हलाला की कुप्रथा को बंद करने के लिए राजी नहीं काजी और धर्मगुरु

नई दिल्ली, वेब डेस्क। तीन तलाक के बाद अब निकाह हलाला और बहुविवाह प्रथा को समाप्त करने की मांग को लेकर लंबे समय से संघर्षरत रहीं मुस्लिम समाज की महिलाओं की आवाज उच्चतम न्यायालय की दहलीज तक पहुंच गई है। हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने निकाह हलाला और बहुविवाह प्रथा को समाप्त करने संबंधी याचिका को सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया है। याचिका को न्यायालय में मंजूरी मिलने के बाद मुस्लिम महिला संगठन भी याचिकाकर्ता के साथ समर्थन में खड़े हो रहे हैं। भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए) भी उनमें से एक है।
बीएमएमए की नेता खातून शेख ने कहा कि याचिकाकर्ता व उनकी संस्था एक ही मुद्दे पर लड़ रही है। ऐसे में समर्थन जरूरी है। निकाह हलाला और बहुविवाह प्रथा के मालमे में उनकी संस्था ने कई काजी व धर्मगुरु से संपर्क किया कि वह मुस्लिम महिलाओं के साथ हो रहे इस अमानवीयता पर लगाम लगाएं और इस कुप्रथा को समाप्त करें, किंतु वह इस पर राजी नहीं। इसके उलट वह पैसे के एवज में हलाला के लिए पुरुषों को उपलब्ध कराने के लिए तैयार हैं।
इस्लामिक विद्वान एए कासमी के मुताबिक, यह धर्म का हिस्सा नहीं है। इस्लाम में निकाह हलाला की अनुमति ही नहीं है, बल्कि इसे पाप बताया गया है। इस मुद्दे पर इस्लाम के सभी संप्रदायों में समानता है। उन्होंने कहा कि इसे तत्काल बंद कर दिया जाना चाहिए क्योंकि यह धार्मिक मानदंडों का उल्लंघन करता है।
वहीं, सामाजिक विश्लेषक डॉ. सैयद मुबीन जेहरा का कहना है कि कोई ऐसा समाज, देश नहीं है जहां महिलाओं को दबाया नहीं जाता है। पुरुष समाज महिलाओं में आई जागरुकता व तरक्की को सहजता से स्वीकार नहीं कर पाता और दबाने कोशिश में रहता है। कोई भी मजहब जिसमें महिलाओं का शोषण होता है, उन्हें दबाया जाता है वह किसी भी तरह से सभ्य समाज के दायरे में नहीं आता।
डॉ जेहरा के मुताबिक, महिलाओं में आई जागरुकता और बदलते वक्त के मद्देनजर बेहतर ये है कि उस समाज, धर्म, मजहब के वरिष्ठ लोग बैठकर आपसी बातचीत से मसले को सुलझाएं। ये बदलते वक्त की जरूरत है। किंत, अगर किसी भी महिला को उसका वाजिब हक नहीं मिलता तो उसे न्यायालय जाने का अधिकार है।
