महिला खतना पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा - 'क्या महिलाएं पालतू मवेशी हैं'
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नई दिल्ली। बोहरा मुस्लिम समुदाय में औरतों का खतना करने की प्रथा के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्या महिलाएं पालतू मवेशी हैं। उनकी अपनी पहचान है। दरअसल जब सुप्रीम कोर्ट से ये कहा गया कि खतना करवाने वाली महिला के पति की पसंदीदा होती हैं तब चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने ये टिप्पणी की। इस मामले पर सुनवाई कल यानि 31 जुलाई को भी जारी रहेगी।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि पहली नजर में ये प्रथा महिलाओं की गरिमा को चोट पहुंचाने वाली लगती है। याचिकाकर्ता सुनीता तिवारी के वकील ने कहा कि बोहरा मुस्लिम समुदाय इस व्यवस्था को धार्मिक नियम कहता है। बोहरा समुदाय का मानना है कि 7 साल की लड़की का खतना कर दिया जाना चाहिए। इससे वो शुद्ध हो जाती हैं। ऐसी औरतें पति की भी पसंदीदा होती हैं। तब जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि कि सवाल यह है कि कोई भी महिला के जननांग को क्यों छुए? वैसे भी धार्मिक नियमों के पालन का अधिकार इस सीमा से बंधा है कि नियम 'सामाजिक नैतिकता' और 'व्यक्तिगत स्वास्थ्य' को नुकसान पहुंचाने वाला न हो।
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि खतना अप्रशिक्षित लोगों द्वारा अंजाम दिया जाता है। कई मामलों में बच्ची का इतना ज्यादा खून बह जाता है कि वो गंभीर स्थिति में पहुंच जाती है। कुछ बोहरा महिलाओं की तरफ से वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि उनकी मुवक्किल का बचपन मे खतना किया गया। वो अब तक इसकी मानसिक पीड़ा से बाहर नहीं आ पाई है। खतना में आमतौर पर क्लिटोरल हुड (भगशिश्न के बाहर का उभरा हुआ हिस्सा) काटा जाता है। इसके कुछ और तरीके भी होते हैं। सब पर प्रतिबंध लगना चाहिए। कल बोहरा मुस्लिम अंजुमन की तरफ से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी दलीलें रखेंगे।
पिछले 23 जुलाई को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने सभी पक्षों से लिखित दलीलें दाखिल करने का निर्देश दिया था। उसके पहले नौ जुलाई को केंद्र सरकार ने कहा था कि लड़कियों का खतना करना एक अपराध है और इसे धारा-25 के तहत सुरक्षा नहीं मिली है। पिछले 20 अप्रैल को कोर्ट ने अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल को सहयोग करने का निर्देश दिया था।
याचिकाकर्ता सुनीता तिवारी ने अपनी याचिका में कहा है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने दिसंबर 2012 में बच्चियों की खतना के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया था। इस प्रस्ताव पर भारत ने भी हस्ताक्षर किया था। याचिकाकर्ता ने कहा है कि इस प्रथा पर पूरे तरीके से रोक लगनी चाहिए। याचिका में कहा गया है कि ये संविधान की धारा-14 और 21 के साथ साथ राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों का उल्लंघन है।
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