दिल्ली से दबेगा बटन और कांपेगा पड़ोसी देश, ब्रह्मोस के नए अवतार से बढ़ी भारत की ताकत

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के 6 एयरबेस को तबाह कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आई भारत की सुपरसोनिक ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल अपने नए और ज्यादा ताकतवर रूप में सामने आने को तैयार है, जिसकी गूंज सीमाओं के पार तक सुनाई देगी।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद बढ़ी ब्रह्मोस की चर्चा
पिछले कुछ समय में ब्रह्मोस का नाम सिर्फ रक्षा विशेषज्ञों तक सीमित नहीं रहा। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के छह एयरबेस को तबाह करने के बाद यह मिसाइल अंतरराष्ट्रीय चर्चा का केंद्र बन गई। इसकी सटीकता और रफ्तार ने साबित कर दिया कि भारत की सैन्य क्षमता अब पुराने दायरों में बंधी नहीं है।
300 से 800 किलोमीटर तक मार
फिलहाल ब्रह्मोस की रेंज करीब 300 किलोमीटर है, लेकिन रक्षा सूत्रों के मुताबिक नए वर्जन में इसे 450, 600 और 800 किलोमीटर तक बढ़ाने पर काम तेज हो गया है। इसका मतलब साफ है—दिल्ली से बैठे-बैठे लाहौर ही नहीं, इस्लामाबाद तक को निशाना बनाया जा सकेगा। दिल्ली और इस्लामाबाद की हवाई दूरी लगभग 700 किलोमीटर है, जो अब ब्रह्मोस की पहुंच में होगी।
सुखोई के साथ आसमान से वार
ब्रह्मोस का एक हल्का संस्करण भी तैयार किया जा रहा है, जिसे सुखोई MKI-30 लड़ाकू विमान के नीचे लगाया जा सकेगा। अभी जमीन और समुद्र से दागी जाने वाली ब्रह्मोस का वजन करीब 3 टन है, लेकिन एयरफोर्स वर्जन को घटाकर लगभग ढाई टन किया जा रहा है। प्रोजेक्ट डिजाइन बोर्ड से मंजूरी के बाद यह प्रोजेक्ट अगले चरण में पहुंच चुका है।
मैक-3 की रफ्तार, दुश्मन के रडार बेबस
ब्रह्मोस दुनिया की सबसे तेज क्रूज मिसाइलों में गिनी जाती है। ‘दागो और भूल जाओ’ तकनीक पर काम करने वाली यह मिसाइल मैक-3 की रफ्तार से उड़ती है। इतनी तेज गति में दुश्मन के रडार को प्रतिक्रिया का मौका तक नहीं मिलता-और यही इसे खास बनाता है।
MTCR के बाद खुली नई राह
भारत 2016 में मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (MTCR) का सदस्य बना। इसके बाद ही ब्रह्मोस की रेंज बढ़ाने पर काम शुरू हुआ। पहले गैर-सदस्य देशों के नियमों के चलते रेंज सीमित रखनी पड़ती थी, लेकिन अब भारत अपने दम पर नई सीमाएं तय कर रहा है।
जाने कब होगा पहला टेस्ट?
ज्यादा रेंज वाली ब्रह्मोस के ग्राउंड ट्रायल की तैयारी चल रही है। अगर सब कुछ योजना के मुताबिक रहा, तो 2027 के अंत तक इस नए वर्जन का पहला परीक्षण किया जा सकता है। अगले तीन साल में इसके पूरी तरह विकसित होने की उम्मीद है।
