श्रीमद्भगवद्गीता “धर्मग्रंथ नहीं”, नैतिक विज्ञान:मद्रास हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

तमिलनाडु के मद्रास हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में जोर देकर कहा है कि श्रीमद्भगवद्गीता कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक नैतिक विज्ञान और जीवन मूल्यों की शिक्षा देने वाला ग्रंथ है। इस फैसले ने न सिर्फ विवादों को शांत किया है, बल्कि यह भी स्पष्ट किया है कि बुनियादी शब्दों और समझ से परे जाकर संदर्भ को समझना ज़रूरी है।
जाने मामला क्या था?
यह विवाद कोयंबटूर में स्थित अर्शा विद्या परंपरा ट्रस्ट के एफसीआरए आवेदन से शुरू हुआ। यह ट्रस्ट गीता के अध्ययन और शिक्षण का काम करता है। 2021 में जब उसने विदेशी फंडिंग (FCRA) के लिए आवेदन किया, तो सरकार ने दावा किया कि ट्रस्ट की गतिविधियाँ धार्मिक प्रकृति की हैं और इसलिए उसे अनुमति नहीं दी जा सकती।केंद्र ने 2024 और 2025 में कई बार स्पष्टीकरण भी मांगा, लेकिन जनवरी 2025 में दायर नया आवेदन आखिरकार सितंबर 2025 में खारिज कर दिया गया। इस फैसले के खिलाफ ट्रस्ट ने हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
न्यायमूर्ति जी. आर. स्वामीनाथन ने सुनवाई के दौरान कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता को सिर्फ किसी एक “धार्मिक पुस्तक” के रूप में देखना उसकी गहन दार्शनिक और नैतिक शिक्षाओं को अनदेखा करना है।
“गीता केवल पूजा पाठ का ग्रंथ नहीं है- यह जीवन, कर्तव्य, कर्म और नैतिकता के सिद्धांतों की शिक्षा देती है, जो किसी एक धर्म तक सीमित नहीं की जा सकती।”
हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल गीता और योग का अध्ययन आधार बनाकर किसी ट्रस्ट को FCRA पंजीकरण से वंचित करना सही नहीं है।
सरकार का तर्क और कोर्ट की प्रतिक्रिया
केंद्र सरकार का यह तर्क था कि गीता, उपनिषद, वेदांत और संस्कृत शिक्षा पर केंद्रित गतिविधियाँ धार्मिक ही मानी जानी चाहिए। लेकिन हाईकोर्ट ने कहा कि यह व्याख्या FCRA की धारा 11 के अनुरूप नहीं बैठती।
कोर्ट ने यह बताया कि गीता का संदर्भ व्यापक है- यह धर्म, संस्कृति और दर्शन के बीच एक समन्वय बिंदु है, न कि केवल पूजा प्रार्थना का ग्रंथ।
पुनर्विचार के निर्देश
न्यायालय ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह ट्रस्ट के FCRA आवेदन पर फिर से विचार करें और यह सुनिश्चित करें कि केवल धार्मिक टैग के आधार पर कोई संस्था विदेशी फंडिंग से वंचित न रहे। ट्रस्ट की ओर वरिष्ठ वकील श्रीचरण रंगराजन और अधिवक्ता मोहम्मद आशिक ने बहस की। केंद्रीय गृह मंत्रालय का पक्ष अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ए.आर.एल. सुंदरेशन और उप सॉलिसिटर जनरल गोविंदराजन ने रखा।
फैसले के मायने
ट्रस्ट ने 2021 में एफसीआरए पंजीकरण के लिए आवेदन किया था, लेकिन यह कई वर्षों तक लंबित रहा। गृह मंत्रालय के स्पष्टीकरण मांगने के बावजूद मामला लंबित रहा और अंत में 2025 में आवेदन खारिज कर दिया गया। इसी निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।यह फैसला केवल एक ट्रस्ट का मामला नहीं है, बल्कि धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथों की व्याख्या पर देश में चल रही बहस का भी एक अहम मोड़ है। गीता की व्यापकता और उसके जीवन मूल्य आधारित संदेश को अदालत ने एक बार फिर स्पष्ट रूप से स्थापित किया है।
