Explainer: FATF ग्रे लिस्ट क्या है और इसका असर किन देशों पर पड़ता है

फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है जिसकी स्थापना 1989 में G7 देशों ने की थी। इसका उद्देश्य मनी लॉन्ड्रिंग, आतंक फंडिंग और वित्तीय अपराधों पर रोक लगाना है। इसमें 200 से अधिक देश और संगठन सदस्य हैं। भारत भी इसका सक्रिय सदस्य है।
ग्रे लिस्ट क्या होती है?
FATF किसी देश को “ग्रे लिस्ट” में तब डालता है जब उस देश के वित्तीय सिस्टम में संदेहास्पद लेनदेन, आतंकी फंडिंग, या वित्तीय पारदर्शिता की कमी पाई जाती है। इस सूची में शामिल देशों की निगरानी बढ़ा दी जाती है और उन्हें सुधारात्मक कदम उठाने के लिए कहा जाता है। ग्रे लिस्ट में होना मतलब यह नहीं कि उस देश पर प्रतिबंध लग गया, लेकिन यह एक तरह की “चेतावनी सूची” होती है, जो देश की आर्थिक साख को प्रभावित करती है।
ब्लैक लिस्ट क्या होती है?
अगर कोई देश FATF के निर्देशों का पालन नहीं करता और आतंक फंडिंग पर नियंत्रण नहीं करता, तो उसे “ब्लैक लिस्ट” में डाल दिया जाता है। इससे देश पर अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग और निवेश प्रतिबंध लग सकते हैं। ईरान और उत्तर कोरिया लंबे समय से इस सूची में हैं।
ग्रे लिस्ट में आने के आर्थिक परिणाम
- अंतरराष्ट्रीय निवेश घट जाते हैं, क्योंकि विदेशी निवेशक ऐसे देशों को जोखिमपूर्ण मानते हैं।
- ऋण और कर्ज की लागत बढ़ जाती है, जिससे अर्थव्यवस्था पर दबाव पड़ता है।
- अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर असर पड़ता है, खासकर डॉलर लेनदेन में।
- विश्व बैंक, IMF और अन्य एजेंसियां उस देश पर सख्त वित्तीय शर्तें लागू कर सकती हैं।
पाकिस्तान का उदाहरण क्यों अहम है?
पाकिस्तान को 2018 में FATF की ग्रे लिस्ट में डाला गया था। उस पर आरोप था कि उसने आतंकी संगठनों जैसे लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद को फंडिंग रोकने के ठोस कदम नहीं उठाए। चार साल तक निगरानी में रहने के बाद, 2022 में उसे बाहर किया गया। लेकिन FATF की हालिया चेतावनी से पता चलता है कि पाकिस्तान की वित्तीय पारदर्शिता पर अभी भी सवाल बरकरार हैं।
