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95 किमी की रफ्तार, 20 सेकंड में शिकार, जानिए भारत आए चीतों की क्या है खासियत

95 किमी की रफ्तार, 20 सेकंड में शिकार, जानिए भारत आए चीतों की क्या है खासियत
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श्योपुर। नामीबिया से भारत लाए गए चीतों प्रधानमंत्री ने आज कूनो राष्ट्रीय उद्यान के क्वारंटाइन बाड़े में छोड़ा। यहां प्रधानमंत्री के लिए 10 फीट ऊंचा प्लेटफॉर्म नुमा मंच बनाया गया था। इसी मंच के नीचे पिंजरे में चीते थे। प्रधानमंत्री ने लीवर के जरिए बॉक्स को खोला और चीतों को कूनो राष्ट्रीय उद्यान में विमुक्त किया और कैमरा लेकर उनकी तस्वीर भी ली। इसके साथ ही देश में सात दशक बाद फिर से चीता युग की भी शुरुआत हो गई।



भारत में आजादी के समय ही चीते विलुप्त हो गए थे 1947 में देश के आखिरी तीन चीतों का शिकार मध्य प्रदेश के कोरिया रियासत के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने किया था। इसकी फोटो भी बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी में है। उस दिन के बाद से भारत में कभी भी चीते नहीं दिखे। अब 75 साल बाद आठ चीतों को नामीबिया से लाया गया है।

भारत आए चीतों की खासियत -

भारत पहुंचे आठ चीतों में तीन नर और पांच मादा चीते हैं। दो नर चीतों की उम्र साढ़े पांच साल है। दोनों भाई हैं। दोनों नामीबिया के ओटजीवारोंगो स्थिति निजि रिजर्व से लाए गए हैं। तीसरे नर चीते की उम्र साढ़े चार साल है। इसे एरिंडी प्राइवेट गेम रिजर्व से लाया गया है। पांच मादा चीतों में एक दो साल, एक ढाई साल, एक तीन से चार साल तो दो पांच-पांच साल की हैं।

चीतों की रफ्तार -

चीते अपनी रफ्तार के लिए जाने जाते है,यह 3 सेकंड में फूल स्पीड हासिल कर लेते है और जब ये पूरी ताकत से दौड़ते है 7 मीटर लंबी छलांग लगाते है। जानकारों के अनुसार ये 95 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से दौड़ लगाते है। ये महज तेज रफ्तार के बल पर महज 20 सेकंड में किसी को भी अपना शिकार बना लेते है।

चीते बिल्ली के परिवार के सबसे बड़े सदस्य होते है लेकिन खास बात ये है की ये शेर और बाघ की तरह दहाड़ नहीं सकते बल्कि बिल्ली की तरह सिर्फ गुर्राते है।

चीतों की ख़ास बात ये है यह रात में तेंदुओं की तरह शिकार नहीं कर सकते है। रात में इनकी स्थिति एक इंसान की तरह होती है ,इसलिए यह दिन में ही शिकार करते है।

मादा चीते की जिंदगी नर की अपेक्षा चुनौती पूर्ण रहती है। उसे नौ बच्चों का पालन-पोषण करना पड़ता है। जिसके लिए रोज शिकार करना जरुरी होता है साथ ही खतरनाक जानवरों से रक्षा करना भी चुनौती है।

एक शोध के अनुसार चीते के 5 फीसदी बच्चे ही व्यस्क हो पाते है। जोकि इनकी आबादी कम होने का बड़ा कारण है।

चीते और तेंदुए में अंतर -

अक्सर लोग तेंदुओं को ही चीता समझ लेते है लेकिन दोनों में काफी अंतर होते है। इनके शरीर पर मौजूद काले धब्बे होने से अक्सर लोग इनमें कन्फ्यूज हो जाते है।

चीते के शरीर पर बने धब्बे गोल बिंदी जैसे होते हैं।जबकि तेंदुए के शरीर पर बने धब्बे फूल की पंखुड़ियों जैसे होते हैं।

चीते के चेहरे पर बहते आंसू जैसी काले रंग की लंबी लाइन होती है।जबकि तेंदुए के चेहरे पर ऐसा कोई निशान नहीं होता है।

चीते घास के खुले मैदानों में रहना पसंद करते हैं।तेंदुए घनी झाड़ियों और पेड़ों वाले क्षेत्रों को पसंद करते हैं।

चीते पेड़ों पर कम चढ़ते जबकि तेंदुए पेड़ों पर ज्यादा समय बिताते हैं।

Updated : 17 Sep 2022 9:43 AM GMT
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स्वदेश डेस्क

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