मठाधीशों को खटक रहे हैं मोदी क्योंकि वे भारत के हितों से कोई समझौता नहीं कर रहे

नईदिल्ली/वेबडेस्क। पश्चिमी देशों की हर मुमकिन कोशिश के बावजूद रूस और यूक्रेन युद्ध पर भारत का रुख पिछले चार महीनों से बिलकुल नहीं बदला है। भारत किसी का पक्ष लिए बिना इस रुख पर कायम है कि युद्ध का समाधान केवल कूटनीति और संवाद से ही निकाला जा सकता है। भारत ने अब तक ना ही रूस की आलोचना की है और ना ही उसका पक्ष लिया है। संयुक्त राष्ट्र में भी भारत रूस के खिलाफ प्रस्तावों पर मतदान से गैरहाजिर रहा और गुटनिरपेक्षता की अपनी नीति पर बना रहा।
हर जगह है आज भारत
नई विश्व व्यवस्था में भारत का बढ़ता महत्व इस बात से भी जाहिर है कि वह हर तरह के समूहों का हिस्सा है, फिर चाहे ब्रिक्स हो या क्वॉड, जी-4 हो या जी20, एससीओ हो या सार्क - भारत हर जगह संतुलन बना कर चल रहा है। हालांकि भारत जी-7 का हिस्सा नहीं है लेकिन पिछले चार साल से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लगातार वहां आमंत्रित किया जा रहा है।या यूं कहें बुलाना पड़ रहा है। जी-7 के एक सत्र में मोदी ने गरीब देशों के लिए ऊर्जा की अहमियत पर जोर देते हुए कहा, आप सभी इस बात से सहमत होंगे कि ऊर्जा की उपलबधता केवल अमीरों का विशेषाधिकार नहीं होना चाहिए। एक गरीब परिवार का भी ऊर्जा पर बराबर अधिकार है. और आज जब भू-राजनीतिक तनाव के चलते ऊर्जा के दाम आसमान छू रहे हैं, इस बात को याद रखना और भी अहम हो गया है।
सबसे पहले अपना हित -
प्रधानमंत्री मोदी का दुनिया को संदेश साफ है - भारत के लिए उसका अपना हित सबसे ज्यादा मायने रखता है, किसी भी वैश्विक संकट से ज्यादा। मोदी की हालिया जर्मनी यात्रा से ठीक पहले विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने मीडिया से बात करते हुए कहा था, इस बारे में कोई दुविधा, शंका, संकोच नहीं होना चाहिए कि पक्ष केवल भारत का होगा, सिद्धांत हमारे होंगे, हित अपने होंगे लेकिन समाधान ऐसा हो जिसकी वैश्विक परिपेक्ष्य में स्पष्ट अहमियत और उपयोगिता हो।
ट्रप, राजपक्षे या जानसन नही हैं मोदी
मोदी इस डीप स्टेट लॉबी औऱ उसके भारतीय दस्तों से बखूबी परिचित है। वे गुजरात के मुखयमंत्री रहते हुए ही इस इको सिस्टम से प्रताडि़त और भुक्तभोगी है। इसलिए उन्होंने पिछले आठ सालों में उस तरह की गलतियां नही की है जैसा ट्रप,जॉनसन ने की। लोकप्रियता के जिस तत्व के वह मालिक है उसे उन्होंने विचारधारा के स्तर पर पूरे पराक्रम औऱ समर्पण से बढ़ाया है। यही कारण है कि शाहीन बाग ,किसान आन्दोलन, नोटबंदी के बाद वे आन्दोलनजीवियो के आगे पराजित नही हुए है।
