जमीयत उलेमा-ए-हिंद: दीनी तालीम के नाम पर बच्चों के जीवन से छल करते अवैध मदरसे…

डॉ. मयंक चतुर्वेदी: भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में एक पंथ को माननेवालों की मजहबी शिक्षा से किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती और न ही कभी होना चाहिए। किंतु जब बात देश के सुनहरे भविष्य की हो और उस भविष्य को यदि मजहबी तालीम के नाम पर सीमित रखने, उसकी बु्द्धि के विकास को षड्यंत्रपूर्वक किसी योजना से रोकने का प्रयास हो, तब जरूर देश के हर नागरिक को अपने मत, पंथ, रिलीजन, धर्म और मजहब से ऊपर उठकर इसे आड़े हाथों लेना चाहिए।
देश में पिछले कुछ वर्षों में ‘मदरसा शिक्षा’ को लेकर होनेवाले विमर्श ने जोर पकड़ा है। इसे लेकर कई विचारधाराएं हो सकती हैं। बच्चों का मामला है, ऐसे में स्वभाविक है कि पक्ष-विपक्ष दोनों को कहीं न कहीं इस संदर्भ में सहमति के बिन्दु खोजने ही होंगे, जिससे की भारत के भविष्य का संपूर्ण जीवन प्रकाशित हो सके। किंतु जब बात ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ जैसी संस्थाओं की आ जाए और ये इस्लामिक संस्थाएं सरकारी जिम्मेदारियों से बचने की सलाह दें। देश के भविष्य को मजहब के नाम पर सीमित रखने की कोशिश करें, तब अवश्य विचार करना चाहिए कि आखिर हम यह कैसा भारत गढ़ रहे हैं?
दरअसल, ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ का हाल ही में लिया गया निर्णय कि वह गैर मान्यता प्राप्त मदरसों को जबरन बंद कराए जाने के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाएगी, बहुत चौंकाता है। ‘जमीयत’ इस कदम को संविधान और मुस्लिम विरोधी बता रही है। उत्तर प्रदेश कार्यकारिणी समिति की बैठक में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रदेश अध्यक्ष मौलाना अशहद रशीदी ने यह निर्णय लिया है और ऐसी कार्रवाई को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती देने का निर्णय लिया गया है।
ध्यान रहे; ‘जमीयत’ का यह निर्णय उन मदरसों के लिए है, जो गैर मान्यता प्राप्त हैं, जो किसी नियम से नहीं चलते। स्वभाविक है कि जो सरकार की नजर में है ही नहीं, वहां अवैध गतिविधियां यदि चलती भी हैं तब कौन उनका जवाबदेह है? और तो और उन मदरसों में दीनी तालीम के नाम पर बच्चों को कोई दूसरी ही शिक्षा दी जा रही हो, तब भी कौन देखनेवाला है।
पर यहां जमीयत उलेमा-ए-हिंद कौम की भलाई के नाम पर एक बड़ी सहूलियत चाहती है, और इसीलिए ही आज वह उन तमाम अवैध मदरसों को बनाए रखने की वकालत करती नजर आ रही है, जिनका राज्य या केंद्र की शिक्षा व्यवस्था में कोई अस्तित्व ही नहीं और न कोई शिक्षा की शासकीय व्यवस्था में कहीं कोई पंजीयन है ।
जमीयत के वरिष्ठ सदस्य और विधिक सलाहकार मौलाना काब रशीदी अपनी बात को सिद्ध करने के लिए कहते हैं कि ‘साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की पीठ ने भी मदरसों को संरक्षण दिया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी पिछले साल 20 दिसंबर को मदरसों पर कार्रवाई रोकने का निर्देश दिए थे, लेकिन उसके बाद भी गैर मान्यता प्राप्त इस्लामी शिक्षण संस्थानों को जिस तरीके से बंद किया जा रहा है, वह संविधान के खिलाफ हैं।’
मौलाना काब रशीदी जानकारी देते हैं कि उत्तर प्रदेश में नेपाल से सटे बहराइच, श्रावस्ती, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बलरामपुर, लखीमपुर खीरी और पीलीभीत जिलों में प्रशासन द्वारा अवैध कब्जे और बिना मान्यता के संचालित किए जाने का आरोप लगाते हुए 200 से ज्यादा मदरसों को बंद कराया जा चुका है।
वैसे उत्तर प्रदेश में ही क्यों इस वक्त योगी सरकार की तरह ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार भी लगातार अवैध मदरसों पर नकेल कस रही है। इसी तरह का दृष्य मध्य प्रदेश में डॉ. मोहन यादव की सरकार में वहां राज्य बाल संरक्षण आयोग की सक्रियता से कई बार सामने आ चुका है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव भी बच्चों के भविष्य को लेकर होनेवाली खिलवाड़, शिक्षा की गुणवत्ता और अवैध मदरसों को लेकर सख्त दिखाई देते हैं।
इसी प्रकार से देश के कुछ अन्य राज्यों में भी अवैध मदरसों को पर कुछ न कुछ कार्रवाई जरूर चल रही है। उन पर सख्ती बरती जा रही है और नोटिस दिए जा रहे हैं। पर यहां यह समझ नहीं आता है कि अपने आप को मुसलमानों की पैरोकार बताने वाली ये संस्था ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ अपने ही मजहबी बच्चों के जीवन के साथ इस तरह का खिलवाड़ आखिर कैसे कर सकती है? जिसमें कि उन्हीं के समाज से बच्चे आधुनिक शिक्षा लेने से दूर रह जाते हैं, फिर यही संस्थाएं मुसलमानों के पिछड़े पन के लिए सरकारों को दोषी ठहराती दिखती हैं।
जब इस विषय पर इस्लामिक विद्वान एवं अन्य कानून एवं बच्चों के हित में काम कर रहे विशेषज्ञों से बात की गई तो उन्होंने अवैध (गैर मान्यता प्राप्त) मदरसों के समर्थन के लिए जमीयत को ही दोषी ठहराया। वर्तमान में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य एवं पूर्व में राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष रहे प्रियंक कानूनगो कहते हैं, “इस संगठन के मौलवी नहीं चाहते हैं कि बच्चे आधुनिक शिक्षा से जुड़ें। कट्टर पंथ को कायम रखने के लिए वे चाहते हैं कि कौम के बच्चे आधुनिक पढ़ाई से मरहूम रहें।
कोई भी धर्म नहीं कहता कि बच्चों को इल्म से दूर रखा जाए। लेकिन यहां जमीयत की गैर मान्यता प्राप्त मदरसों को चलाने की जिद वास्तव में यह बताती है कि ये वही लोग हैं जो पसमांदा मुसलमानों एवं अन्य कई मुसलमानों को गरीबी में रखकर अपना राज कायम रखना चाहते हैं।”
प्रियंक कानूनगो आगे मदरसा शिक्षा के संबंध में एनसीपीसीआर के अपने पुराने अनुभव को साझा करते हुए बताते हैं, “पिछले साल मदरसा एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया है, उसमें न्यायालय ने भी अपने कंक्लूजन में ये बात बड़ी स्पष्टता से कही है कि राइट टू एजुकेश एक्ट, जो आर्टिकल 21(ए) संविधान के द्वारा बच्चों को दिया गया है, उसकी समानता के साथ ही धार्मिक शिक्षा दी जाएगी। ऐसे में स्वभाविक है कोई भी सरकार ये अवश्य देखेगी कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं अथवा नहीं।
मुस्लिम बच्चे दीनी तालीम लें कोई नहीं रोक रहा, लेकिन अवैध मदरसों के नाम पर उन्हें आधुनिक शिक्षा जो उन बच्चों का अपना मौलिक अधिकार भी है, उससे कैसे दूर किया जा सकता है? यदि उन्हें आधुनिक शिक्षा से दूर किया गया है या गैर मान्यता प्राप्त मदरसों के माध्यम से किया जा रहा है तो स्वभाविक है, कोई भी राज्य सरकार होगी वह इन मदरसो पर कार्रवाई करेगी।”
कानूनगो ने यह भी बताया कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग में रहते हुए उन्होंने पाया कि मान्यता प्राप्त मदरसे तक में आरटीई एक्ट 2009 के अनुरूप सिलेबस चलता हुआ नहीं मिला है। मदरसों में राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद द्वारा अनिवार्य योग्य शिक्षकों की कमी है।
धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों की अनदेखी करते हुए ये बड़ी तादात में पाया गया कि वहां हिंदू और अन्य गैर-मुस्लिम बच्चे इस्लामी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। यह हाल जब मान्यता प्राप्त मदरसों का हो सकता है, तब गैर मान्यता प्राप्त या अवैध मदरसों को चलाए रखने की अनुमति कोई भी लोककल्याणकारी राज्य सरकार कैसे दे सकती है।
सर्वोच्च न्यायालय की अधिवक्ता सुबुही खान ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ की गैर मान्यता प्राप्त मदरसों के मामले को लेकर कोर्ट जाने के निर्णय को अनुचित ठहराती हैं। वे कहती हैं, “यह दर्भाग्य है भारत में मुसलमानों का कि उन्हें ऐसी लीडरशिप नहीं मिली, जो अपने ही बच्चों का और अपनी कौम के भविष्य की चिंता करे। किसी भी बच्चे का दिमाग और उसका चरित्र बचपन में दी गई शिक्षा से ही बनता है।
लेकिन यहां उन्हें बचपन में ही मुख्यधारा से दूर करने के प्रयास हुए हैं और अधिकांश बच्चों को मदरसा शिक्षा से जोड़ दिया गया। जिसमें कि ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ का गैर मान्यता प्राप्त मदरसों को संचालित करने का समर्थन करना बहुत गलत है, क्योंकि जिसकी मान्यता नहीं या जो मान्यता लेना नहीं चाहते, स्वभाविक है उसमें बहुत अवैध काम होते हैं। ऐसे स्थलों पर बच्चों के साथ कई अवराध होते हैं और उन्हें शिक्षा के नाम पर कट्टरवादी बना दिया जाता है।”
राष्ट्रीय जागरण अभियान की संस्थापक व राष्ट्रीय समन्वयक सुबुही खान का कहना है, “इन स्थलों पर न सरकार का कोई हस्तक्षेप रहता है और न पढ़े लिखे मुस्लिम समाज का। जबकि जो मान्यता प्राप्त मदरसे हैं, उन्हें सरकार से आर्थिक मदद भी मिलती है। दूसरी ओर आज हमारी सरकारें मदरसों को मॉर्डेनाइज करने की दिशा में काम कर रही हैं।
एनसीईआरटी का सिलेबस भी लागू करने की बात कही जा रही है। स्वभाविक है सरकार की नजर होने पर वहां अपराध होने की संभावना कम रहेगी। वास्तव में जो लोग अवैध मदरसों के नाम पर अपनी दुकानें चलाते हैं, अवैध धंधे करते हैं उन्हें ही गैर मान्यता प्राप्त मदरसों पर की जा रहे सरकारी एक्शन को लेकर परेशानी हो सकती है। कोई भी मुसलमानों का नेता जो बच्चों का भला चाहेगा वह यही इच्छा रखेगा कि अवैध मदरसे नहीं चलना चाहिए।’’
इसी तरह से इस्लाम के विद्वान जमात उलेमा ए हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना सुहैब कासमी गैर मान्यता प्राप्त मदरसों की वकालत करने पर जमीयत उलेमा-ए-हिंद संगठन और उसके प्रदेश अध्यक्ष मौलाना अशहद रशीदी को बुरी तरह घेरते हैं, मौलाना सुहैब कासमी ने कहा, “ये वह संस्था है जो पिछले 70 सालों से मुसलमान को देश के अंदर नेगेटिव अंदाज में तैयार कर रही है। आप इस संस्था के प्रदेशों के अध्यक्षों से बात कीजिए, आपको पता चल जाएगा कि ये मुसलमानों का इस्तेमाल अपने स्वार्थ के तौर पर करते चले आ रहे हैं।
इनकी एक ही सोच है कि हिन्दुस्तान में मुसलमान परेशान दिखेगा तो इन्हें विदेशों से फंडिंग मिलती रहेगी। यह दुनिया के देशों में जाकर यही बताते हैं कि भारत में मुसलमान बहुत परेशान हैं, उनसे मस्जिद छीनी जा रही हैं। मदरसे बंद कि जा रहे हैं, हम उनको पढ़ा रहे हैं, इसलिए आप हमें पैसा दीजिए। ये पूरा ड्रामा चंदेवाजी और जकात इकट्ठा करने के लिए हो रही है।”
मौलाना सुहैब का कहना है, “ये वही लोग हैं, जिन्होंने कई मदरसों को कभी रजिस्टर्ड नहीं होने दिया। मुसलमानों को पहले भी और आज भी यह कहकर भड़काया कि रजिस्टर करेंगे तो सरकार इन पर कब्जा कर लेगी। जो रजिस्टर्ड हुए हैं उनमें भी यह लोग यही कहते रहे और समझाने का प्रयास करते हैं कि तुम्हें रामायण और गीता पढ़ाई जाएगी। तुम्हारा ईमान छीन लिया जाएगा, इसलिए सरकार से दूर रहो। यदि यह दूर रहेंगे तो हिसाब नहीं देना पड़ेगा। यह सारा मामला सरकार को हिसाब नहीं देने का है।”
मौलाना सुहैब कासमी इतना कहकर ही नहीं, रुकते, वे बहुत स्पष्टता से कहते हैं कि ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ और पर्सनल लॉ बोर्ड इनके जो भी मौलवी हैं, उनका एक गठजोड़ बन गया है। ये सभी इस्लाम की सेवा के नाम पर अलग-अलग संस्थान चला रहे हैं, और इन संस्थाओं के माध्यम से यह पूरी दुनिया को दिखाते हैं कि देखो; भारत देश के अंदर मुसलमान पिट रहा है। यह भारत की विश्व में नकारात्मक छवि बनाने का काम करते हैं ताकि अधिक से अधिक चंदा इकट्ठा किया जा सके। अभी भी यह दुनिया को यही दिखा रहे हैं ।
एक तरफ हमारे संसदीय प्रतिनिधिमंडल (डेलिगेशन) पूरी दुनिया में बात कर रहे हैं और पाकिस्तान की सच्चाई, उसके आतंकवाद को बेनकाब कर रहे हैं तो दूसरी तरफ इन संगठनों के लोग घूम रहे हैं जो यह बता रहे हैं कि मुसलमान भारत में मारा जा रहा है, प्रताड़ित है, वह बर्बाद हो गया।
वे यह भी सवाल खड़ा करते हैं कि ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ ने ऑपरेशन सिंदूर की सफलता पर क्या भारत भर में जश्न मनाया? इन्होंने कोई बड़ा कार्यक्रम किया हो तो बता दो? वास्तव में इन्होंने भारतीय सैनिकों के सम्मान में कोई भी बड़ा आयोजन नहीं किया, क्योंकि इनका ये मानना है कि यदि ऐसा करेंगे तो पाकिस्तान, इंग्लैंड अमेरिका, दुबई, कतर जैसे कई देशों से भारत में मुसलमान प्रताड़ना के नाम पर इन्हें जो रुपया देते हैं, वह रुपया नहीं देंगे।
इनका आरोप है कि “आज जो मुसलमान की हालत है इसका कारण जमीन उलेमा ए हिंद जैसी तंजीमें हैं । जिन्होंने देश के आम मुसलमान को नकारात्मकता दिखाई और हिंदू भाइयों को अपना कौमी दुश्मन बता रखा है । ये आज इसीलिए ही गैर मान्यता प्राप्त मदरसों का समर्थन करते नजर आते हैं ताकि मौलवी मदरसा संचालन के लिए चंदा मांगता रहे, सड़कों पर जलील होता रहे और इन सभी के आगे हाथ फैलाता रहे।”
इस संबंध में जब मप्र राज्य बाल संरक्षण आयोग (एससीपीसीआर) की डॉ. निवेदिता शर्मा से मदरसों में शिक्षा ले रहे बच्चों के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि अब तक के उनके कार्यकाल में इस मामले से जुड़े उनके अनुभव अच्छे नहीं रहे। नियमित तौर पर शिक्षण संस्थाओं में निरीक्षण के दौरान मदरसों में जाना हुआ है। बहुत बुरी हालत में है मदरसे।
अब तक एक भी मदरसा निरीक्षण में ऐसा नहीं मिला, जिसे बच्चों के हित में सुविधाओं के हिसाब से अच्छा कहा जाता। अवैध मदरसों के लिए तो क्या बोलें, जो शासन के ध्यान में भी हैं, मदरसा बोर्ड से जिन्होंने मान्यता ले रखी है, वे भी अपने यहां बच्चों को नियमानुसार सुविधाएं मुहैया नहीं करा रहे। मदरसों में ऐसे बच्चों की एंट्री है, जो कभी मदरसा पढ़ने तक नहीं आते हैं।
इसके साथ ही उन बच्चों के नाम शासन की मान्यता प्राप्त बोर्ड परीक्षा में लिखवा दिए गए हैं, जोकि कभी परीक्षा देने आएंगे ही नहीं। उम्र में हिसाब से 23 से 28 साल वालों को भी कक्षा आठ का विद्यार्थी बता दिया जाता है। जानकारी मांगने पर उनकी सही जानकारी नहीं दी जाती। एक हाल में ही पहली से आठ तक की कक्षाएं संचालित होना पाया जाता है। बालिकाओं और बालक दोनों के लिए सिर्फ एक ही शौचालय कई जगह मिला। बड़ी संख्या में गैर हिन्दू बच्चों की एंट्री मिली है। उन्हें दीन-ए-तालीम उनके माता-पिता की अनुमति के बिना दी जा रही है। उसमें भी जो पढ़ाया जा रहा है, वह भी बहुत आपत्तिजनक है।
वे पूछती हैं, हिन्दू बच्चों को ‘‘तालीमुल इस्लाम’’ जैसी किताबें क्यों पढ़ाना? इस किताब में लिखा है कि ‘‘ईमान लाया मैं अल्लाह पर और उसके फरिश्तों पर और उसकी किताबों पर और उसके रसूलों पर और कियामत के दिन पर’’ इसी किताब में लिखा है ‘जो लोग अल्लाह को नहीं मानते उन्हें काफिर कहते हैं’ फिर एक जगह लिखा है, जो लोग खुदा तआला के सिवा और चीजों की पूजा करते हैं, ऐसे लोगों को काफिर और मुश्रिक कहते हैं।, मुश्रिकों को बख्शा नहीं जाएगा।’इसी प्रकार की अन्य पुस्तकें भी हैं जिनमें बहुत कुछ वह लिखा हुआ है जो बच्चों के मन पर कम से कम समरस समाज बनाने के लिए तो कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं डालतीं, बल्कि उन्हें इस्लाम के प्रति कट्टरता से भर दे रही हैं।
डॉ. निवेदिता शर्मा यहां यह भी पूछती हैं कि क्या यह शिक्षा हिन्दू या अन्य किसी भी बच्चे को दी जानी चाहिए? कि जो खुदा को नहीं मानेंगे वे बख्शे नहीं जाएंगे। यानी जो खुदा को माने वही अच्छे और सच्चे हैं, बाकी गलत । जावरा के पास उमठ पालिया गांव के एक अवैध मदरसे आता-ऐ-रसूल का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि जब बच्चों से सवाल किए तो उनका कहना था कि वे कुरान पढ़ने से जन्नत की उम्मीद में यहां आए हैं।
वह कुरान पढ़ने से ही मिलेगी, स्कूल जाने से नहीं। ये बच्चे यूपी, राजस्थान और मध्य प्रदेश के अलग-अलग जिलों से थे। यह कई जगह देखा गया है कि मदरसे में बच्चों को सिर्फ मजहबी शिक्षा दी जा रही थी, और कोई भी बच्चा स्कूल नहीं जाता। यह शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है। इसलिए बाल संरक्षण आयोग को मदरसों की मनमानी पर एतराज है।
जिसमें कि गैर मान्यता प्राप्त या अवैध मदरसे तो बिल्कुल ही बंद हो जाने चाहिए। हां, यदि कौमी तालीम के हिसाब से मदरसा शिक्षा देना अनिवार्य ही है, तो इस प्रकार की दो कि बच्चा शिक्षा लेने के बाद योग्यत बन सके। अन्यथा मदरसा शिक्षा के नाम पर बच्चों का भविष्य खराब मत करो, क्योंकि यही देश का आनेवाला कल हैं।
