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1200 करोड़ रूपए में तैयार यदाद्री मंदिर भक्तों के लिए खुला, 125 किलो सोने का है गुंबद

1200 करोड़ रूपए में तैयार यदाद्री मंदिर भक्तों के लिए खुला, 125 किलो सोने का है गुंबद
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हैदराबाद। आंध्र प्रदेश से 2014 में अलग होने के बाद से तेलांगना के लोगों को तिरुपति मंदिर के आंध्र के हिस्से में जाने से कमी खल रही थी। तेलांगना सरकार ने इस कमी को दूर करने के लिए तेलांगना के पौराणिक महत्व के यदाद्री लक्ष्मी-नृसिंह मंदिर को 1800 करोड़ रुपए की लागत से तिरुपति की तर्ज पर भव्य रूप दे दिया है। तेलांगना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने आज मंदिर का उद्घाटन किया। उन्होंने नवनिर्मित यदाद्री मंदिर पहुंचकर भगवान् नरसिंह-लक्ष्मी भगवान की पूजा की।

14.5 एकड़ क्षेत्रफल -


यदाद्री लक्ष्मी-नरसिम्हा स्वामी मंदिर हैदराबाद से करीब 80 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर स्थित है। मंदिर का परिसर 14.5 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। साल 2016 में शुरू हुए मंदिर पुनर्निर्माण पिछले साढ़े पांच वर्षों में 1200 करोड़ रुपये की लागत से हुआ है।

2.5 लाख टन ब्लेक ग्रेनाइट -


मंदिर का पुनर्निर्माण वैष्णव संत चिन्ना जियार स्वामी के मार्गदर्शन में शास्त्रों के अनुसार किया गया है। इस भव्य मंदिर का डिजाइन प्रसिद्ध फिल्म सेट डिजाइनर आनंद साई ने तैयार किया है। इसकी खासियत ये है कि पुनर्निर्माण में सीमेंट का उपयोग नहीं किया गया बल्कि 2.5 लाख टन ब्लेक ग्रेनाइट लगाया गया है। जिसे विशेष रूप से प्रकाशम, आंध्र प्रदेश से लाया गया है। इसके अलावा मंदिर के प्रवेश द्वार पीतल से बनाए गए हैं। जिसमें सोना जड़ा गया है। मंदिर के गोपुरम अर्थात गर्भगृह के गुंबद में 125 किलो सोना लग रहा है।

5 सभ्यताओं की झलक -


यादाद्री मंदिर का विमान गोपुरम अर्थात गर्भगृह के ऊपर बने गुंबद पर 125 किलो सोने लगाया गया है। मंदिर का मुख्य द्वार, जिसे राजगोपुरम कहा जाता है, करीब 84 फीट ऊंचा है। इसके अलावा मंदिर के 6 और गोपुर है। राजगोपुरम के आर्किटेक्चर में 5 सभ्यताओं द्रविड़, पल्लव, चौल, चालुक्य और काकातिय की झलक देखने को मिलेगी ।

रक्षक हनुमान प्रतिमा -


इस मंदिर में लक्ष्मी-नृसिंह भगवान मंदिर के मुकजी द्वार पर हनुमान जी की एक खड़ी प्रतिमा का निर्माण किया गया है। प्रतिमा को 25 फुट के स्टैंड पर खड़ा किया जा रहा है। जिसके कारण ये कई किमी दूरी से दिखाई देगी। प्रतिमा के द्वार पर खड़े होने के कारण इसे रक्षक हनुमान कहा जाता है।

पौराणिक महत्व -


स्कन्द पुराण की कथा के अनुसार महर्षि ऋष्यश्रृंग के पुत्र यद ऋषि ने इस यदाद्री पर्वत पर भगवान् विष्णु की तपस्या की थी। उनकी तपस्या से खुश होकर भगवान ने नृसिंह रूप में दर्शन दिए थे। महर्षि यद की प्रार्थना पर भगवान नृसिंह तीन रूपों ज्वाला नृसिंह, गंधभिरंदा नृसिंह और योगानंदा नृसिंह में यहीं विराजित हो गए। दुनिया में एकमात्र ध्यानस्थ पौराणिक नृंसिंह प्रतिमा इसी मंदिर में है।यदाद्री पर्वत को पंच नृसिंह के स्थान के रूप में भी जाना जाता है।

Updated : 29 March 2022 7:48 AM GMT
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स्वदेश डेस्क

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