मप्र में उठ रही कर्मचारियों के रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने की मांग, सरकार इन...कारणों से मान सकती है प्रस्ताव

भोपाल। मध्य प्रदेश के आठ लाख कर्मचारियों के लिए एक बार फिर बड़ी खबर सामने आई है। राज्य में हर महीने घटती कर्मचारियों की संख्या से काम करने वालों की किल्लत और बंद पड़ी भर्ती प्रक्रिया का असर अब सरकार के कामकाज पर पड़ने लगा है। जिसे देखते हुए कर्मचारी आयोग ने सरकार से सिफारिश की है कि सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों की रिटायरमेंट की उम्र सीमा 62 से बढ़ाकर 65 वर्ष कर दी जाए। हालांकि सरकार ने अभी तक इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी है।
आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा है की प्रदेश में नई भर्तियों पर रोक होने और पुराने कर्मचारियों के लगातार रिटायर्ड होने के वजह से बड़ी संख्या में कर्मचारियों की कमी होती जा रही है। जिसके कारण विभागों में शासकीय कार्य भी प्रभावित हो रहा है। इसलिए कर्मचारियों और अधिकारियों की रिटायरमेंट उम्र तीन साल बढ़ा दिया जाए। आयोग का कहना है की वर्तमान समय में चिकित्सा शिक्षा, उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा और स्वास्थ्य विभागों में पहले से ही कर्मचारियों को 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त करने का प्रावधान है। ऐसे में अन्य विभागों के कर्मचारियों के लिए भी इसी तरह का प्रावधान किया जा सकता है।बता दें की यदि सरकार आयोग की सिफारिशों को मान लेती है तो कर्मचारियों को बड़ा लाभ होगा। अब सभी की नजर मुख्यमंत्री की ओर टीकी हुई है।
इन कारणों से सरकार मान सकती है प्रस्ताव -
प्रदेश में सेवानिवृति की आयु सीमा बढ़ने की मांग के साथ ही इसकी सुगबुगाहट शुरु हो गई है। कर्मचारी हलकों से लेकर विविध मामलों के जानकारों के बीच ये विषय चल पड़ा है। सरकार आयोग के इस फैसले को मानेगी या नहीं, सभी अपंने-अपने तर्क दे रहे है। कुछ विषेशज्ञों की माने तो वर्तमान समय में ऐसे की कारण है जिनके कारण सरकार इन सिफारिशों को लागू कर सकती है। उनमे से सबसे बाड़ा कारण है आर्थिक स्थिति आगामी दो वर्षों में 2024 बड़ी संख्या में कर्मचारियों का रिटायरमेंट है। जिन्हें सरकार को पेंशन और ग्रेच्युटी के रूप में करीब 70 हजार करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा। जोकि पहले से ही कर्ज में चल रही सरकार के लिए काफी कठिन है।
इसके अलावा 2023 में विधानसभा और 2024 में लोकसभा चुनाव होने है। ये चुनाव कर्मचारियों की पर्याप्त संख्या के बिना करना सरकार के लिए बेहद कठिन है। अभी हाल ही में हुए निकाय चुनावों की बात करें तो कई जिलों में कर्मचारियों की कमी के चलते मतदाता पर्ची ना बंटने का मुद्दा गर्माया हुआ था। जिसके कारण कई जगहों पर औसत से कम मतदान भी हुआ। सभी राजनीतिक दलों ने इस पर आपत्ति जताई थी। वहीं ये समस्या आगामी चुनावों में और बढ़ सकती है। जानकारों का कहना है की यहीं वह कारण है जिनके चलते सरकार इस प्रस्ताव पर विचार कर सकती है।
