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राम के बिना अयोध्या असंभव, ये तो वही, जहां राम उपस्थित : राष्ट्रपति

राष्ट्रपति कोविंद ने रामायण कॉन्क्लेव का शुभारम्भ किया

राम के बिना अयोध्या असंभव, ये तो वही, जहां राम उपस्थित : राष्ट्रपति
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अयोध्या। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने रविवार को राम नगरी अयोध्या में रामायण कॉन्क्लेव का उद्घाटन किया। साथ ही अयोध्या के पर्यटन विकास की कई परियोजनाओं का लोकार्पण एवं शिलान्यास किया। इसके बाद हनुमागढ़ी में दर्शन पूजन के बाद राष्ट्रपति श्रीराम जन्मभूमि परिसर पहुंचे। वहां उन्होंने रामलला के दर्शन कर पत्नी सविता कोविंद के साथ रामलला की आरती उतारी। इस दौरान प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, दोनों उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य एवं डा. दिनेश शर्मा और पर्यटन व संस्कृति मंत्री डा. नीलकंठ तिवारी भी मौजूद रहे।

अयोध्या के रामकथा पार्क में रामायण कॉन्क्लेव के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि राम के बिना अयोध्या असंभव है। अयोध्या तो वही है, जहां राम हैं। इस नगरी में प्रभु राम सदा के लिए विराजमान हैं। इसलिए यह स्थान सही अर्थों में अयोध्या है। राष्ट्रपति ने कहा कि अयोध्या का शाब्दिक अर्थ है, 'जिसके साथ युद्ध करना असंभव हो।' उन्होंने कहा कि रघु, दिलीप, अज, दशरथ और राम जैसे रघुवंशी राजाओं के पराक्रम एवं शक्ति के कारण उनकी राजधानी को अपराजेय माना जाता था। इसलिए इस नगरी का 'अयोध्या' नाम सर्वदा सार्थक है।

आदर्श आचार संहिता भी उपलब्ध -

उन्होंने कहा कि रामायण में दर्शन के साथ-साथ आदर्श आचार संहिता भी उपलब्ध है, जो जीवन के प्रत्येक पक्ष में हमारा मार्गदर्शन करती है। संतान का माता-पिता के साथ, भाई का भाई के साथ, पति का पत्नी के साथ, गुरु का शिष्य के साथ, मित्र का मित्र के साथ, शासक का जनता के साथ और मानव का प्रकृति एवं पशु-पक्षियों के साथ कैसा आचरण होना चाहिए, इन सभी आयामों पर, रामायण में उपलब्ध आचार संहिता, हमें सही मार्ग पर ले जाती है।

एक आदर्श व्यक्ति और एक आदर्श समाज -

राष्ट्रपति ने कहा कि रामचरितमानस में एक आदर्श व्यक्ति और एक आदर्श समाज दोनों का वर्णन मिलता है। रामराज्य में आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ आचरण की श्रेष्ठता का बहुत ही सहज और हृदयग्राही विवरण मिलता है- नहिं दरिद्र कोउ, दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध, न लच्छन हीना।। ऐसे अभाव-मुक्त आदर्श समाज में अपराध की मानसिकता तक विलुप्त हो चुकी थी। दंड विधान की आवश्यकता ही नहीं थी। किसी भी प्रकार का भेद-भाव था ही नहीं। राष्ट्रपति ने रामचरित मानस की चैपाई का उदाहरण दिया कि 'दंड जतिन्ह कर भेद जहँ, नर्तक नृत्य समाज। जीतहु मनहि सुनिअ अस, रामचन्द्र के राज।।'

रामकथा सुंदर करतारी, संसय बिहग उड़ावनि-हारी -

रामकथा के महत्व के विषय में चर्चा करते हुए राष्ट्रपति ने गोस्वामी तुलसीदास के कथन का हवाला दिया, 'रामकथा सुंदर करतारी, संसय बिहग उड़ावनि-हारी।' अर्थात राम की कथा हाथ की वह मधुर ताली है, जो संदेहरूपी पक्षियों को उड़ा देती है। उन्होंने कहा कि गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा था कि रामायण और महाभारत, इन दोनों ग्रन्थों में, भारत की आत्मा के दर्शन होते हैं।

शबरी का प्रसंग सामाजिक समरसता का अनुपम संदेश -

राष्ट्रपति ने अपने भाषण में जोड़ा कि रामायण में राम-भक्त शबरी का प्रसंग सामाजिक समरसता का अनुपम संदेश देता है। महान तपस्वी मतंग मुनि की शिष्या शबरी और प्रभु राम का मिलन, एक भेद-भाव-मुक्त समाज एवं प्रेम की दिव्यता का अद्भुत उदाहरण है। अपने वनवास के दौरान प्रभु राम ने युद्ध करने के लिए अयोध्या और मिथिला से सेना नहीं मंगवाई। उन्होंने कोल-भील-वानर आदि को एकत्रित कर अपनी सेना का निर्माण किया। अपने अभियान में जटायु से लेकर गिलहरी तक को शामिल किया। आदिवासियों के साथ प्रेम और मैत्री को प्रगाढ़ बनाया। राष्ट्रपति ने कहा कि इस रामायण कॉन्क्लेव की सार्थकता सिद्ध करने के लिए यह आवश्यक है कि राम-कथा के मूल आदर्शों का सर्वत्र प्रचार-प्रसार हो तथा सभी लोग उन आदर्शों को अपने आचरण में ढालें।

रामलला का दर्शनकर उतारी आरती -

रामायण कॉन्क्लेव का उद्घाटन करने के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने हनुमागढ़ी में दर्शन पूजन किया। फिर श्रीराम जन्मभूमि परिसर पहुंचकर उन्होंने रामलला के दर्शन किए और पत्नी सविता कोविन्द के साथ रामलला की आरती उतारी। रामलला के प्रधान पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने पूजा-अर्चना करवाई। इस दौरान राष्ट्रपति ने राम मंदिर का निर्माण कार्य भी देखा।

Updated : 12 Oct 2021 10:34 AM GMT
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स्वदेश डेस्क

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