Holi 2025: आखिर क्यों होली के दिन छोटे बच्चों को पहनाई जाती है मेवे की माला, जानिए इसके पीछे की पौराणिक कथा

आखिर क्यों होली के दिन छोटे बच्चों को पहनाई जाती है मेवे की माला, जानिए इसके पीछे की पौराणिक कथा
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होली पर आपने कभी लड्डू गोपाल और बच्चों को मेवे की माला पहनाने के बारे में सुना है। अगर नहीं तो इस परंपरा को भारत के कई राज्यों में मनाया जाता हैं।

Holi 2025: होली का त्योहार देश भर में 14 मार्च को मनाया जाएगा। इस खास दिन के मौके पर हर कोई कुछ पार्टी का प्लान करते हैं। होली के मौके पर कई परंपरा और मान्यताएं भी निभाई जाती है जिसके बारे में कम लोग ही जानते हैं। होली पर आपने कभी लड्डू गोपाल और बच्चों को मेवे की माला पहनाने के बारे में सुना है। अगर नहीं तो इस परंपरा को भारत के कई राज्यों में मनाया जाता हैं। और यह खासकर होली पर निभाई जाती है।

परंपरा के पीछे छिपी है पौराणिक कथा

आपको बताते चलें कि, इस खास परम्परा के पीछे पौराणिक कथा विद्यमान हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु की पूजा करने को लेकर दैत्यराज हिराण्यकश्यप ने होली के आठ दिनों पहले तक प्रहलाद को मारने की तमाम कोशिशे कीं, लेकिन भगवान की कृपा से प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ.

इसके बाद हिरण्यकश्यप अपनी होलिका के पास गया और उसे आदेश दिया कि वो प्रहलाद को लेकर अग्नि पर बैठ जाए, जिससे प्रहलाद जलकर भस्म हो जाए. क्योंकि होलिका को ब्रह्मा जी से ये वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे नहीं जलाएगी. होलिका प्रहलाद को अग्नि पर लेकर बैठने को तैयार हो गई. इसके बाद हिरण्यकश्यप ने अपने सैनिकों से कहा कि वो प्रहलाद को लेकर आएं. दैत्यराज का आदेश मानकर सैनिक प्रहलाद को लेने चले गए।

माता ने सुरक्षा के लिए पहनाई थी मेवे की माला

आपको बताते चलें कि, जब सैनिक जब प्रहलाद को लेने महल पहुंचे तो उनकी मांं उन्हें भोजन खिला रही थीं. प्रहलाद की मां ये जानती थीं कि उनके पुत्र को जलाकर मार दिया जाने वाला है. सैनिक जब प्रहलाद को लेकर जाने लगे तो उनकी मां ने सूखे फल और मेवे बांधकर प्रहलाद को पहना दिया, ताकि रास्ते में उसे भूख लगे तो वो उसे खा सके. तब से ही होली के दिन बच्चों के गले में सूखे मेवे की माला पहनाने की प्रथा शुरू हो गई।

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