Orchha Raja Ram Temple: मध्य प्रदेश के ओरछा में स्थित राजाराम मंदिर का क्या है इतिहास, पढ़ें विस्तार से...
History of Raja Ram Temple Orchha: अयोध्या की तरह मध्य प्रदेश के ओरछा के राजाराम भी हमेशा से सुर्खियों में बने रहते हैं। अयोध्या से ओरछा की दूरी तकरीबन साढ़े चार सौ किलोमीटर है, लेकिन इन दोनों धर्म स्थली के बीच गहरा संबंध है। जिस तरह अयोध्या नगरी के रोम-रोम में राम बसे हुए हैं, ठीक उसी प्रकार ओरछा की धड़कन में भी राजा राम विराजमान हैं।
राम यहां धर्म से परे हैं। हिंदू हों या मुस्लिम, दोनों के ही धर्म के लोग राम को अपना आराध्य मानते हैं। अयोध्या और ओरछा का करीब 600 साल पुराना गहरा रिश्ता है। कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी में ओरछा के बुंदेला शासक मधुकरशाह की रानी कुंवारी गणेश भगवान राम को अयोध्या से ओरछा लायी थीं।
तो आइए आज हम आपको ओरछा के राजा राम के बारे में एक दिलचस्प बात बताते हैं। जो आज से पहले आपने शायद ही कहीं और सुना हो।
ओरछा के राजाराम मंदिर के बारे में क्या है मान्यता?
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, ओरछा के शासक मधुकरशाह थे जो भगवान कृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे, जबकि उनकी पत्नी महारानी कुंवारी गणेश भगवान राम की भक्त थीं। जिसकी वजह से दोनों के बीच अक्सर विवाद भी होता था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार मधुकर शाह ने रानी के सामने वृंदावन जाने का प्रस्ताव रखा पर उन्होंने विनम्रतापूर्वक वहां जाने से इंकार कर दिया और अयोध्या जाने की जिद कर दी। इसके बाद राजा ने रानी को ताना मारते हुए कहा कि अगर तुम्हारे राम असली हैं तो उन्हें अयोध्या से ओरछा लाकर दिखाओ।
राजा मधुकरशाह की चुनौती पर रानी कुंवरि अयोध्या के लिए रवाना हो गईं और अयोध्या पहुंचकर उन्होंने 21 दिनों तक तपस्या की। इसके बाद भी जब उनके प्रिय भगवान राम प्रकट नहीं हुए तो उन्होंने सरयू नदी में छलांग लगा दी।। ऐसा कहा जाता है कि महारानी की भक्ति देखकर भगवान राम नदी के जल में ही उनकी गोद में आ गए। तब महारानी ने राम से अयोध्या से ओरछा चलने का निवेदन किया। जिस पर प्रभु राम ने तीन शर्तें रखीं।
राजाराम की तीन शर्तें
- पौराणिक कथाओं के मुताबिक, प्रभु राम ने महारानी कुंवरि के सामने पहली शर्त रखी- मैं यहां से जाकर जिस जगह बैठ जाऊंगा, वहां से नहीं उठूंगा।
- दूसरी शर्त- ओरछा के राजा के रूप में विराजित होने के बाद किसी और के पास सत्ता नहीं होगी।
- तीसरी शर्त- भगवान राम ने रानी के सामने रखी कि वो खुद बाल रूप में पैदल एक विशेष पुष्य नक्षत्र में साधु संतों को साथ जाएंगे। प्रभू राम के ये तीनों शर्तें रानी ने फौरान स्वीकार कर ली।
इसके बाद राजा राम ओरछा के लिए रवाना हो गए और वहां जाकर विराजमान हो गए। तब से अब तक ओरछा में भगवान राम राजा के रूप में पूजे जाते हैं।
ओरछा मंदिर का इतिहास (Orchha Temple History)
ओरछा में भगवान राम के बारे में एक और बात कही जाती है। यह भी कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी में जब विदेशी आक्रमणकारी भारत में मंदिरों और मूर्तियों को नष्ट कर रहे थे, तब अयोध्या के संतों ने जन्मभूमि में मौजूद श्री राम की मूर्ति को जल समाधि देकर रेत में दबा दिया था। यह मूर्ति रानी कुंवरि गणेश द्वारा ओरछा लाई गई थी।। इस पर साहित्यकार राकेश अयाची ने बताया था कि 16वीं सदी में ओरछा के शासक मधुकर शाह ही एकमात्र ऐसे पराक्रमी हिंदू राजा थे जिन्होंने अकबर के दरबार में बगावत कर दी थी।
इतिहास की किताबों में यह भी लिखा है कि जब अकबर के दरबार में तिलक लगाकर आने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, तब मधुकर शाह ने दरबार में विद्रोह कर दिया था। यह देखकर अकबर ने अपना आदेश वापस ले लिया। इतिहासकारों के मुताबिक, अयोध्या के साधु-संतों को भरोसा था कि मधुकर शाह की हिंदुत्ववादी सोच के बीच राम जन्मभूमि की श्रीराम की यह मूर्ति ओरछा में पूरी तरह सुरक्षित रहेगी। इसलिए उनकी महारानी कुंवर गणेश अयोध्या पहुंचीं और संतों से मिलकर विग्रह को ओरछा ले आईं।