Home > MP Election 2018 > ग्वालियर-चम्बल की तीन सीटों पर हमेशा क्यों चलता है कांग्रेस का जादू ?

ग्वालियर-चम्बल की तीन सीटों पर हमेशा क्यों चलता है कांग्रेस का जादू ?

भिंड जिले की लहार, गुना की राघौगढ़, शिवपुरी की पिछोर पर भाजपा को नहीं मिलती जीत, क्या ये इत्तफाक है या पार्टियों के बीच कोई गुप्त समझौता, जनता के मन में उठ रहे कई सवाल

ग्वालियर-चम्बल की तीन सीटों पर हमेशा क्यों चलता है कांग्रेस का जादू ?
X

स्वदेश वेब डेस्क। ग्वालियर चम्बल संभाग की 34 विधानसभा सीटों में से तीन सीट ऐसी हैं जिन्हें कांग्रेस परिणाम आने से पहले ही अपने खाते में जोड़कर रख लेती हैं ये हैं भिंड जिले की लहार विधानसभा सीट, गुना जिले की राघौगढ़ विधानसभा सीट और शिवपुरी जिले की पिछोर विधानसभा सीट। इन सीटों पर पिछले लम्बे समय से कांग्रेस का कब्जा है। जो अब अभेद किले का रूप लेता जा रहा है।

1956 में मध्यप्रदेश के गठन के बाद से अब तक यहाँ दो ही बड़े दल सत्ता की कुर्सी पर बैठते रहे हैं ये हैं कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी। ग्वालियर चम्बल संभाग का भी इसमें बहुत बड़ा योगदान है। यहाँ चुनकर आये विधायक मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक बने। लेकिन पिछले कुछ दशकों से ग्वालियर चम्बल संभाग की 34 सीटों में से तीन सीटें अबूझ पहेली बनी हुई हैं। यहाँ से लगातार कांग्रेस जीत रही है और भाजपा को हार का सामना करना पड़ रहा है। अब यहाँ ये समझना जरूरी है कि पिछले 15 सालों से सत्ता में रहने के बाद भी भाजपा इन सीटों को नहीं छीन पाई। राजनीति के पंडित मानते हैं कि ऊपर स्तर पर दोनों पार्टियों में शायद कोई गुप्त समझौता हो जाता है, जिसके चलते कांग्रेस को । पिछले कुछ वर्षों के परिणाम देखकर जनता यानि वोटर भी अब सवाल पूछने लगा है कि क्या इन तीनों सीटों पर भाजपा सच में ही जीतना नहीं चाहती या कांग्रेस प्रत्याशी की रणनीति को समझ नहीं पाती और चुनाव हार जाती है।

आंकड़ों पर निगाह दौड़ाएंगे तो भिंड जिले की लहार विधानसभा सीट पर डॉ. गोविन्द सिंह कांग्रेस के टिकट पर 1990 से लगातार जीतते आ रहे हैं। यहाँ से पिछले चुनाव में यानि 2013 में गोविन्द सिंह ने भाजपा के रसाल सिंह को हराया था। गोविन्द सिंह को 53012 वोट मिले जबकि रसाल सिंह को 46739 वोट मिले थे और गोविन्द सिंह ये चुनाव 6273 मतों के अंतर से जीत लिया । इससे पहले 2008 में गोविन्द सिंह के विरुध्द भाजपा ने कमजोर प्रत्याशी मुन्नीदेवी त्रिपाठी को खड़ा किया जो अपनी जमानत भी नहीं बचा पाईं। मुन्नी देवी को मात्र 2918 वोट मिले थे जबकि दूसरे नंबर पर बीएसपी के रोमेश महंत रहे थे। जिन्हें 52867 वोट मिले और गोविन्द सिंह को 57745 वोट मिले थे। गोविन्द सिंह ने ये चुनाव 4878 मतों के अंतर से जीता। इससे पहले 2003 में गोविन्द सिंह के विरुद्ध भाजपा ने अम्बरीष शर्मा गुड्डू को मैदान में उतारा था लेकिन वे अपनी जमानत ही जब्त करा बैठे। दूसरे नंबर पर बीएसपी प्रत्याशी रामशंकर सिंह रहे थे . कांग्रेस के गोविन्द सिंह को 54633 वोट मिले, बीएसपी के रामशंकर सिंह को 50548 वोट मिले और गोविन्द सिंह 4085 मतों के अंतर से चुनाव जीत गए जबकि अम्बरीष शर्मा गुड्डू को केवल 8621 वोट ही मिल पाए।

लहार में डॉ. गोविन्द सिंह की जीत का कारण लोगों के सतत संपर्क में रहना बताया जाता है। इसी के चलते उनका वोट परंपरागत हो गया है। उनको वोट देने वाला मतदाता यहाँ वहां भटकता नहीं है। गोविन्द सिंह से जुड़े लोग बताते हैं कि जब विधानसभा चलती है वे तभी भोपाल जाते हैं। वे अधिकांश समय क्षेत्र में ही रहते है और रोज चार से पांच गाँव में जाते हैं। वहीँ भाजपा यहाँ से हर चुनाव में प्रत्याशी बदल देती है और शायद इसी का उसे नुकसान उठाना पड़ता है। हालाँकि इस बार यहाँ से भाजपा ने पिछला चुनाव हारे रसाल सिंह को ही मैदान में उतारा है। जानकार बताते हैं यहाँ भाजपा के स्टार प्रचारक ना के बराबर ही लहार पहुँचते आते हैं। इस बार के चुनाव में भी केवल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की एक सभा हुई उसके अलावा भाजपा उम्मीदवार रसाल सिंह के समर्थन में कोई भी बड़ा नेता नहीं पहुंचा। ऐसा ही कुछ पिछले चुनावों में देखा गया है कि भाजपा के बड़े नेता प्रचार के लिए लहार नहीं जाते।

अब बात करते है गुना जिले की राघौगढ़ विधानसभा सीट की। ये सीट किले की सीट कही जाती है। यहाँ 1977 से लगातार कांग्रेस का इस सीट पर कब्जा है। 2013 में इस सीट से दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह चुनाव जीते थे। इन्हें 98041 वोट मिले थे जबकि उनके सामने खड़े भाजपा के राधेश्याम धाकड़ को 39837 वोट मिले और जयवर्धन 58204 वोटों से चुनाव जीत गए। 2008 में कांग्रेस से मूलचंद दादा भाई चुनाव में उतरे थे जबकि भाजपा से भूपेंद्र सिंह रघुवंशी थे। मूलचंद को 40019 वोट मिले थे जबकि भूपेंद्र सिंह को 32331 वोट मिले और भूपेंद्र सिंह 7688 वोटों से चुनाव हार गए। 2003 में यहाँ से मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे उनके सामने भाजपा से शिवराज सिंह चौहान थे। इस चुनाव में दिग्विजय सिंह को 58233 वोट मिले थे और शिवराज सिंह को 37069 वोट मिले शिवराज सिंह 21164 वोटों से चुनाव हार गए थे। इस सीट पर इस बार कांग्रेस के जयवर्धन सिंह के सामने भूपेंद्र सिंह रघुवंशी मैदान में हैं। यहाँ पिछली बार की तरह ही इस बार भी भाजपा के किसी बड़े केंद्रीय नेता ने प्रचार नहीं किया। यहाँ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने केवल एक- एक सभा की। यहाँ कभी किसी लहर ने काम नहीं किया ना सत्ता विरोधी ना सत्ता पक्ष की। राघौगढ़ के लोग केवल किले को सामने देखकर वोट देते है इसलिए किले का प्रत्याशी जीतता है। इसके अलावा दिग्विजय सिंह, लक्ष्मण सिंह या जयवर्धन सिंह कोई भी यदि राघौगढ़ में होता है तो वो क्षेत्र की जनता के बीच जरूर पहुंचता है। शायद इसीलिए भाजपा की जीत के प्रयास विफल हो जाते हैं।

अंचल की तीसरी सीट है शिवपुरी जिले की पिछोर सीट। यहां भी केपी सिंह कक्काजू का रुतवा है। वे इस सीट से 1993 से लगातार विधायक हैं। ये सीट भी कांग्रेस की परंपरागत सीटों में गिनी जाती है। 2013 के चुनाव में केपी सिंह ने यहाँ से भाजपा के प्रीतम लोधी को 7113 वोट के अंतर से हराया था। केपी सिंह को 78995 वोट मिले थे जबकि प्रीतम लोधी को 71882 मिले थे। इससे पहले 2008 में केपी सिंह कक्काजू ने भारतीय जनशक्ति पार्टी के प्रत्याशी को हराया था। इस चुनाव में केपी सिंह को 55081 वोट मिले और भारतीय जनशक्ति पार्टी के प्रत्याशी भैया साहब लोधी को 28246 वोट मिले यहाँ इस साल बीजेपी के प्रत्याशी जगराम सिंह यादव की जमानत जब्त हो गई थी। केपी सिंह ने ये चुनाव 26835 वोटों से जीता। इस साल केपी सिंह और प्रीतम लोधी फिर आमने सामने हैं। दोनों ही प्रत्याशी धनबल और बाहुबल से संपन्न हैं। लेकिन सवाल ये है कि क्या प्रीतम केपी सिंह का जीत का रथ रोक पाएंगे ? इस बार प्रचार की बात की जाये तो प्रीतम के पक्ष में भाजपा की तरफ से सांसद हेमामालिनी ने सभा की और शोले के डायलॉग बोलकर मतदाता को रिझाने का प्रयास किया। यहाँ गृहमंत्री राजनाथ सिंह की सभा भी होनी थी लेकिन अंतिम समय में कार्यक्रम में फेरबदल किया गया और भोजपुरी कलाकार रविकिशन की सभा हुई। राजनाथ सिंह की सभा के कार्यक्रम में अचानक बदलाव भी सवाल खड़े करता है। राजनीति के विशेषज्ञ पिछोर सीट को अब कांग्रेस की सीट मानकर इसकी गिनती करने लगे हैं। अब सवाल ये खड़ा होता है क्यों यहाँ से भाजपा नहीं जीत पाती। क्या इच्छा शक्ति की कमी है या कोई गुप्त गठबंधन। जो केपी सिंह को फायदा पहुंचाता है। हालाँकि स्थानीय लोग बताते हैं कि केपी सिंह का पिछोर में दबदबा चलता है प्रशासनिक अफसर भी कोई उनकी मर्जी के बगैर कोई काम नहीं करते। वे अपने धनबल और बाहुबल का उपयोग कर अपनी सीट निकाल ले जाते हैं।

उल्लेखनीय है कि भारतीय जनता पार्टी विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है यहाँ बहुत बड़े बड़े रणनीतिकार हैं। दिल्ली से लेकर प्रदेशों में होने वाली हर छोटी बड़ी गतिविधि पर पार्टी संगठन की नजर रहती है फिर क्या वजह है ग्वालियर चम्बल अंचल की इन तीन सीटों लहार , राघौगढ़ और पिछोर पर पिछले लम्बे समय से कांग्रेस अंगद के पैर की तरह जमी बैठी है और भाजपा इसे हिला नहीं पा रही।

Updated : 12 Dec 2018 4:23 PM GMT
Tags:    
author-thhumb

Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


Next Story
Top