राम मंदिर की धर्मध्वजा और बाबरी की राजनीति

राम मंदिर का निर्माण अब पूरा हो गया है। अयोध्या धाम में राम मंदिर पर धर्मध्वजा फहराने का समय आ गया है। यह दिव्य अवसर भारत के सांस्कृतिक गौरव की पुनर्स्थापना का क्षण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम मंदिर पर धर्मध्वजा फहराने का पुण्य लाभ प्राप्त कर रहे हैं। बाबरी विध्वंस की नींव पर खड़ा यह दिव्य, भव्य और अलौकिक राम मंदिर भी बाबरी सियासत को रोक नहीं पा रहा है।
टीएमसी के विधायक बाबरी विध्वंस की तिथि पर नई बाबरी मस्जिद के निर्माण का ऐलान कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, अयोध्या में ही बाबरी मस्जिद के निर्माण के लिए भूमि आवंटित की गई थी, जिस पर अभी तक कोई निर्माण नहीं हुआ है। बंगाल में चुनाव नजदीक होने के कारण बाबरी मस्जिद की सियासत जानबूझकर शुरू की गई है।
भारत में मस्जिदों की कमी नहीं है। इस्लाम में मस्जिद निर्माण के लिए विधान बना हुआ है। विवादित स्थान पर मस्जिद नहीं बनाई जाती, और सियासत भी मस्जिद बनाने की हकदार नहीं है। राम मंदिर का निर्माण हिंदू धर्म के आस्थावान लोगों ने अपने आपसी सहयोग से किया है। इसका संचालन भी ट्रस्ट के माध्यम से हो रहा है। बाबरी मस्जिद भारत में इस्लाम की आस्था का प्रतीक नहीं है। यह केवल एक विवादित ढांचा था, जिसे राम जन्मभूमि के रूप में हिंदू आस्था मानती रही है।
राम जन्मभूमि आंदोलन में जब सामाजिक और न्यायिक विवाद बढ़ा, तो विवादित ढांचा टूट गया। इसके बाद अदालत में लंबे समय तक केस चला। सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर निर्माण के पक्ष में फैसला दिया। अब वह क्षण आया है जब राम मंदिर का निर्माण पूर्ण हो चुका है। किसी भी मंदिर पर धर्मध्वजा फहराने का यही अर्थ है कि मंदिर को पूर्णता मिल गई है। अयोध्या धाम का राम मंदिर भारत की सामाजिक चेतना का प्रतिबिंब है।
राम मंदिर परिसर में महर्षि वाल्मीकि मंदिर के साथ ही शबरी और निषाद राज का मंदिर भी स्थित है। भारतीय संस्कृति जिस सामाजिक न्याय की आधारशिला पर खड़ी है, वह राम मंदिर परिसर में जीवंत रूप में उपलब्ध है।
इस्लाम को मानने वाला व्यक्ति मस्जिद बना सकता है, इसके लिए इस्लामिक विधान का पालन करना आवश्यक है। जो विवादित ढांचा बाबरी के नाम से जाना जाता था, उसका अब कोई अस्तित्व नहीं है। इसलिए उस नाम से कोई दूसरी मस्जिद बनाना औचित्यपूर्ण नहीं है। बाबर और बाबरी भारतीय मुसलमानों के आदर्श नहीं हो सकते। टीएमसी के विधायक यदि बाबरी मस्जिद के निर्माण की घोषणा कर रहे हैं, तो यह केवल वोट बैंक की सियासत है।
ऐसी सियासत पहले बिहार में फेल हो चुकी है, और बंगाल इसका अगला परीक्षण है। सियासत के लिए मुस्लिम समुदाय और उनके अस्तित्व को दांव पर नहीं लगाया जाना चाहिए। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर धार्मिक कट्टरता और वोट बैंक की राजनीति बढ़ाई जा रही है।
दिल्ली ब्लास्ट के बाद पकड़े गए आतंकवादियों को लेकर भी धर्मनिरपेक्षता का ही पाठ पढ़ाया जा रहा है। चिंता की बात यह है कि मुस्लिम धर्मगुरु भी यह बता रहे हैं कि देश में उनके साथ बराबरी का व्यवहार नहीं हो रहा। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं हो सकता, लेकिन यह संयोग भी नहीं है कि पकड़े जा रहे अधिकांश आतंकवादी एक ही धर्म के हैं।
बाबरी मस्जिद के निर्माण की सियासी मांग धर्मनिरपेक्षता की आड़ में की जा रही है। मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण (SIR) को भी धर्मनिरपेक्षता पर खतरा बताया जा रहा है। राहुल गांधी, अखिलेश यादव और ममता बनर्जी आरोप लगा रहे हैं कि SIR के माध्यम से उनके वोटर्स के नाम काटे जा रहे हैं, और उनका सीधा इशारा मुस्लिम वोट बैंक की तरफ है।
बाबरी ढांचा 6 दिसंबर 1992 को ढहाया गया था। यह तिथि आज भी देश के लिए संवेदनशील मानी जाती है। टीएमसी विधायक इसी तिथि पर नई बाबरी मस्जिद का निर्माण शुरू करने की बात कर रहे हैं। नई मस्जिद बने, इसमें किसी को आपत्ति नहीं हो सकती, लेकिन उसका नाम बाबरी रखा जाए, यह भारत की इस्लामी परंपरा के अनुरूप नहीं कहा जा सकता।
बाबर और बाबरी के वंशज भारत में नहीं रहते। सियासत में मुस्लिम समाज और उनके प्रतीकों का जितना दुरुपयोग हुआ है, उतना किसी अन्य समाज का नहीं हुआ। बीजेपी को हराने के लिए मुसलमान वोट बैंक बन गए, लेकिन भाजपा को मात नहीं दी जा सकी। इसका मतलब है कि राजनीतिक रूप से समाज ही हार गया है।
इस समाज को उन ताकतों से सावधान रहने की आवश्यकता है, जो उसका राजनीतिक उपयोग करना चाहते हैं। राजनीतिक हिस्सेदारी देने में इस समाज को हमेशा पीछे रखा गया है। हाल ही में संपन्न बिहार चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करने वाले किसी भी दल ने राज्य में उनकी जनसंख्या के अनुसार प्रतिनिधित्व नहीं दिया। अब यही प्रक्रिया बंगाल में शुरू की जा रही है।
भारतीय संस्कृति यह मानती है कि भाग्य पूर्व निर्धारित है। राम मंदिर के निर्माण से लेकर धर्मध्वजा फहराने तक जिस व्यक्ति की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। लोकसभा चुनाव से पहले आलोचना की गई थी कि अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा धर्म के विरुद्ध है और चुनावी लाभ के लिए किया जा रहा है। मंदिर का शिलान्यास भी पीएम मोदी ने किया था। अब राम मंदिर की पूर्णता पर धर्मध्वजा लगाने का पवित्र कर्म भी वे ही कर रहे हैं।
अयोध्या धाम भारत का सांस्कृतिक धाम बन गया है। यहाँ विकास, विरासत और दिव्यता का संगम देखा जा सकता है। अयोध्या से बाबरी का नामोनिशान मिट गया है। अब अयोध्या में राम की धर्मध्वजा को बयार बह रही है। बाबरी का सियासी झंडा बिहार में धराशाई हो गया है, और बंगाल भी वोट बैंक की सियासत को चुनौती देगा। भारत में बाबरी सोच का सियासी विध्वंस अभी भी बाकी है।
