डीप स्टेट और भारत के स्लीपर एजेंट

नईदिल्ली/वेबडेस्क। पूरी दुनियां को अपने हिसाब से चलाने वाले डीप स्टेट यानी मूलत: नाटो औऱ मल्टीनेशनल हाउसों की ताकत इस सीमा तक है कि वे उन राष्ट्रों में तख्ता पलट करने में सक्षम है जो उनके एजेंडे में फिट नही है। भारत में डीप स्टेट की यह ताकत मोदी राज में उतनी परिणामोन्मुखी साबित नही हो रही है जितना इसका सफल इतिहास रहा है। ट्रप, जॉनसन, शिंजो आबे से जुड़े घटनाक्रम विशुद्ध रूप से इसी रणनीति का हिस्सा है इसके बाबजूद भारत में मोदी की लोकप्रियता औऱ वैचारिक समर्थन के मौजूदा प्रभाव के आगे अभी वैसे हालात नही है जैसा कि कल्पित है। इसके इतर संकेतक चिंतित करने वाले तो है ही।
भारत में डीप स्टेट लॉबी की जड़े 70 साल पुरानी है कभी रूसी तो कभी चीनी और अमेरिकी जासूसी से लेकर उनके एजेंडे को चलाने वाला एक बहुत ही विस्तृत प्रभाव वाला वर्ग यहां हमेशा से मौजूद रहा है। लेफ्ट लिबरल प्रभाव वाला यह वर्ग इसी डीप स्टेट लॉबी के इशारों पर पिछले आठ सालों से समाज मे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कतिपय अधिकारों के नाम पर यहां पूरी ताकत से सक्रिय है।
मोदी सरकार ने विदेशी चंदे से जुड़े एफसीआरए कानून में संशोधन किया तो फोर्ड फाउंडेशन,ग्रीन पीस,एमनेस्टी जैसे सैंकड़ो संगठन सरकार के विरुद्ध खड़े हो गए। वस्तुत: यह भद्रलोक के रूप में स्लीपर सेल ही है जो डीप स्टेट के एजेंट के रूप में 70 साल से सक्रिय हैं। किसान आंदोलन,नागरिकता संशोधन कानून,औऱ हाल ही में अग्निवीर योजना के विरुद्ध जिस तरह से देश में एक प्रायोजित माहौल खड़ा किया गया उसे देखकर कल की श्रीलंकाई तस्वीरों से मिलान किया जाए तो सब कुछ आसानी से समझा जा सकता है कि कैसे एक पूरा सिंडिकेट भारत के विरुद्ध खड़ा हुआ है।ऊपर से ऐसा प्रतीत होता है कि मानो मोदी सरकार के विरुद्ध इस तरह के आंदोलन स्वत:स्फूर्त हो लेकिन सच्चाई यह है कि यह सब कुछ प्रायोजित हैं।
26 जनवरी पर लालकिले का उपद्रव हो या अमेरिकी राष्ट्रपति की मौजूदगी में दिल्ली में दंगे की साजिश ,डॉलर औऱ पेट्रो डॉलर से लेकर चीनी चंदा सब जगह भारत के विरुद्ध काम करता हुआ नजर आ जाता है।शिंजो आबे की हत्या के साथ भी हमारे देश में एक वर्ग खड़ा नजर आता है,कांग्रेस पार्टी के एक नेता ने आबे की हत्या भारत में अग्निवीर योजना के साथ जोडऩे का प्रयास किया क्योंकि हत्यारा जापान के एक पार्ट टाइम फोर्स का हिस्सा था।सोशल मीडिया पर कुछ पत्रकारों और एकेडेमिकस ने जॉनसन ,ट्रप, श्रीलंका के मामलों के तत्काल बाद यही रुख औऱ आशा व्यक्त की है कि अब अगली बारी मोदी की है।
किसान आंदोलन, शाहीन बाग, अग्निवीर, लाल किला कांड,नूपुर शर्मा,हिजाब जैसे मुद्दे पर जिस तरह की उग्रता के साथ प्रतिक्रियाएं सामने आई है वह विदेशी षड्यंत्र का हिस्सा हैं। प्रदर्शन के नाम पर एनजीओ औऱ सिविल सोसायटी की भूमिकाएं भी जिस तरह से बेनकाब हुई है वह समाज के अंदर तक देश विरोधी ताकतों की व्याप्ति को रेखांकित करती हैं।नागरिक अधिकारों एवं गरीब कल्याण के नाम पर देश में करीब 40 हजार करोड़ की समानान्तर आर्थिकी पर चोट करने वाले मोदी सरकार के नए कानून की प्रतिक्रियाओं को देश मे आन्दोलनजीवियो की गतिविधियों के साथ समझने की आवश्यकता है।
भारत की वर्ल्ड आर्डर में स्थिति का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि कोरोना के बाद हमारी अर्थव्यवस्था पटरी पर आ गई है और समुन्नत स्वास्थ्य ढांचा न होनें के बाबजूद हमने इस महामारी का सफलतापूर्वक सामना किया।एक बड़े वर्ग ने देश के अंदर ही इस महामारी को लेकर जिस तरह का कुप्रचार किया वह उसी डीप स्टेट लॉबी के एजेंडे का हिस्सा रहा है।भारत ने दुनियाभर को दो प्रभावी वैक्सीन उपलब्ध कराई वह भी डडब्ल्यूएचओ के अडंगो के बाबजूद क्योंकि डब्ल्यूएचओ इस समय चीन की गोद मे बैठा है।यह वर्ल्ड आर्डर में भारत के प्रभुत्व का एक उदाहरण था जिसे वैक्सीन डिप्लोमेसी कहा गया।
भारत के लिए इन घटनाओं का महत्व समझना हर नागरिक के लिए अहम है-
- दुनियां के धनी औऱ ताकतवर देश जिनमें यूरोप,अमेरिका और चीन शामिल है वे नही चाहते कि भारत बदलती विश्व व्यवस्था में मोदी के नेतृत्व में आगे बढ़े।
- मोदी की लीडरशिप का मतलब है एक मजबूत और स्वतंत्र सोच वाला भारत जिसके लिए नेशन फर्स्ट ही सब कुछ है।
- ताजा रूस-यूक्रेन युद्ध उदाहरण से समझे कि यूरोप और अमेरिका ने रूस के विरूद्ध जो तमाम प्रतिबंध लगाए उनकी हवा निकल गई भारत के रुख से।भारत चार महीने बाद भी अपने उसी रुख पर कायम है जो रूस की आलोचनाओं या कतिपय प्रतिबन्ध को स्वीकार नही करता है।
- ताकतवर देश और डीप स्टेट के व्यापारी चाहते है कि कोई भी मुल्क रूस से तेल न खरीदे भारत ने इसे नही माना है और अपनी जरूरतों के हिसाब से तेल खरीद रहा है।
- यह स्पष्ट समझा जाना चाहिये कि डीप स्टेट यानी मल्टीनेशनल हाउसों का दबाब समूह भारत को ऐसे देश के रूप में उभरने नही देना चाहता है जो उसके व्यापारिक हितों के प्रश्नों पर कठपुतली की तरह चले।
- चीनी कम्पनियों के विरूद्ध ईडी ,इनकम टैक्स की कारवाई से किसके हित प्रभावित हो रहे है।क्या कोई देश चीनी दबदबे के आगे चीनी एप्स को राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर प्रतिबंधित करने का साहस कर पाया है।
