Mahalaya 2024 date: Mahalaya 2024 date: पितृ पक्ष का समापन और नवरात्रि की शुभ शुरुआत का दिन

Mahalaya 2024 date: पितृ पक्ष का समापन और नवरात्रि की शुभ शुरुआत का दिन
महालया के दिन पितृ पक्ष का समापन होता है और नवरात्रि की शुरुआत का संकेत मिलता है। जानें महालया का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व, तर्पण की प्रक्रिया, और नवरात्रि के पहले दिन की विशेष पूजा विधियां

महालया वह विशेष दिन है जब पितृ पक्ष का समापन होता है और नवरात्रि की तैयारियां शुरू होती हैं। आज यानी बुधवार को महालया के अवसर पर लोग अपने दिवंगत पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए गंगा घाटों पर इकट्ठा होंगे। इस दिन गंगा तटों पर तर्पण की विशेष रस्में निभाई जाती हैं, जिनका उद्देश्य अपने पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान करना है। महालया के साथ ही बंगाली रीति-रिवाजों के अनुसार दुर्गा पूजा की शुरुआत मानी जाती है, जो नवरात्रि के एक दिन पहले आती है।

महालया का महत्व और पूजा विधि

महालया का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है। कालीबाड़ी दुर्गा मंदिर के महासचिव विलास कुमार बागची ने बताया कि महालया के दिन सुबह चार बजे से महालया पाठ की शुरुआत होती है, जिसमें वीरेंद्र कृष्ण भद्र के द्वारा किया गया महालया पाठ प्रमुख होता है। इस पाठ को सुनने के बाद बंगाली समुदाय के लोग दुर्गा पूजा की तैयारियों में जुट जाते हैं। इस दिन को दुर्गा पूजा की शुरुआत के रूप में देखा जाता है क्योंकि इसी दिन मां दुर्गा की प्रतिमाओं की आंखें बनाई जाती हैं, जिसे "चक्षु दान" कहा जाता है। इसके बाद ही दुर्गा पूजा के लिए प्रतिमा पूरी होती है।

पितृ पक्ष का समापन और तर्पण की प्रक्रिया

पितृ पक्ष, जो कि 15 दिन तक चलता है, महालया के दिन समाप्त होता है। यह समय विशेष रूप से उन पूर्वजों को समर्पित होता है जो अब इस संसार में नहीं हैं। इस दौरान श्राद्ध और तर्पण के माध्यम से उन्हें जल, भोजन और अन्य वस्त्र अर्पित किए जाते हैं। महालया के दिन इस तर्पण का विशेष महत्व होता है। लोग गंगा या अन्य पवित्र नदियों के तट पर जाकर अपने पूर्वजों के लिए तर्पण करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।

नवरात्रि की शुरुआत और कलश स्थापना का महत्व

महालया के बाद अगले दिन से नवरात्रि का प्रारंभ हो जाता है। इस साल आश्विन शुक्ल प्रतिपदा यानी 3 अक्टूबर को नवरात्रि की शुरुआत होगी। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है, जिसे बेहद शुभ और मंगलकारी माना जाता है। मां दुर्गा की पूजा-आराधना के साथ कलश स्थापना का विशेष महत्व है। यह कलश मां दुर्गा की शक्ति और आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है। कलश स्थापना के साथ ही नवरात्रि की नौ दिनों की पूजा का शुभारंभ होता है, जिसमें देवी के नौ रूपों की आराधना की जाती है।

कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त

इस साल कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 3 अक्टूबर को सुबह 5 बजे से लेकर दोपहर 3 बजे तक रहेगा। विभिन्न पंचांगों के अनुसार कलश स्थापना के लिए अलग-अलग शुभ मुहूर्त बताए गए हैं:

प्रतिपदा तिथि: सुबह से देर रात तक

हस्त नक्षत्र: शाम 3.30 बजे तक

शुभ योग मुहूर्त: प्रातः 5.44 से 7.12 बजे तक

चर मुहूर्त: सुबह 10.10 से 11.38 बजे तक

लाभ मुहूर्त: दोपहर 11.38 से 1.07 बजे तक

अमृत मुहूर्त: दोपहर 1.07 से 2.35 बजे तक

अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 11.15 से 12.02 बजे तक

शुभ मुहूर्त: शाम 4.04 से 5.33 बजे तक

यहां ध्यान देने वाली बात है कि विभिन्न पंचांगों में मुहूर्त में थोड़ा अंतर हो सकता है, इसलिए अपने पारिवारिक पुजारी या ज्योतिषी से परामर्श करके ही सही समय का चयन करें।

महालया से नवरात्रि तक की तैयारी

महालया के दिन के बाद से बंगाली समाज और अन्य श्रद्धालु दुर्गा पूजा और नवरात्रि की तैयारियों में जुट जाते हैं। महालया के दिन को शुभ और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस दिन मां दुर्गा के आगमन की घोषणा होती है। लोग इस दिन को दुर्गा पूजा की पूर्व संध्या के रूप में मानते हैं और महालया पाठ सुनते हुए अपनी धार्मिक और मानसिक तैयारी करते हैं।

नवरात्रि के दौरान विशेष पूजा विधि

नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। पहले दिन शैलपुत्री की पूजा की जाती है और इसी तरह प्रतिदिन एक अलग रूप की आराधना की जाती है। नवरात्रि के दौरान घरों में विशेष पूजा और व्रत रखे जाते हैं। लोग मां दुर्गा से शक्ति और आशीर्वाद की कामना करते हैं। दुर्गा पूजा के दौरान बंगाल में विशेष धूमधाम रहती है। बड़े-बड़े पंडालों में मां दुर्गा की भव्य प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं और नृत्य, संगीत, और धार्मिक आयोजन होते हैं।

महालया और दुर्गा पूजा का सांस्कृतिक महत्व

महालया न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका सांस्कृतिक महत्व भी है। विशेष रूप से बंगाली समुदाय में महालया का विशेष स्थान है। यह दिन मां दुर्गा के पृथ्वी पर आगमन का प्रतीक माना जाता है। महालया पाठ को सुनना, तर्पण करना और दुर्गा पूजा की तैयारी करना इस दिन की प्रमुख गतिविधियां होती हैं। महालया के साथ ही पूरा समाज दुर्गा पूजा के रंग में रंग जाता है और उत्सव की शुरुआत हो जाती है।

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