई तो इसके दुष्परिणाम भी सामने आएंगे। जिनका सामना करने के लिए कांग्रेस को तैयार रहना होगा। इधर सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव विनोद सैमवाल को इस समिति का संयोजक बनाया गया है। यह समिति सामान्य वर्ग के सभी से चर्चा कर एक माह के भीतर अपना प्रतिवेदन देगी। प्रतिवेदन आने के बाद सरकार पूरी प्रक्रिया को कैबिनेट में ले जाएगी। इसके बाद इसे राजपत्र में प्रकाशन कराना होगा। आचार संहिता लागू हो चुकी है इसलिए अब यह पूरी प्रक्रिया लोकसभा चुनाव के बाद ही होगी। इस वर्ग के लिए आरक्षण लागू नहीं होने से सरकार को लोकसभा चुनाव में इसका नुकसान भी उठाना उठाना पड़ सकता है।

सरकार की मंशा पर संदेह : भार्गव

मध्यप्रदेश में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव का कहना है राज्य की कांग्रेस सरकार प्रदेश के सवर्ण गरीबों से शत्रुभाव रखती है। वह उन्हें आरक्षण देना ही नहीं चाहती इसलिए समिति बनाकर प्रक्रिया तय करने का प्रपंच किया जा रहा है। भार्गव का कहना है कि केन्द्र सरकार ने संविधान में संशोधन कर इसे लागू कर दिया है। गुजरात सरकार ने तो इसमें सवर्ण गरीबों को नौकरियां भी दे दी है। आठ राज्यों ने इसे लागू कर दिया है। लोकसभा में इस संविधान संशोधन को कांग्रेस ने भी समर्थन दिया था लेकिन प्रदेश में कांग्रेस सरकार इसे टालने की कोशिश कर रही है। किसी भी राज्य ने इसके लिए कमेटी नहीं बनाई सीधे लागू कर दिया। कमेटी की जरुरत ही नही है। इससे अजा, जजा, ओबीसी और महिला वर्ग के हितों को कोई नुकसान नहीं है, इसका प्रावधान अलग से है। वैसे भी राज्य सरकार के पास देने के लिए नौकरिया नहीं है। ढोर चराने, बैंड बजाने और सांप पकड़ने जैसी नौकरियां सरकार दे रही है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आरक्षण का क्या लाभ सरकार देगी।

Updated : 18 March 2019 5:30 PM GMT
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Naveen Savita

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