चरण पादुका रामराज्य का ब्लू प्रिंट है : मुकुल कानिटकर

ग्वालियर/वेब डेस्क। भरत का चरित्र भगवान श्रीराम से कम नहीं था। धर्माधिष्ठित राज्य के निर्माण में भरत का त्याग था। चित्रकूट से भरत को वापस अयोध्या भेजते समय श्रीराम उन्हें लक्ष्य देते हैं। वे भरत को केवल लकड़ी की खड़ाऊ नहीं देते बल्कि धर्माधिष्ठित राज्य निर्माण के सूत्र बताते हैं। जिन सूत्रों पर भरत एक तपस्वी की तरह चलकर रामराज्य की स्थापना करते हैं। इसलिए रामराज्य का वास्तविक निर्माता भरत थे। कहीं न कहीं राम की चरण पादुका रामराज्य के निर्माण का ब्लूप्रिंट है। यह विचार भारतीय शिक्षण मंडल के संगठन मंत्री मुकुल कानिटकरजी ने राष्ट्रोत्थान न्यास ग्वालियर द्वारा 'राम मंदिर से राष्ट्र मंदिरÓ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय ऑनलाइन ज्ञान प्रबोधिनी व्याख्यानमाला के दूसरे दिन बतौर मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
मुख्य वक्ता श्री कानिटकरजी ने भगवान श्रीराम और माता कौशल्या के वृतांत का वर्णन करते हुए कहा कि जब कैकेई ने राम का वनवास और भरत का राज्य मांगा तो श्रीराम माता कौशल्या से आशीर्वाद लेने जाते हैं। तब वे माता से कहते हैं कि पिता के वचनों का पालन करना बहुत कर्मयोग्य है और भरत का राज्य करना धर्म आधारित है। श्रीराम माता के सामने अद्भुत उदाहरण रखते हैं। फिर श्रीराम माता को कर्तव्य पालन के बारे में बताते हैं कि पति की सेवा करना और गृहस्थी को संभालने के लिए आपका यहां रहना आवश्यक है। जब श्रीराम वन जाने से नहीं मानते हैं तो माता कौशल्या आशीर्वाद देते हुए कहती हैं कि तुमने दृढ़ धारण करके नियम से धर्म का पालन किया है वही धर्म वन में तुम्हारी रक्षा करेगा। यह धर्म का अद्भुत उदाहरण है। राम का चरित्र ऐसा है, जिसमें कोई रहस्य नहीं है। श्रीराम मूर्तिमान धर्म है। राम जो करता है वही धर्म है। यदि आप धर्म का पालन करते हो तो राम बन जाते हो। इसलिए माता कौशल्या के आशीर्वाद में यह स्नेह झलकता है। राम मंदिर का निर्माण धर्म मंदिर का निर्माण है और धर्म मंदिर से राष्ट्र मंदिर का निर्माण है। आज 108 एकड़ में भव्य राष्ट्र मंदिर का निर्माण हो रहा है। उन्होंने कहा कि मंदिरों का जीर्णोद्वार तब होता है जब समाज में जागरण होता है। इसलिए मंदिरों के जीर्णोद्वार की जरूरत है न कि उनके नवाचार की। हम पुननिर्माण की बात करते हैं नवनिर्माण की नहीं। धर्म पालन नियम बन जाए और अपवाद नहीं रहे, ये जहां होता है वहां राष्ट्र निर्माण होता है। राष्ट्र निर्माण का आधार ही मंदिर सेवा है। एक-एक योग्य व्यक्ति के सहयोग से मंदिर बने इसके पीछे एक बहुत बड़ी धर्माधिस्ट व्यवस्था की बात है। इसलिए मंदिर निर्माण में सभी का सहयोग मांगा गया। अतिथि परिचय राष्ट्रोत्थान न्यास के न्यासी डॉ. कुमार संजीव ने कराया। मंच पर न्यास के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र बांदिल मंचासीन थे। प्रतीक्षा तांबे ने गीत प्रस्तुत किया और आभार न्यास के सचिव अरुण अग्रवाल ने व्यक्त किया।
2020 अविस्मरणीय
उन्होंने कहा कि जब सारा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा था तो 2020 में वह भाग्यशाली क्षण हम सबके लिए आया, जब दो ऐसी घटनाओं ने अविस्मरणीय बना दिया। 29 जुलाई को जब नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गई और दूसरा पांच अगस्त 2020 को राम मंदिर निर्माण के लिए कार्य प्रारंभ करने का दिन। जब सारे विश्व में वेद-मंत्र गूंज रहे थे और देश का प्रधानसेवक नरेन्द्र मोदी रामलला के सामने शास्टांग दंडवत कर रहा था। राष्ट्र निर्माण की नीव रखी जा रही थी, क्योंकि देश कीभावनाओं की अपेक्षाओं का प्रतिनिधित्व नरेन्द ्रमोदी कर रहे थे। पूरे विश्व के हिंदुओं का प्रतिनिधित्व सबसे अधिक पांच अगस्त को हुआ। यह दो कार्य ऐसे हैं, जो आने वाले समय में भारतमाता को विश्व गुरू बनाएंगे। इस 2020 को डिलीट मत करना। 2020 हम सबके लिए अविस्मरीण हो गया है।
नित्य सिद्ध कार्यकर्ता को ब्रह्म प्रेरणा की आवश्यकता नहीं
मुख्य वक्ता मुकुल कानिटकरजी ने कहा कि नित्य सिद्ध कार्यकर्ता को ब्रह्म प्रेरणा की आवश्यकता नहीं है। कार्यकर्ता के अंदर दृढ़इच्छा जरूरी है। उन्होंने कहा कि हमारा देश जब समृद्ध था तब विश्व की जीडीपी का 67 जीडीपी में सहयोग करता था। राष्ट्र में अनाज का विक्रय नहीं होता था। जब वास्कोडिगामा भारत आया तो उसने कहा कि मैं यहां से अनाज खरीदकर अपने देश ले जाऊंगा। तब व्यापारी यह सुनकर दंग रह गए। हीरे-मोती तौल के भाव में मिलते थे। लेकिन निम्न किस्म के लोगों ने हमला करके राष्ट्र को लूटने का काम किया।
आज होगा समापन
व्याख्यानमाला का रविवार को समापन होगा। इस दिन सायं 5.30 बजे से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मध्य भारत प्रांत के प्रांत संघचालक अशोक पांडे जी का 'सांस्कृतिक आक्रमणों का प्रतिरोध' विषय पर व्याख्यान होगा।
