हिंदी बोलने को मजबूर करना और लुंगी का मजाक उड़ाना बर्दाश्त नहीं : सुप्रीम कोर्ट

हिंदी बोलने को मजबूर करना और लुंगी का मजाक उड़ाना बर्दाश्त नहीं : सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में केरल के दो छात्रों के साथ मारपीट की घटना पर गंभीर चिंता जताई है। शीर्ष न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि “हम एक देश हैं- हिंदी बोलने को मजबूर करना और लुंगी पहनने का मजाक उड़ाना बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।”

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने हाल ही में लाल किले के पास हुई उस घटना का उल्लेख किया, जिसमें छात्रों को हिंदी बोलने के लिए मजबूर किया गया और पारंपरिक पोशाक लुंगी पहनने पर उनका मजाक उड़ाया गया।

जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे की पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार को ऐसे सांस्कृतिक और नस्लीय भेदभाव के मामलों को लेकर गंभीरता से कदम उठाने चाहिए। कोर्ट ने कहा, “देश में सांस्कृतिक और नस्लीय भेदभाव के कारण लोगों को निशाना बनाना बेहद दुखद है।”

पीड़ित छात्र दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज के प्रथम वर्ष के छात्र बताए गए हैं। उन्हें कथित रूप से पुलिस और स्थानीय लोगों ने पीटा था।

कोर्ट 2015 में दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जो अरुणाचल प्रदेश के छात्र नीडो तानिया की दिल्ली में हुई मौत के बाद दायर की गई थी। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक कमेटी बनाने का निर्देश दिया था, ताकि नस्लीय और सांस्कृतिक भेदभाव के मामलों पर निगरानी रखी जा सके।

सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने बताया कि निगरानी कमेटी पहले ही गठित की जा चुकी है, इसलिए अब याचिका में कुछ नहीं बचा है।हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील गैचांगपाउ गांगमेई ने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों के साथ भेदभाव और बहिष्कार की घटनाएं आज भी जारी हैं।

इस पर पीठ ने कहा, “हमने अखबार में पढ़ा कि दिल्ली में एक केरल निवासी को लुंगी पहनने पर मजाक का सामना करना पड़ा। यह अस्वीकार्य है। हम सभी एक साथ रहते हैं, और किसी को सांस्कृतिक भिन्नता के आधार पर निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए।” कोर्ट ने कहा कि भेदभाव, अत्याचार और हिंसा के मामलों में सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए और ऐसे मामलों को रोकने के लिए प्रभावी उपाय अपनाने होंगे।

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