कवक की चाल

समीक्षा तैलंग

कवक की चाल
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वेबडेस्क। गुलाब का फूल जगह-जगह खिल रहा था। उसका तिलिस्म ये था कि वो जितनी ही दूर तलक से अपनी खुशबू बिखेरता, लोग उसे नाक के साथ-साथ आँखों से भी महसूस करते। उसकी सुगंध ही उसका परिचय थी। वो दिखने का मोहताज नहीं था। भाँति-भाँति के गुलाब थे। महिलाओं की साड़ियों के शेड्स से ज़्यादा गुलाब के रंग थे। मगर देसी तो देसी ही ठहरा। उसकी पहचान सालों-साल से टिकी हुई थी। कांटों से निकला गुलाब अपने अस्तित्व को इतने जल्दी धूमिल कैसे होने देता? चुभन अधिक समय तक टिकाऊ होती है। और यही गुलाब की आब का राज भी था। बाकी के फूल भी उसी की तरह खुशबू बिखेरना, नहीं-नहीं ख़ुशबुदार होना चाहते थे। दोनों के मूल में ही अंतर था।

गुलाब, शूल से निकला हुआ वह फूल था जिसे उसने कष्टों के खाद-पानी से सींचकर खुद को गुलाब बनाया था। लेकिन अन्य फूल केवल नकल करना चाहते थे। उन्हें कांटे नहीं मलमल के गलीचे-बिछौने पसंद थे। खाद-पानी गलीचों से नदारद था। ग़लीचों में इतना दम होता है कि वे किसी को भी अपनी मिट्टी से दूर करने की ताकत रखते हैं। बहुत सिर फोड़ा, उठा-पटक की लेकिन सुगंध फैलाना तो दूर, उनके हिस्से गंध के रंध्र ही मौजूद न थे। मगर उन्होंने अपना प्रयत्न नहीं छोड़ा।

समय के साथ-साथ जगह-जगह कुकुरमुत्ते भारी तादाद में उग आए थे। उन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता था। कुछ समय के लिए उनके उगने से गुलाब की नींव हिलती-सी दिखाई पड़ने लगी थी। लेकिन यह गुलाब की भलमनसाहत ही थी कि उसने कुकुरमुत्ते को अपने बीच में स्थान दिया था। कचरे के ढेर में उगने वाले कुकुरमुत्ते की सोच उसकी जड़ में बसने वाले कचरे जैसी ही थी।उसने अपना सारा आडंबर फैलाया। अपनी क़ीमत से खुद को भरपूर कीमती दिखाया। अपनी दुर्गंध को खुशबू की तरह विज्ञापित किया। बौडम-सा दिखने वाला फंगस, अपनी जडें बनाने में कामयाबी हासिल करने लगा। वो इस बात से अनजान था कि उसकी जड़ें उथली होती हैं। उसे उखाड़ने के लिए खुरपी की भी ज़रूरत नहीं होती।

इधर गुलाब की खुशबू अब भी वही थी, मगर परजीवी कवक के संक्रमण से लोग गुलाब का वैभव भूलने लगे थे। वे कवकजीवी होने लगे। इस कवक ने अपना ऐसा मायाजाल फैलाया कि संसार की प्रत्येक सजीव-निर्जीव वस्तुओं पर उसका एकाधिकार होने लगा था। कोई क्षेत्र ऐसा नहीं बचा जहां उसने डाका न डाला हो। दैहिक-भौतिक सब पर कवक हावी था। विचारों पर भी फ़ंगस का राज होने लगा था।गुलाब की खुशबू और और कम होने लगी। उसे अफसोस हुआ कि उसके एक गलत निर्णय से पूरा संसार इस कवक को झेलने के लिए मजबूर हुआ है। वो दुखी मन से खुद के लिए जमीन तलाश रहा है। कह रहा है- वाह रे कवक तूने अपनी कवकियत दिखा ही दी। परजीवी कभी सहजीवी नहीं हो सकता। मेरी एक भूल ने पूरे संसार, उसकी सोच में फंगस लगा दी। लेकिन तू भूल गया कि मेरे पास शूल भी हैं। तेरा इलाज करने।


Updated : 1 Jan 2022 9:09 AM GMT
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स्वदेश डेस्क

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