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दिग्विजयी राजनीति से पराजित होते अजय!

प्रदीप भटनागर

दिग्विजयी राजनीति से पराजित होते अजय!
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भोपाल। शुरूआत तीन दिन पहले की कांग्रेस समन्वय समिति की बैठक से करते हैं, बैठक में जो कुछ हुआ वह बहुत ही सामान्य था, लेकिन उस दौरान कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में से एक अजय सिंह से जुड़े एक मसले ने संबंधित बैठक को काफी खास बना दिया और वह राजनीतिक घटनाक्रम प्रदेश में हर किसी की जुबां पर है, यूं तो चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी को लेकर अजय सिंह की नाराजगी के चर्चे इस वक्त दिल्ली से लेकर भोपाल तक है, लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह है, कि हर कोई चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी की भूमिका पर नहीं, बल्कि अजय सिंह के रवैये पर चर्चा कर रहा है, और उनकी इस नाराजगी को सालों पुराने उनके गुबार के साथ जोड़कर देखा जा रहा है।

अब तीन दिन पुराने मसले को छोड़कर तीन दशक पुरानी मध्यप्रदेश कांग्रेस की राजनीति की तरफ रुख करते हैं, यह वो वक्त था, जब राजनीति के चाणक्य यानी प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह अपने राजनीतिक दांव पेंच के गुर सिखाकर अपना एक पट्ठा तैयार कर रहे थे, जिसका नाम था दिग्विजय सिंह। अर्जुन सिंह की राजनीतिक शिक्षा की पाठशाला का दिग्विजय सिंह ने सफलतम उपयोग भी किया, और सालों तक प्रदेश की राजनीति में अविजय ही रहे, फिर बात चाहे कांग्रेस के बाहर की करें या फिर भीतर की। बाद में स्थिति यह भी बनी, कि दिग्विजय सिंह ने अपनी लकीर इतनी बड़ी कर ली, कि अर्जुन सिंह उनके सामने बौने नजर आने लगे। शायद यही कारण है, कि 10 साल के दिग्विजय शासकाल बीत जाने के बाद भी दिग्विजय ही कांग्रेस के एक मजबूत धड़े के तौर पर पहचाने जाते रहे है, और 15 महीने की कमलनाथ सरकार भी उनके नक्शे कदम से इधर उधर नहीं चल सकी। जाहिर है कोई माने या न माने लेकिन कांग्रेस के भीतर तो यह दिग्विजय काल ही है।

इन दोनों तस्वीरों को आपके सामने रखने का एक खास उद्देश्य था, दरअसल जिस स्थिति में दिग्विजय सिंह ने अपने राजनीतिक गुरु अर्जुन सिंह से राजनीति का ककहरा सीखा था, आज अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह भी कमोवेश उससे नाजुक स्थिति में अपना समय व्यतीत कर रहे हैं। बिना जनाधार के दर्जनों नेताओं को ढोने वाली कांग्रेस ने तीन चुनाव हारने के बाद एक बेहतरीन राजनीतिक विरासत के मालिक अजय सिंह से किनारा कर लिया। पार्टी में अपनी इस उपेक्षा के बाद जब सिंह को जनता की अदालत में भी हार नसीब हुई, तो चुप्पी उनकी मजबूरी बन गई, और उन्होंने खुद को अपने बंगले की चार दीवारी तक ही समेट लिया। लेकिन अब जबकि मध्यप्रदेश कांग्रेस एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही है, ऐसे में चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी के बहाने ही सही, लेकिन सालों बाद अजय सिंह की आवाज सुनने को मिली, जो कहीं न कहीं अपनी पार्टी के ढर्रे के खिलाफ थी, सिंह की इस आवाज में अपनी उपेक्षा की कसक के साथ पार्टी के नीति नियंताओं के प्रति नाराजगी को भी बखूबी भांपा जा सकता है, जो शायद खुद के वनवास को लेकर जवाब भी मांग रही है।

अजय सिंह ने पार्टी की नीतियों पर सवाल उठाते हुए अपने इरादे तो जाहिर कर दिए हैं, लेकिन अभी भी वह किसी चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी के अलावा किसी और नेता का विरोध करने से बच रहे हैं, शायद उनके भीतर का एक अनुशासित नेता उन्हें यह सब करने से रोक रहा है, लेकिन इस बीच सवाल यह उठता है, कि क्या किसी नेता विशेष के प्रति उनके दिल में यह नाराजगी की भावना होगी, और अगर हां तो वह नेता कौन होगा ? इस विषय मे अगर गौर करें, तो आपसी खींचातानी में माहिर कांग्रेस के भीतर अजय सिंह का सूरज अस्त करवाने की कोशिश करने वाले नेताओं की शायद ही कोई कमी हो, लेकिन टांग खींचने वाले नेताओं के साथ उस शख्स को भी राहुल भैया की राजनीतिक का खलनायक मानना स्वभाविक है, जो इस स्थिति में सुधार करने की क्षमता रखते हुए, यह सारा घटनाक्रम दूर से ही देख रहा है, और वह नाम किसी और का नहीं, बल्कि अजय सिंह के पिता अर्जुन सिंह के चेले दिग्विजय सिंह का ही है। राजनीतिक जानकार भी इस बात का दावा करने से नहीं चूकते, कि पिछले एक अर्से में दिग्विजय सिंह ने सतही तौर पर अजय सिंह के पुनर्वास के लिए कई कोशिशें की हैं, फिर बात चाहे संगठन में अहम जिम्मेदारी की करें, या फिर राज्यसभा सीट के लिए गुणा गणित की। लेकिन वह कोशिशें सिर्फ दिखावे तक ही सीमित रहीं, क्योंकि अगर उनमें कुछ आधार होता, कमलनाथ के आंख और कान रहे दिग्विजय सिंह के लिए अजय सिंह को राजनीति की मुख्यधारा से जोड़ना कोई बड़ी बात नहीं थी।

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सवाल- क्या वाकई कांग्रेस के भीतर आप उपेक्षा के शिकार हो रहे हैं?

जवाब- इस तरह के सवाल और कयासों से मैं बिल्कुल भी सरोकार नहीं रखता, न तो मैं कांग्रेस में किसी भी तरह से उपेक्षित हूं, और न ही किसी से नाराज। यह बात हर कोई जानता है, कि मैं कांग्रेस का एक अनुशासित कार्यकर्ता हूं, और हर बात जायज मंच पर रखता हूं। इस तरह की किसी बात को मेरी उपेक्षा से जोड़ना बिल्कुल भी उचित नहीं है। कांग्रेस ने मुझे बहुत कुछ दिया है।

सवाल- लेकिन आपका राजनीतिक वनवास खत्म नहीं हो पा रहा, इस पर क्या कहेंगे ?

जवाब- कौन कह रहा है, कि मेरा राजनीतिक वनवास का समय है। कांग्रेस ने मुझे हमेशा से ही अहम जिम्मेदारी दी है, 2018 तक मैं नेता प्रतिपक्ष था, चुनाव के बाद भी पार्टी ने मुझे हर फैसले में अपना सहयोगी बनाया। आज भी कांग्रेस के भीतर मैं लगातार सक्रिय हूं, और आगे भी पार्टी मुझे जो जिम्मेदारी देगी, वो मुझे स्वीकार होगी।

सवाल- आपको नहीं लगता, कि कांग्रेस के ही कुछ नेता आपके पीछे पड़े हैं ?

जवाब- बिल्कुल नहीं, पूरी कांग्रेस पार्टी एक थी और एक रहेगी। जो इसके साथ नहीं थे, वह अब प्रत्यक्ष तौर पर इससे दूर जा चुके हैं। अब हम सब लोगों का एक उद्देश्य है, कि उपचुनाव में सभी 24 सीटें जीतना और दलबदलुओं को सबक सिखाना। पूरी कांग्रेस पार्टी एकजुट है, और हमें उपचुनाव का इंतजार है, जिसमें हम बेहतरीन प्रदर्शन करके अपनी वापसी करें।

सवाल- क्या चौधरी राकेश सिंह को लेकर आपका नाराजगी भरा रवैया बरकरार है ?

जवाब- मैं यहां यह बात साफ कर देना चाहूंगा, कि मैं कभी किसी से नाराज नहीं रहा और न होऊंगा। लेकिन बस मैंने एक मांग पार्टी के सामने रखी है, कि कांग्रेस सिर्फ निष्ठावान और पार्टी के प्रति समर्पित नेताओं पर ही भरोसा करे। जो आदमी एक बार पार्टी को धोखा दे सकता है, वह दोबारा भी ऐसा कर सकता है। ऐसे लोगों से थोड़ा दूर रहने की जरूरत है।

सवाल- क्या आप चुनावी मैदान में उतरेंगे ?

जवाब- यह सिर्फ आप लोगों की टेबल टॉक है, मैं इसे सिरे से खारिज करता हूं। मैं भला क्यों अभी चुनाव लड़ना चाहूंगा, ये सिर्फ अफवाहें हैं, जिनका कोई आधार नहीं है।

Updated : 27 May 2020 8:00 AM GMT
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स्वदेश डेस्क

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