भारत के स्वभाव में झगड़ा नहीं, भाईचारा है : डॉ. मोहन भागवत

नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने शनिवार को कहा कि भारत की मूल संस्कृति झगड़े और टकराव नहीं, बल्कि भाईचारे और सामूहिक सद्भाव पर आधारित है। नागपुर में आयोजित राष्ट्रीय पुस्तक महोत्सव में उन्होंने कहा कि भारत का राष्ट्रवाद पश्चिमी अवधारणा से बिल्कुल भिन्न है। डॉ. भागवत ने कहा कि भारतीय राष्ट्रभाव प्राचीन, आत्मीय और एकता पर आधारित है, जबकि पश्चिमी देशों की 'नेशन' की अवधारणा संघर्ष, वर्चस्व और आक्रामकता के इतिहास से उत्पन्न हुई है। उन्होंने कहा कि 'राष्ट्र' सिर्फ नेशनलिज्म नहीं, बल्कि 'राष्ट्रत्व' है।
'अलग-अलग होते हुए भी हम सब एक'
सरसंघचालक ने कहा कि भारत की विविधता उसकी शक्ति है। धर्म, भाषा, भोजन, परंपराएं या प्रदेश- इनमें भिन्नता होते हुए भी सभी भारतीय एक है, क्योंकि सभी भारत माता की संतान हैं। यही हमारी मातृभूमि की संस्कृति का सार है। ज्ञान के महत्व पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि केवल जानकारी कॉफी नहीं, बल्कि जीवन का व्यावहारिक अर्थ समझना आवश्यक है। सच्ची संतुष्टि दूसरों की सेवा से मिलती है, न कि क्षणिक सफलता से।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को रोका नहीं जा सकता
टेक्नोलॉजी पर बात करते हुए डॉ. भागवत ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आगमन को रोका नहीं जा सकता, लेकिन मनुष्य को इसका मालिक रहना चाहिए। एआई का उपयोग मानवता के कल्याण और मनुष्य को बेहतर बनाने के लिए होना चाहिए। भाषा और संस्कृति पर वैश्वीकरण की चुनौतियों से जुड़े प्रश्न पर उन्होंने कहा कि वर्तमान वैश्वीकरण अधूरा है। असली ग्लोबलाइजेशन अभी आना बाकी है और भारत ही इसे दिशा देगा। भारत में 'वसुधैव कुटुम्बकमः दुनिया एक परिवार है' का विचार प्राचीन काल से मौजूद है।
