क्‍या अकबर सचमुच महान था?: हिज स्टोरी ऑफ इतिहास- वैचारिक चुनौती देती एक फिल्म

हिज स्टोरी ऑफ इतिहास- वैचारिक चुनौती देती एक फिल्म
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मनप्रीत सिंह धामी द्वारा निर्देशित फिल्म हिज स्टोरी ऑफ इतिहास एक सशक्त वैचारिक हस्तक्षेप है, जो भारतीय इतिहास की स्थापित धारणाओं और स्कूली पाठ्यक्रमों को कठघरे में खड़ा करती है।

इंदौर। मनप्रीत सिंह धामी द्वारा निर्देशित फिल्म हिज स्टोरी ऑफ इतिहास एक सशक्त वैचारिक हस्तक्षेप है, जो भारतीय इतिहास की स्थापित धारणाओं और स्कूली पाठ्यक्रमों को कठघरे में खड़ा करती है। यह सिर्फ एक शिक्षक की कहानी नहीं, बल्कि उस पूरी विचारधारा की पड़ताल है जिसे फिल्म “ब्रेनवॉशिंग इंडस्ट्री” कहकर संबोधित करती है।

फिल्म का नायक एक भौतिकी शिक्षक भरद्वाज (सुबोध भावे) है, जो अपनी बेटी की इतिहास की किताब पढ़कर विचलित हो जाता है। उसकी जिज्ञासा और असहमति धीरे-धीरे एक आंदोलन में बदल जाती है, जो स्कूल, समाज, परिवार और शिक्षा व्यवस्था से टकराता है।

फिल्म के संवाद तीखे और विचारोत्तेजक हैं। जैसे- "अगर किसी की बुद्धि को नष्ट करना है, तो सबसे पहले उसका आत्मविश्वास खत्म कर दो… और यह शिक्षा के जरिए होता है।" यह वाक्य फिल्म की मूल संवेदना को सटीक रूप से प्रस्तुत करता है।

फिल्म में उठाए गए प्रश्न केवल अकादमिक नहीं हैं, बल्कि समकालीन सामाजिक मानसिकता से जुड़े हैं

  • क्या अकबर सचमुच महान था?
  • क्या सती प्रथा को जबरन लागू किया गया?
  • क्या भारत की वैज्ञानिक उपलब्धियों को योजनाबद्ध रूप से भुलाया गया?
  • क्या बच्चों को अपनी संस्कृति से काटने का क्रमिक प्रयास हुआ है?


धामी का निर्देशन सटीक है और कथा को अनावश्यक नाटकीयता से बचाते हुए संतुलित रूप में प्रस्तुत करता है। सुबोध भावे का अभिनय गहरा असर छोड़ता है। वे केवल एक पात्र नहीं, बल्कि एक विचारधारा का संवाहक बन जाते हैं।

फिल्म का आधार लेखक नीरज अत्री की चर्चित किताब ब्रेनवॉश्ड रिपब्लिक है, जो एनसीईआरटी और अन्य शैक्षणिक संस्थानों द्वारा इतिहास में की गई तथाकथित ‘विकृतियों’ की पड़ताल करती है। इस संदर्भ में फिल्म एक सिनेमाई विस्तार बन जाती है उस वैचारिक विमर्श का, जो अत्री वर्षों से यूट्यूब और लेखन के माध्यम से करते आए हैं।

कला और शिल्प के लिहाज़ से फिल्म सीमित संसाधनों में बनी है, लेकिन विषय की गहराई और प्रस्तुति की सच्चाई तकनीकी सीमाओं को गौण बना देती है। दृश्य संरचना और पार्श्व संगीत का संयमित प्रयोग दर्शकों को विचलित करने की बजाय विचार के लिए प्रेरित करता है।

सांस्कृतिक आलोचना के दृष्टिकोण से, यह फिल्म एक "काउंटर नैरेटिव" रचती है। यह उस आत्महीनता का प्रतिरोध करती है, जो औपनिवेशिक शिक्षा प्रणाली और स्वतंत्र भारत की कथित वैचारिक ‘सेंसरशिप’ के चलते गहराई से भारतीय मानस में बैठ गई है।

हिज स्टोरी ऑफ इतिहास एक जरूरी फिल्म है, खासकर उनके लिए जो सोचते हैं कि पाठ्यपुस्तकों में जो लिखा है, वही अंतिम सत्य है। यह फिल्म न तो शुद्ध ऐतिहासिक वृत्तांत है और न ही किसी पक्ष का प्रचार, बल्कि यह एक साहसिक विमर्श है, जो दर्शकों से प्रश्न करता है- क्या हमने वास्तव में सही इतिहास पढ़ा है? यह फिल्म भले ही टॉकीज में लंबा न टिके, लेकिन विचारों में लंबा टिकेगी।

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