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प्रभु श्रीराम की कृपा बिना कैसे होगी शिव कृपा?

हिन्दू वोटों के लिए मंदिरों की परिक्रमा लगा रहे राहुल बाबा

प्रभु श्रीराम की कृपा बिना कैसे होगी शिव कृपा?
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दिनेश शर्मा।

मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा, देखे जहं तहं अगनित जोधा।

गयउ दसानन मंदिर माहीं, अति विचित्र कहि जात सो नाहीं।

माता सीता की खोज में हनुमान जी ने जब लंका में प्रवेश किया तो उन्होंने एक-एक महल की खोज की। जहां तहां असंख्य योद्धा देखे। फिर वे रावण के महल में पहुंचे। वह अत्यंत विचित्र था, जिसका वर्णन नहीं हो सकता। ठीक ऐसा ही कुछ मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के रण में दिखाई दे रहा है। हिन्दुओं की आस्था के पुंज एक-एक मंदिर की खोज की जा रही है। इन मंदिरों में चुनावी रणवांकुरे पहुंचने लगे हैं। उस कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल बाबा भी हिन्दू मंदिरों की परिक्रमा लगा रहे हैं, जिस पार्टी के नेता अपने ऊल-जुलूल बयानों से हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति, हिन्दू सभ्यता को चोट पहुंचाने का कोई मौका नहीं छोड़ते।

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के उपरांत एक के बाद एक राज्य हार चुके कांग्रेस पार्टी के मुखिया राहुल बाबा का गुजरात विधानसभा चुनाव से अचानक हृदय परिवर्तन हुआ और हिन्दू धर्म के प्रति उनकी आस्था बढ़ गई। दिखावे के रूप में सही गुजरात चुनाव से ही राहुल बाबा अचानक जनेऊधारी हिन्दू और शिव भक्त बन गए हैं। स्वयं को शिव भक्त प्रमाणित करने के लिए पिछले दिनों वे मानसरोवर की यात्रा भी कर आए और अब मध्यप्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव की घोषणा होने के बाद से एक बार फिर राहुल बाबा ने मंदिरों में ढोक लगाना शुरू कर दी है, लेकिन जब-जब अयोध्या में राम जन्म भूमि पर राम मंदिर निर्माण की बात आती है, तब-तब राहुल बाबा की बोलती बंद हो जाती है। सर्वोच्च न्यायालय में जब सुनवाई शुरू हुई तो राहुल बाबा के सिपहसालारों में से एक कपिल सिब्बल कहने लगे कि 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव तक राम जन्म भूमि मामले की सुनवाई स्थगित कर देना चाहिए क्योंकि भाजपा इसका चुनाव में लाभ उठा सकती है। उनके इस कथन का मतलब साफ है कि अयोध्या में राम मंदिर भले ही न बने। राम जन्म भूमि भले ही हिन्दुओं के हाथ में न आ पाए, पर कांगे्रस को सत्ता मिल जाना चाहिए। कांग्रेस हमेशा से यही प्रयास करती रही है कि राम मंदिर का मामला यंू ही लटका रहे। राम सेतु (सेतु समुद्रम) मामले में तो कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत अपने हलफनामा में राम को काल्पनिक बता दिया था। उसी पार्टी के मुखिया राहुल बाबा स्वयं को जनेऊधारी हिन्दू और शिव भक्त प्रमाणित करने के लिए मंदिर-मंदिर घूम रहे हैं। इसी क्रम में सोमवार को राहुल बाबा ने उज्जैन के महाकाल मंदिर में पूजा-अर्चना की, लेकिन राहुल बाबा शायद धर्म ग्रंथों में वर्णित इस बात को भूल गए हैं कि रामद्रोहियों पर भगवान शिव कभी कृपा नहीं करते। उन्हें शायद श्रीरामचरित मानस में वर्णित उस कथा का भी ज्ञान नहीं है, जिसके अनुसार भगवान शिव के समक्ष एक ओर उनके इष्ट प्रभु ब्रह्माण्ड नायक स्वयं पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम हैं, जिनसे पूरी सृष्टि में कुछ भी छिपा नहीं है तो दूसरी ओर भगवान शिव का सच्चा भक्त लंकापति रावण है, जो भगवान शिव के इष्ट प्रभु श्रीराम का घोर विरोधी है। इन दोनों घोर शत्रुओं के मध्य में शिव सम स्थिति में यानी कि अविचल रूप में विराजित हैं। शिव जी ने न तो प्रभु श्रीराम से रावण को क्षमा करने का निवेदन किया और न ही अपने परम भक्त रावण को प्रभु श्रीराम से शत्रुता छोडऩे की सलाह दी। इसके बावजूद प्रभु श्रीराम कहते हैं कि शिव समान प्रिय मोहि न दूजा...। श्रीरामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं...

शिव द्रोही मम भगत कहावा, सो नर सपनेहुं मोह न पावा।

संकर विमुख भगति चह मोरी, सो नारकी मूढ़ मति थोरी।

आखिर ऐसा क्यों? शिव जी स्वयं त्रिकालदर्शी, मत्युंजय महाकाल हैं। शिव जी चाहते तो अपने परम भक्त रावण को मृत्यु से बचा सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि उन्हें ज्ञात था कि उनके दोनों ओर उनके ही प्रिय प्रभु श्रीराम स्वयं यह लीला कर रहे हैं। एक ओर राम रूप में तो दूसरी ओर अहंकार रूपी रावण के रूप में स्वयं प्रभु श्रीराम ही हैं। शिव जी ने अपने इस अद्भुत अनुभव को श्रीरामचरित मानस में तुलसीदास जी से इस चौपाई के माध्यम से कहलवाया है...

सियाराम मैं सब जग जानी, करहुं प्रनाम जोरि जुग पानी। अर्थात सियाराममय इस जगत को जानना ही वास्तविक ज्ञान और शिव जी की तरह सम स्थिति को प्राप्त करना है, लेकिन राहुल बाबा इस ज्ञान से अनभिज्ञ हैं, इसलिए वे हिन्दुओं के वोट बटोरने के लिए स्वयं को सिर्फ शिव भक्त दिखाने का दिखावा कर रहे हैं, जिससे उन्हें कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं है।

इसलिए विवादों में घिरा राहुल का मंदिर दर्शन

गुजरात में वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में राहुल बाबा ने 26 मंदिरों की यात्रा की थी, लेकिन एक भी मस्जिद में नहीं गए थे। गुजरात में राहुल बाबा ने जाति समुदायों पर आधारित मंदिरों की भी यात्रा की। उन्होंने कभी आदिवासी समुदाय की देवी अम्बाजी मंदिर तो कभी पटेल समुदाय से जुड़े अक्षरधाम मंदिर में दर्शन किए, लेकिन उत्तर प्रदेश चुनाव में राहुल बाबा मंदिरों में जाने के लिए ज्यादा उत्सुक नहीं दिखे। यहां कारण था मुस्लिम आबादी। मंदिर दर्शन से उ.प्र. के मुस्लिम मतदाता नाराज हो सकते थे। कहा जा रहा है कि राहुल बाबा ने 2019 चुनाव में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए अभी से शॉफ्ट हिन्दुत्व का कार्ड अपना लिया है।

धर्म से प्रभावित हैं म.प्र. की 50 फीसदी सीटें

पिछले एक वर्ष में देश के कई राज्यों में चुनाव हुए। इनमें प्रचार के दौरान राहुल बाबा ने सबसे ज्यादा मंदिरों की यात्रा की। वर्ष 2017 में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने राहुल बाबा को जनेऊधारी हिन्दू और शिव भक्त बना दिया था। कांग्रेस का मानना है कि मध्यप्रदेश के आधा दर्जन से अधिक मंदिरों का राज्य की 50 फीसदी सीटों पर खासा प्रभाव पड़ेगा। एक रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश में कुल 230 में से 109 सीटों पर आठ प्रमुख धर्मस्थलों का प्रभाव है। यही कारण है कि राहुल बाबा इन धार्मिक स्थलों पर मत्था टेकने पहुंच जाते हैं।

Updated : 31 Oct 2018 1:10 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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