शताब्दी वर्ष में वैश्विक गूंज के साथ विज्ञान भवन संवाद

सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत राजनेता नहीं हैं। इसलिए वह कूटनीतिक बातें नहीं करते। न ही वह धार्मिक प्रवचनकार हैं। इसलिए वह अपनी बातों में अध्यात्म, दर्शन आदि का भी ज्यादा प्रयोग नहीं करते। वह समाज वैज्ञानिक हैं। तथ्यों के साथ बिना लाग-लपेट के समाज जीवन, राष्ट्र जीवन और वैश्विक परिदृश्य में जो वातावरण है, विकार है, उस पर सीधा प्रहार करते हैं। और स्वयं एक चिकित्सक भी हैं तो समाज की आंतरिक शक्ति को बढ़ाने का यत्न करते हैं। देश की राजधानी नई दिल्ली में विज्ञान भवन में तीन दिन की व्याख्यान माला मात्र एक बौद्धिक उपक्रम नहीं है। न ही यह संघ के प्रचार अभियान का एक आयोजन है। संघ ने समाज के बीच स्वयं को प्रस्तुत किया। समाज से भी प्रश्न मांगे, जिज्ञासाएं मांगी और संगठन के प्रमुख ने उसके जवाब भी दिए। निश्चित ही समाज के प्रति, देश के प्रति जवाबदेह संगठन ही यह साहस कर सकता है। इसका अभिनंदन किया जाना चाहिए। अभिनंदन उनका भी जो अपने व्यस्त दिनचार्य के बावजूद तीन दिन संघ को समझने के लिए आए और अपनी राय भी रखी, प्रश्न भी पूछे। विभिन्न 17 श्रेणियों के 2500 प्रबुद्धजन सम्पूर्ण उत्तर भारत से आए। इस आयोजन में विदेशी राजनायिकों की उपस्थिति ने भी संघ के इस प्रयास को वैश्विक महत्ता दी है। तीन दिन के इस आयोजन में डॉ. भागवत ने किसी की आलोचना नहीं की। कोई आरोप नहीं लगाए। पहले दिन ही आपने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सार्थकता भारत के विश्व गुरु बनने में है। आपने जोड़ा कि विश्व गुरु से आशय डंडा लेकर सबको हड़काने का नहीं बल्कि विनम्रता के साथ मानवीय मूल्यों की स्थापना का प्रयास है। आखिरी दिन एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि भारत हिन्दू राष्ट्र ही है। घोषणा की आवश्यकता नहीं है। नुकसान न मानने वालों का है।
नुकसान से डॉ. भागवत का क्या आशय है?
पश्चिम का सिद्धांत struggle for existence और survival of the fitest है। जीवशास्त्र का यह सिद्धांत पश्चिम के विचारक एडिसन ने समाज विज्ञान में लाकर विश्व को आज युद्धरत कर दिया है। दुनिया के 54 देश एक दूसरे पर गोले बरसा रहे हैं। व्यापार युद्ध की शक्ल में हो रहा है। पर्यावरण के खतरों ने घंटी बजा दी है। परिवार संस्था पर संकट है। भारत का उदय इसलिए ही आवश्यक है। भारत की आवश्यकता भारत के लिए नहीं है। समूची दुनिया के लिए है। डॉ. भागवत उसी को रेखांकित कर अपने संगठन का युगीन कर्तव्य 100 वर्ष की संघ यात्रा बताते हुए समाज से आव्हान कर रहे थे। उन्होंने 27 अगस्त को दूसरे दिन कहा आइए समझिए संघ को, आवश्यकता नहीं कि आप सहमत ही हों, यह आवश्यकता नहीं। न हो तो फिर आलोचना कीजिए। पर हम जो कह रहे हैं, वैसे हैं या नहीं देखिए।
यह भाषा किसी कट्टर संगठन की हो सकती है क्या? यह निमंत्रण क्या दोहरे चरित्र वाला हो सकता है क्या? यही नहीं डॉ. भागवत ने यह भी कहा कि सकारात्मक एवं रचनात्मक कार्य सिर्फ संघ से प्रेरित संगठन ही कर रहे हैं, ऐसा नहीं है। सज्जन शक्तियाँ गाँव-गाँव में हैं पर बिखरी हुई हैं। मीडिया को भी सलाह देते हुए आप कहते हैं जितना नकारात्मक आप दिखा या बता रहे हैं अच्छा उससे कहीं अधिक देश में हो रहा है।
शताब्दी वर्ष से ठीक सरसंघचालक के इस आशय के निमंत्रण का संज्ञान लिया जाना चाहिए। डॉ. भागवत ने फिर एक बार स्पष्ट कर दिया कि संघ स्वयं कुछ नहीं करता, उसका आधार सिर्फ शाखा है व्यक्ति निर्माण है। संघ से प्रेरणा लेकर समाज जीवन के 42 से अधिक क्षेत्रों में स्वयंसेवक कार्य कर रहे हैं और वे स्वतंत्र हैं। उनके सकारात्मक कार्यों का श्रेय उनको ही है। अपयश हैं तो वह संघ का। कारण स्वयंसेवक उसके हैं। इतना स्पष्ट वक्तव्य किस संगठन का है? देश के अन्य त राजनीतिक दलों को लेकर भी आपने कहा, अच्छे कार्य के लिए सभी को सहयोग है। यह दरवाजा सिर्फ भाजपा के लिए नहीं खुला है। पर हमारा किसी पर भी प्रत्यक्ष कोई नियंत्रण नहीं है।
नागपुर के सार्वजनिक आयोजन में एक विदेशी राजनायिक ने डॉ. भागवत से कहा कि हम भी अपने देश में ऐसा ही आर.एस.एस. चाहते है। डॉ. भागवत ने कहा यह होना चाहिए। विश्व इ के कल्याण के लिए संघ का आज सामर्थ्य इतना हो चुका है कि दुनिया उम्मीद से हमें देख स रही है। आपने फिर दो बातें जोड़ी। एक, सम्पूर्ण समाज का संगठन करना होगा। दूसरा समाज के श्रेष्ठि वर्ग को संघ को ठेका देने की आदत बंद करनी होगी। संघ के नाम देश का कोई टेंडर नहीं खुला है। साथ ही जो संघ में आए वह किसी इंसेटिव की आशा में न आए। आपका जो भी है वह भी चला जाएगा। स्वयं का सर्वस्व अर्पण करने का खुला निमंत्रण देकर डॉ. भागवत ने अपने युग धर्म का पालन इ किया है। प्रतीक्षा अब देशवासियों की है।
आज से सात वर्ष पहले भी संघ ने यह खुला संवाद किया था। संघ पर गोपनीय संगठन का आरोप लगाने वालों के लिए यह एक उत्तर है। डॉ. भागवत जब यह कहते हैं कि आप संघ को समझने के लिए संघ में आइए, इसका आशय यह नहीं कि वह कोई सदस्यता अभियान चला रहे हैं। वह यह कह रहे हैं हम जो हैं हम बता रहे हैं उसे समझिए। न समझें तो य फिर वही कहिए जो आपका अभिमत है। यह दायित्व उन्होंने समाज के प्रतिनिधि वर्ग को देकर अपने दायित्व का निर्वहन किया है। संघ की स्थापना से लेकर आज तक देश के मूलभूत विषयों पर संघ दृष्टि क्या है यह उन्होंने स्पष्टता से बताया।
संघ के आगामी लक्ष्यों पर आपने कहा कि हम एक-एक घर तक पहुँचेंगे। हमारे लिए कोई विरोधी नहीं, कोई शत्रु नहीं। असहमति या विरोध को लेकर अवश्य आपने पीड़ा के साथ कहा कि संघ का जन्म से लेकर आज तक जितना विरोध हुआ है उतना किसी संगठन का नहीं हुआ। बावजूद इसके संघ आज 100 वर्ष का हो रहा है इसका अर्थ ही यह है कि हम प्रामाणिक हैं और समग्र समाज को देश हित में सज्ज करने के लिए प्रतिबद्ध। निःसंदेह विज्ञान भवन की गूंज अखिल विश्व में सुनाई देगी और विश्व गुरु के लक्ष्य की ओर हमारा एक कदम और आगे बढ़ेगा।
(लेखक ; अतुल तारे, स्वदेश के समूह संपादक हैं)
