कर्म भूमि से जन्म भूमि तक का सफर कैसा हो?

कर्म भूमि से जन्म भूमि तक का सफर कैसा हो?
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लॉस एंजेल्स। अमेरिकी शिक्षा संस्थानों में शिखर तक पहुंचे भारतीय मूल के शिक्षाविद, वरिष्ठ चिकित्सक, आईटी एवं मैनेजमेंट कर्मी इस 'कशमकश' में हैं कि कर्म भूमि से जन्म भूमि तक के सफ़र को कैसे सुहाना बनाया जाए। इसके लिए सात सितंबर से शुरू होने वाली तीन दिवसीय विश्व हिंदू कांग्रेस में अमेरिका व भारत के दो दर्जन से अधिक शिक्षाविद, प्रशासक उपकुलपति तैयारी के साथ शिकागो पहुंच रहे हैं। इस दौरान शिक्षा के क्षेत्र में मौजूदा चुनौतियों पर चर्चा तो होगी ही, धार्मिक मूल्यों पर आधारित शिक्षा के रचनात्मक पहलुओं पर विचार किया जाएगा। शिकागो कांग्रेस में आर्थिक, राजनैतिक, शिक्षा, महिला और युवा आदि मामलों पर एक साथ एक ही होटल में सात सम्मेलन हो रहे हैं।

जोर्जिया विश्वविद्यालय में डीन रहे डॉ. सुरेंद्र पांडे बताते हैं कि प्रदीप खोसला, सैन डिएगो, रेणु खातौर, ह्युस्टन, सतीश त्रिपाठी, बफलो, वीके खोसला, टेक्सास और सुब्रा सुरेश, कार्निज मेलन (जो इन दिनों सिंगापुर यूनिवर्सिटी) में प्रेसिडेंट के रूप में नए आयाम स्थापित कर रहे हैं। इनके अलावा भारतीय मूल के डीन, प्रोफ़ेसर और वरिष्ठ शैक्षणिक अधिकारी हैं। बोस्टन में एमआईटी और लॉस एंजेल्स में कैल टेक ऐसे दो नामी संस्थान हैं, जहां बड़ी तादाद में भारतीय छात्र नोबल पुरस्कार विजेताओं के साथ शोध कर रहे हैं। यहां अवसरों की कमी नहीं है और टैलेंट की बड़ी क़द्र है। भारत में बहुत बढ़िया शिक्षा संस्थान हैं। बस, ब्यूरोक्रेसी आड़े आ रही है।

शिकागो हिंदू कांग्रेस के संयोजक डॉ. अभय अस्थाना के अनुसार एमआईटी में नामचीन प्रो. श्रीप्रकाश कोठारी सम्मेलन की अध्यक्षता करेंगे। प्रो. कोठारी ने आशा जताई कि समाज के कमज़ोर व असहाय वर्ग के शिक्षार्थियों को क्षेत्रवाद, भाषावाद और अमीर-ग़रीब की खाई से ऊपर निकल कर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए व्यापक बंदोबस्त किए जाएंगे। शिक्षा सम्मेलन में इंजीनियरिंग और चिकित्सा शिक्षा में नामी डाक्टर मोहनदास पई, आचार्य चिन्मिया यूनिवर्सिटी से स्वामी मित्रानंद, इन्फ़िनिटी फ़ाउंडेशन से राजीव मल्होत्रा, देव संस्कृत विश्वविध्यालय से डॉ. चिन्मया पांड्या और अमेरिका से ही धर्मा फ़ाउंडेशन से डॉ. मनोहर शिंदे भाग लेंगे। माइक्रोसाफट की भली चंगी नौकरी छोड़कर दुनिया भर में हिंदी भाषा के ज़रिए आर्थिक विकास पर ज़ोर देने निकले कानपुर के मूल निवासी सुक्रांत सानू बताते हैं कि दुनिया में आने वाला समय आर्टीफ़िशियल इंटेलीजेंस का होगा। इसमें चीन लंबे डग भर रहा है। चीन ने शिक्षा में भाषा को कभी विवाद नहीं बनने दिया। एक अरब 40 करोड़ आबादी वाले देश में एक भाषा, एक नीति को आगे बढ़ाया है। शोध कार्य में चीनी भाषा को सम्मान दिया है। आज ज़रूरत इस बात की है कि हम भी अपनी एक सम्पर्क भाषा हिंदी अथवा अन्यान्य भाषाओं में तमिल, तेलुगू, कन्नड्ड या बंगाली में से किसी एक को वह सम्मान दें। अपनी सम्पर्क भाषा को समृद्ध कर शैक्षणिक विकास का दायरा बढ़ाएं।

सुक्रांत कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में क़रीब एक घंटे तक धाराप्रवाह हिंदी में देश के आर्थिक विकास की तस्वीर खींच कर यह जता दिया है कि अपनी बात कहने, समझाने में भाषा बाधक नहीं है। आज कम्प्यूटर की भाषा में अन्यान्य भाषाओं के तकनीकी शब्दों का अपनी लिपि में बाख़ूबी उपयोग किया जा सकता है। गुगुल की अनुवादित भाषा के बल पर कम्प्यूटर और मोबाइल पर बच्चों व बड़ों को अंगुलियां चलाते देखा जा सकता है। सही मानो में यही हिंदी का विकास है। मध्यप्रदेश के कुछेक गांवों का दौरा कर अमेरिका लौटे सुक्रांत बताते है कि गांवों में टैलेंट है। उन्हें विषयवस्तु का भी ज्ञान है। उनमें आगे बढ़ने की ललक भी है। बस, ज़रूरत इतनी है कि उन्हें उनकी अपनी भाषा में हम इतनी सामग्री दे दें, कि उन्हें अंग्रेज़ी के भ्रम जाल से मुक्ति मिल सके। उन्हें अहसास कराना ज़रूरी है कि अंग्रेज़ी के बिना ज्ञान अधूरा नहीं है। उन्होंने बताया कि एशिया पैसिफ़िक की एक हज़ार बड़ी कम्पनियों में 772 कम्पनियां जापान, चीन और कोरिया की हैं, जिन्होंने अपनी भाषा में व्यापार का बड़ा तंत्र खड़ा किया है।

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