New Delhi: सरकारी जैविक संस्थाओं पर नकेल से किसान परेशान

सरकारी जैविक संस्थाओं पर नकेल से किसान परेशान
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New Delhi: दुनियाभर में अपने जैविक उत्पादों के बाज़ार में अपनी अलग पहचान बनाने वाले भारतीय जैविक उत्पाद आंदोलन को तगड़ा झटका लगा है।

New Delhi: दुनियाभर में अपने जैविक उत्पादों के बाज़ार में अपनी अलग पहचान बनाने वाले भारतीय जैविक उत्पाद आंदोलन को तगड़ा झटका लगा है। इस सेक्टर को पंजीकृत करने वाली संस्था कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने अच्छा काम कर रही कई सरकारी एजेंसियों के लाइसेंस निलंबित कर दिए हैं, या फिर उनके लाइसेंस की तिथि को आगे नहीं बढ़ाया जा रहा है। साथ ही साथ कई निजी संस्थाओं के हवाले यह पूरा आंदोलन कर दिया है। इससे जैविक खेती कर रहे किसानों को ख़ासा नुकसान होने लगा है।

कृषि विशेषज्ञ डॉ. अनुराग शर्मा ने बताया कि पिछले कुछ महीनों में कई राज्य सरकार की जैविक सर्टिफिकेट प्रदान करने वाले संस्थाओं के लाइसेंस या तो निलंबित कर दिए गए हैं, या फिर उनके कामकाज में बाधा पैदा की जा रही है। कई सरकारी सीवीओ के खिलाफ जांच चल रही है। उत्तराखंड राज्य जैविक पंजीकरण संस्था के प्रमाण पत्र को भी आगे नहीं बढ़ाया गया है। तमिलनाडू जैविक विभाग का पंजीकरण लाइसेंस भी अप्रैल में ही खत्म हो गया है, उसे भी आगे नहीं बढ़ाया गया है।

राजस्थान और उत्तर प्रदेश की राज्य जैविक संस्थाओं को उनके राज्य में ही काम करने के लिए बाध्य किया जा रहा है। जबकि निजी संस्थाओं पर इस तरह की रोक नहीं लगाई जा रही है। इसकी वजह से देश में जैविक खेती करने वाले किसानों पर संकट मंडराने लगा है।

उत्तराखंड के रुद्रपुर में जैविक खेती का काम करने वाले किसान विकास पंत ने बताया कि पहले उनको अच्छे दाम मिल रहे थे, लेकिन अब राज्य की एजेंसी पहले की तरह मार्केट नहीं कर पा रही है, इसलिए उनके उत्पादों को बाज़ार मिलने में परेशानी आने लगी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जैविक खेती को लेकर कई अभियान शुरु किए हैं, इसके बाद सरकार ने जैविक उत्पाद निर्यात के लिए एक अरब डॉलर का लक्ष्य रखा था, लेकिन एपीडा में सरकारी एजेंसियों पर लगाई गई इस लगाम के बाद पूरे सेक्टर में संश्य के बाद छा गए हैं।

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