कोलकाता हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: नाबालिग भी अग्रिम जमानत ले सकते हैं

कोलकाता हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: नाबालिग भी अग्रिम जमानत ले सकते हैं
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कोलकाता हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला दिया नाबालिग अब गिरफ्तारी से पहले अग्रिम जमानत ले सकेंगे। JJ Act में मनाही नहीं मिली।

कोलकाता हाईकोर्ट का शुक्रवार का निर्णय भारतीय न्याय व्यवस्था में एक बड़ा मोड़ साबित हो सकता है। अदालत ने साफ कहा कि अगर कोई नाबालिग किसी अपराध के मामले में गिरफ्तारी से डरा हुआ है, तो वह भी अब एंटीसिपेटरी बेल के लिए आवेदन कर सकता है। अभी तक यह अधिकार सिर्फ वयस्क आरोपियों तक सीमित माना जाता था। तीन जजों की डिवीजन बेंच ने माना कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 में कहीं भी अग्रिम जमानत पर रोक का जिक्र नहीं है। इसलिए केवल उम्र के आधार पर किसी बच्चे को उस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता, जो संविधान हर नागरिक को देता है। यह फैसला इसलिए भी अहम है क्योंकि देश में किसी हाईकोर्ट ने इससे पहले इस विषय पर इतनी स्पष्ट व्याख्या नहीं की थी। फैसले ने कानूनी समुदाय और बाल अधिकार विशेषज्ञों दोनों में चर्चा छेड़ दी है।

मामला कहां से शुरू हुआ?

यह याचिका उन चार नाबालिगों ने दायर की थी जिन्हें पश्चिम बंगाल के रघुनाथगंज पुलिस स्टेशन में दर्ज पुराने मामलों में गिरफ्तारी का अंदेशा था। सवाल यह था कि क्या नाबालिग भी CrPC की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत मांग सकते हैं। कानून की व्याख्या को लेकर जजों की राय अलग-अलग थी, इसलिए इसे बड़ी बेंच के पास भेजा गया और कल आए फैसले ने इस बहस को खत्म कर दिया।

कोर्ट का फैसला 4 अहम बिंदुओं में

1. दो जजों की राय: नाबालिगों को अधिकार देना जरूरी

जस्टिस जय सेनगुप्ता और जस्टिस तीर्थंकर घोष ने कहा कि अग्रिम जमानत से नाबालिगों को वंचित करना बच्चों की सुरक्षा वाली सोच के खिलाफ है। उनका तर्क था अगर बालिग को गिरफ्तारी से पहले जमानत मिल सकती है, तो नाबालिग को क्यों नहीं? कानून बनाने का उद्देश्य बच्चों की स्वतंत्रता घटाना नहीं था। दोनों जजों ने यह भी कहा कि जरूरत पड़ने पर कोर्ट ऐसी शर्तें तय कर सकता है ताकि जेजे बोर्ड की प्रक्रिया प्रभावित न हो। बोर्ड का अधिकार तभी शुरू होता है जब नाबालिग गिरफ्तार हो।

2. एक जज की असहमति

जस्टिस बिवास पटनायक ने कहा कि अग्रिम जमानत जेजे सिस्टम को कमजोर कर सकती है। उनके अनुसार, एक्ट का पूरा ढांचा गिरफ्तारी के बाद बच्चों के कल्याण पर आधारित है, और एंटीसिपेटरी बेल उस व्यवस्था में खलल डाल सकती है।

एंटीसिपेटरी बेल क्या होती है?

यह CrPC की धारा 438 के तहत मिलने वाली राहत है गिरफ्तारी से पहले ही कोर्ट से अनुमति ले ली जाती है कि पुलिस चाहे तो गिरफ्तार करे, लेकिन तुरंत जमानत पर छोड़ना होगा। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए बनाया गया प्रावधान है।

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