Air India Plane Crash: छत्तीसगढ़ के मयंक ने बताई अहमदाबाद प्लेन क्रैश की आंखों देखी कहानी...

Air India Plane Crash: रायपुर। अहमदाबाद में 12 जून गुरुवार को हुए भीषण प्लेन क्रैश के घायलों को बचाने में छत्तीसगढ़ का एक बेटा अहम भूमिका निभा रहा था। प्रदेश की राजधानी रायपुर से ताल्लुक रखने वाले डॉ. मयंक देवांगन से स्वदेश के संवाददाता आदित्य त्रिपाठी ने बातचीत की। इस चर्चा में डॉ. मयंक ने सिलसिलेवार ढंग से पूरी घटना का जिक्र किया है।
मयंक बताते हैं कि यही कोई 1:30 बजे का समय था। दोपहर के समय वे अपनी ड्यूटी में तैनात थे। तभी एक तेज धमाके की आवाज ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा। मरीजों को देख रहे डॉ. मयंक और उनके कुछ साथी बिल्डिंग की बालकनी की ओर दौड़े। पहले तो कुछ समझ नहीं आया, फिर डर से सहमे डॉक्टरों ने आसमान में काले धुएं का गुबार देखा।
फिर क्या था, सभी ओर से चीखने-चिल्लाने की आवाजें आने लगीं। अब साफ हो चुका था कि एक प्लेन अस्पताल कैंपस में बने बॉयज़ हॉस्टल के ऊपर आ गिरा है। मयंक बताते हैं कि यह हॉस्टल एमबीबीएस के छात्रों का था, जहां बड़ी संख्या में छात्र मौजूद थे।
छात्रों के लंच के दौरान मेस में घुसा प्लेन
डॉ. मयंक भावुक स्वर में बताते हैं कि कॉलेज में अमूमन 1 से 2 बजे का समय एमबीबीएस छात्रों के लंच का समय होता है। बॉयज़ हॉस्टल के ग्राउंड फ्लोर पर बनी मेस में सभी छात्र एकत्र थे और खाना खा रहे थे। तभी यह प्लेन बिल्डिंग से आ टकराया। हँसते-खेलते अपना मील एंजॉय कर रहे छात्रों को बचने और भागने का कोई समय नहीं मिला।
चारों ओर अब लाशें ही लाशें थीं। कुछ लाशें उन लोगों की थीं जो विमान में सवार थे और कुछ लाशें मेस में खाना खा रहे छात्रों की थीं। किसी के हाथ-पैर कट चुके थे तो किसी का सिर गायब था। यह भयावह दृश्य हमने इससे पहले कभी नहीं देखा था। पूरा परिसर राख और विमान के टुकड़ों से भर गया।
फिर शुरू हुआ घायलों का रेस्क्यू
डॉ. मयंक देवांगन, जो गुजरात के बी.जे. मेडिकल कॉलेज के एनेस्थीसियोलॉजी विभाग में पोस्ट ग्रेजुएशन तृतीय वर्ष के छात्र हैं, प्लेन क्रैश के बाद घायल छात्रों के रेस्क्यू में जुट गए। रेस्क्यू टीम घायलों को अस्पताल लेकर पहुंची। फिर डॉ. मयंक ने अपने साथी डॉक्टरों के साथ मिलकर घायल छात्रों का इलाज शुरू किया। अपने ही जूनियर छात्रों को दर्द में बिलखता देख सभी डॉक्टर थोड़े घबराए जरूर, लेकिन अपनी ड्यूटी निभाते हुए सभी ने राहत-बचाव कार्य में पूरी ताकत झोंक दी।
मेडिकल कॉलेज के ट्रॉमा सेंटर में सभी घायलों को हर संभव इलाज दिया गया और जिन्हें मामूली चोटें थीं, उन्हें सामान्य वार्डों में शिफ्ट करने की प्रक्रिया शुरू की गई। इस पूरी प्रक्रिया में अस्पताल के लगभग सभी विभागों के 200 से ज्यादा रेजिडेंट डॉक्टर एक साथ शामिल हो गए। मयंक बताते हैं कि इन डॉक्टरों में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर की डॉ. प्रत्युषा भी शामिल थीं, जिन्होंने बचाव में बड़ी भूमिका निभाई।
