Tirupati Laddu Row: सुप्रीम कोर्ट ने CM नायडू को लगाई फटकार, कहा - भगवान को राजनीति से दूर रखें

Supreme Court

देश भर में शराब बंदी के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका

Tirupati Laddu Row : आंध्रप्रदेश के तिरुपति मंदिर में चल रहे लड्डू विवाद की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान अदालत ने मिलावट के ठोस साक्ष्य प्रस्तुत न करने के लिए सीएम चंद्रबाबू नायडू की सरकार को फटकार लगाई। अदालत अपने ऑर्डर ने कहा कि, भगवान को राजनीति से दूर रखें।

सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को जस्टिस भूषण आर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने मामले की सुनवाई की। सुनवाई के दौरान सुब्रमण्यम स्वामी के वकील ने बताया कि, मंदिर की रसोई में सामग्री बिना किसी जांच के पहुंच जाती है। इसके लिए एक सुपरविजन होना चाहिए। सुनवाई के दौरान आंध्रप्रदेश सरकार की ओर से अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और टीटीडी की ओर से सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ मौजूद थे। अदालत के समक्ष सीएम द्वारा लगाए आरोपों की जाँच की मांग की गई थी।

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि, "मौजूदा याचिकाओं में कहा गया है कि करोड़ों भारतीयों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई गई है। आंध्र के माननीय सीएम ने सार्वजनिक रूप से बयान दिया था कि तिरुपति में लड्डू बनाने के लिए जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल किया गया था। हालांकि कुछ प्रेस रिपोर्ट्स में यह भी दिखाया गया है कि टीटीडी के सीईओ ने भी बयान दिया था कि मिलावटी घी का इस्तेमाल कभी नहीं किया गया।"

चार याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें स्वतंत्र जांच और धार्मिक ट्रस्टों के मामलों और विशेष रूप से प्रसादम के निर्माण को विनियमित करने के निर्देश देने सहित विभिन्न प्रार्थनाएं शामिल हैं।

लूथरा ने टीटीडी की ओर से पेश होते हुए कहा कि, 6 और 12 जुलाई 2024 को आपूर्ति किए गए चार टैंकरों के नमूने लिए गए थे। इस पर अदालत ने पूछा कि, तो यह केवल आपकी धारणा है कि अन्य टैंकरों में भी मिलावट थी? इसके जवाब में लूथरा ने कहा - हां, बाद में जो सामने आया उसके आधार पर।

अदालत ने आदेश में कहा कि, नमूनों का विश्लेषण करवाना ज़रूरी पाया गया। बेशक मामले में जांच ज़रूरी थी और 25 सितंबर की एफआईआर की जांच के लिए 26 सितंबर को एसआईटी का गठन किया गया। यह देखा जा सकता है कि मुख्य पुजारी का बयान एफआईआर से पहले दिया गया था, जो 18 तारीख को दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, "हमारा प्रथम दृष्टया मानना ​​है कि जब जांच का आदेश दिया गया था, तो उच्च संवैधानिक पदाधिकारियों द्वारा जानकारी सार्वजनिक करना उचित नहीं था। न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने कहा कि, "इससे करोड़ों भक्तों की भावनाओं पर असर पड़ने की संभावना थी (यह स्पष्ट नहीं है कि इस हिस्से को आदेश में शामिल किया गया या नहीं)."

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