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रायबरेली में दो बार खिल चुका है कमल, नेहरू-गांधी परिवार के दो सदस्यों की जमानत हो चुकी है जब्त

भाजपा ने इस बार पिछले चुनाव के उपविजेता और वर्तमान में योगी सरकार के मंत्री दिनेश प्रताप सिंह को दोबारा मैदान में उतारा है। दिनेश के सामने नेहरू गांधी परिवार के गढ़ में कमल खिलाने की बड़ी चुनौती है।

रायबरेली में दो बार खिल चुका है कमल, नेहरू-गांधी परिवार के दो सदस्यों की जमानत हो चुकी है जब्त
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रायबरेली। 2019 के आम चुनाव में देश की संसद को सर्वाधिक 80 सांसद देने वाले उत्तर प्रदेश में देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के खाते में सिर्फ एक सीट आई। उस सीट का नाम है रायबरेली। तब सोनिया गांधी यहां से जीतकर लोकसभा पहुंची थीं।

सोनिया गांधी के राज्यसभा के लिए निर्वाचित होने के बाद बड़ा सवाल था कि अब पार्टी यहां से किसे मौका देगी। काफी विचार विमर्श और लंबी बैठकों के बाद कांग्रेस ने पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के कंधों पर रायबरेली का गढ़ बचाने की जिम्मेदारी दी है। बता दें, राहुल गांधी ने शुक्रवार को रायबरेली से अपना नामांकन दाखिल किया है।

कांग्रेस के गढ़ में कमल खिला

11वीं लोकसभा के गठन के लिए 1996 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस ने रायबरेली सीट से शीला कौल के बेटे विक्रम कौल को अपना उम्मीदवार बनाया। लेकिन यह पहला चुनाव था जब कांग्रेस रायबरेली सीट पर जीतना तो दूर लड़ाई से भी बाहर चली गई। इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार विक्रम कौल की जमानत तक जब्त हो गई। कौल को 25,457 वोट मिले जो कुल पड़े वोट का महज 5.29% था। विजयी भाजपा प्रत्याशी अशोक सिंह के खाते में 163390 (33.93%) वोट आए। नतीजों में भाजपा प्रत्याशी को 33,887 मतों से विजय हासिल हुई। वहीं दूसरे नंबर पर रहे जनता दल प्रत्याशी के खाते में 129503 (26.90%) और बसपा प्रत्याशी को 119422 (24.80%) मिले। कांग्रेस इस चुनाव में चौथे स्थान पर रही।

1998 में दोबारा खिला कमल

1998 के आम चुनाव में भाजपा प्रत्याशी अशोक सिंह को फिर जीत मिली। अशोक ने समाजवादी पार्टी (सपा) के उम्मीदवार सुरेंद्र बहादुर सिंह को 40,722 वोटों से हराया। इस चुनाव में कांग्रेस की ओर से शीला कौल की बेटी दीपा कौल उम्मीदवार थीं। 1996 में दीपा के भाई की जमानत जब्त हुई थी तो 1998 में दीपा की भी जमानत जब्त हो गई। भाई की ही तरह दीपा भी चौथे नंबर पर रहीं थीं। 1999 के आम चुनाव में भाजपा की टिकट पर गांधी-नेहरू परिवार से संबंध रखने वाले अरुण नेहरू मैदान में उतरे। मगर उन्हें सफलता नहीं मिली।

2004 में रायबरेली से सोनिया ने लड़ा पहला चुनाव

2004 में जब राहुल गांधी ने चुनावी राजनीति में कदम रखा तो सोनिया गांधी ने अमेठी सीट उनके लिए छोड़ दी और खुद रायबरेली से चुनाव लड़ने लगीं। 2004 के लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी ने सपा के अशोक कुमार सिंह को करारी शिकस्त दी। सोनिया ने यह चुनाव 2,49,765 वोटों से भारी अंतर से जीता। 2009 के चुनाव में सोनिया गांधी रायबरेली सीट को बरकरार रखने में कामयाब रहीं। इस चुनाव में सोनिया ने बसपा के टिकट पर उतरे आरएस कुशवाहा के खिलाफ 3,72,165 वोटों से एक और बड़ी जीत दर्ज की।

पिछले दो चुनाव का हाल

2014 के आम चुनाव में सोनिया गांधी ने भाजपा के अजय अग्रवाल को 352,713 वोटों के अंतर से हराया। पिछले चुनाव यानी 2019 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की लेकिन इस बार जीत का अंतर कम हो गया। इस चुनाव में सोनिया गांधी को 533,687 (55.78%) वोट जबकि भाजपा की तरफ से उतरे दिनेश प्रताप सिंह को 365,839 (38.35%) वोट मिले। इस तरह से 2019 में सोनिया 1,67,848 वोटों से अपनी सीट बरकरार रखने में कामयाब हुईं। 2014 में भाजपा का वोट शेयर 21.05 फीसदी था, जो पिछले चुनाव में 17.3 फीसदी बढ़कर 38.35 हो गया।

2024 का चुनाव

भाजपा ने इस बार पिछले चुनाव के उपविजेता और वर्तमान में योगी सरकार के मंत्री दिनेश प्रताप सिंह को दोबारा मैदान में उतारा है। दिनेश के सामने नेहरू गांधी परिवार के गढ़ में कमल खिलाने की बड़ी चुनौती है। बता दें, 2019 में राहुल गांधी को गांधी परिवार का गढ़ माने जाने वाली अमेठी सीट से भाजपा उम्मीदवार स्मृति ईरानी से 50 हजार से ज्यादा मतों के अंतर से शिकस्त दी थी। राजनीतिक विशलेषकों के अनुसार, रायबरेली सीट से राहुल गांधी की राह आसान नहीं होगी। भाजपा की डबल इंजन की सरकार ने इस क्षेत्र में विकास कार्य करवाएं हैं, जिसका फायदा भाजपा को मिल सकता है।

Updated : 6 May 2024 2:35 PM GMT
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स्वदेश डेस्क

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