गोबर लिपाई का वैज्ञानिक कनेक्शन: DU प्रिंसिपल ने क्लासरूम की दीवारों पर की गोबर से लिपाई, जानिए कितना पुराना है इसका इतिहास

Cow Dung Plastering : आज के दौर में जहां रासायनिक पेंट और सीमेंट का बोलबाला है, वहां अब गोबर की प्रथा फिर से ध्यान खींच रही है। पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक जीवनशैली की ओर बढ़ते कदमों के साथ लोग गोबर के फायदों को फिर से खोज रहे हैं। शहरी क्षेत्रों में भी कुछ लोग इसे अपना रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण है DU की प्रिंसिपल। दिल्ली यूनिवर्सिटी के लक्ष्मीबाई कॉलेज की प्रिंसिपल को कक्षा की दीवारों पर गाय के गोबर का लेप लगाते हुए एक वीडियो सामने आया है। इसके बाद से सोशल मीडिया पर वबाल मचा है। आइये इस लेख में जानते है कि, आखिर गोबर लिपाई का क्या है वैज्ञानिक कनेक्शन?
DU प्रिंसिपल ने क्लासरूम की दीवारों पर क्यों की गोबर से लिपाई
DU की प्रिंसिपल प्रत्युष वत्सला ने बताया कि यह काम एक संकाय सदस्य द्वारा किए जा रहे शोध का हिस्सा था। उन्होंने कहा कि इस परियोजना का नाम पारंपरिक भारतीय ज्ञान का उपयोग करके ताप तनाव नियंत्रण (Heat Stress Control) का अध्ययन है। कथित तौर पर उन्होंने खुद ही कॉलेज के शिक्षकों के समूह में वीडियो शेयर किया। इसमें बताया गया कि सी ब्लॉक में क्लासरूम को ठंडा रखने के लिए देसी तरीके अपनाए जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि यह प्रक्रियाधीन है। मैं एक सप्ताह के बाद पूरे शोध का विवरण साझा कर पाऊंगी। शोध पोर्टा केबिन में किया जा रहा है। मैंने उनमें से एक को खुद ही लेपा है क्योंकि प्राकृतिक मिट्टी को छूने से कोई नुकसान नहीं है। कुछ लोग पूरी जानकारी जाने बिना गलत सूचना फैला रहे हैं। वीडियो में वत्सला स्टाफ की मदद से दीवारों पर गोबर लगाती नजर आ रही हैं।
अब जानते हैं गोबर लिपाई का इतिहास
दरअसल, भारत में आज भी कच्चे घरों में गाय के गोबर से लिपाई की जाती है। यह परंपरा वैदिक काल (1500 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व) से चली आ रही है। यह परंपरा न केवल सांस्कृतिक रूप से और वैज्ञानिक रूप से महत्त्वपूर्ण है। भारतीय समाज में गाय को "गौ माता" के रूप में पूजा जाता था और उसके उत्पादों- दूध, घी, गोबर और मूत्र- को पवित्र माना जाता था। घरों का निर्माण ज्यादातर मिट्टी, लकड़ी और घास से होता था, जो समय के साथ खराब हो सकते थे। गोबर को मिट्टी के साथ मिलाकर दीवारों पर पोतने की शुरुआत इसलिए हुई, क्योंकि यह सस्ता, आसानी से उपलब्ध और बहुउपयोगी था।
घरो को शुद्ध करने के लिए गोबर का लेप
ऋग्वेद और अन्य वैदिक ग्रंथों में गाय के महत्व का उल्लेख मिलता है, जहां गोबर को शुद्धता और समृद्धि का प्रतीक माना गया। उस समय लोग गोबर को औषधीय गुणों के लिए भी जानते थे और इसे घरों को साफ-सुथरा रखने के लिए इस्तेमाल करते थे। धीरे-धीरे यह प्रथा एक सांस्कृतिक रिवाज बन गई, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ती रही। मध्यकाल में जब ग्रामीण इलाकों में पक्के मकान कम थे, गोबर और मिट्टी का उपयोग दीवारों को मजबूत और कीटाणुरहित बनाने के लिए और बढ़ गया। आज भी यह परंपरा कई गांवों और पारंपरिक परिवारों में देखी जाती है, खासकर त्योहारों जैसे दीपावली और गोपाष्टमी के दौरान जब घरों को साफ और शुभ बनाने के लिए गोबर का लेप लगाया जाता है।
गोबर पोतने के पीछे वैज्ञानिक कारण
गोबर को दीवारों पर पोतने के पीछे कई वैज्ञानिक और व्यावहारिक कारण हैं, जो इसे आज भी प्रासंगिक बनाते हैं। आइए, इन कारणों को विस्तार से समझते हैं:
प्राकृतिक कीटाणुनाशक गुण
गोबर में अमोनिया, लैक्टिक एसिड और अन्य जैविक यौगिक पाए जाते हैं, जो बैक्टीरिया, वायरस और कीड़ों को नष्ट करने में सक्षम होते हैं। जब इसे दीवारों पर पोता जाता है, तो यह घर के अंदर हानिकारक सूक्ष्मजीवों को कम करता है। शोध बताते हैं कि गोबर में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं, जो मलेरिया और डेंगू जैसे रोगों को फैलाने वाले मच्छरों को भी भगाने में मदद करते हैं। यह प्राकृतिक तरीका आधुनिक कीटनाशकों के बिना स्वच्छता सुनिश्चित करता है।
हवा की शुद्धता
गोबर हवा में मौजूद प्रदूषक गैसों, जैसे मिथेन, कार्बन डाइऑक्साइड और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों को सोखने की क्षमता रखता है। इसे दीवार पर लगाने से इन गैसों का स्तर कम होता है और ऑक्सीजन का संचार बढ़ता है। पर्यावरण वैज्ञानिकों के अनुसार, गोबर का लेप वायु प्रदूषण को कम कर घर के अंदर सकारात्मक वातावरण बनाता है, जो श्वसन संबंधी समस्याओं से बचाव करता है।
तापमान नियंत्रण और इंसुलेशन
गोबर की मिट्टी गर्मी को अवशोषित करने और ठंडक बनाए रखने में सक्षम होती है। गर्मियों में यह दीवारों को ठंडा रखती है, जबकि सर्दियों में अंदर की गर्मी को संरक्षित करती है। यह प्राकृतिक इंसुलेशन का काम करता है, जो बिजली की खपत को कम करने में भी मददगार है। ग्रामीण इलाकों में, जहां एयर कंडीशनर या हीटर का इस्तेमाल संभव नहीं, यह तकनीक बेहद उपयोगी साबित होती है।
दीवारों की मजबूती और संरक्षण
गोबर में चूने जैसे खनिज तत्व और कार्बनिक पदार्थ होते हैं, जो दीवारों को मजबूती प्रदान करते हैं। यह नमी को सोखता है और फफूंदी, सड़न या दीमक से बचाव करता है। मिट्टी की दीवारों पर गोबर का लेप लगाने से उनकी उम्र बढ़ती है और वे मौसम के बदलावों का सामना बेहतर तरीके से कर पाती हैं। यह पारंपरिक निर्माण तकनीक आधुनिक सीमेंट की तुलना में पर्यावरण के लिए कम हानिकारक भी है।
सकारात्मक ऊर्जा और मानसिक स्वास्थ्य
वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि गोबर से निकलने वाले नकारात्मक आयन वातावरण को शुद्ध करते हैं, जो तनाव कम करने और मानसिक शांति बढ़ाने में सहायक होते हैं। पारंपरिक मान्यताओं में इसे शुद्धता और सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। यह घर के अंदर एक शांतिपूर्ण माहौल बनाता है, जो परिवार के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
पर्यावरण मित्रता और लागत प्रभाविता
गोबर एक नवीकरणीय संसाधन है, जो गाय पालने वाले हर घर में उपलब्ध होता है। इसे इस्तेमाल करने से कचरे का पुनर्चक्रण होता है और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचता। इसके अलावा, यह मंहगे पेंट या रंगों की तुलना में कहीं सस्ता है, जो इसे आर्थिक रूप से लाभकारी बनाता है।
सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आयाम
गोबर को दीवारों पर पोतने की प्रथा सिर्फ विज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मान्यताएं भी हैं। हिंदू धर्म में गाय को माता माना जाता है, और उसके गोबर को शुद्धता का प्रतीक माना जाता है। दीवारों पर गोबर लगाने से घर को नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त करने और सकारात्मकता लाने की मान्यता है। त्योहारों के दौरान, जैसे दीपावली या गोपाष्टमी, इसे शुभ माना जाता है और घर को साफ करने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। यह परंपरा सामाजिक एकता को भी बढ़ावा देती है, क्योंकि गांवों में लोग मिलकर इस काम को करते हैं।
वैज्ञानिक शोध
हाल के वर्षों में वैज्ञानिकों ने गोबर के गुणों पर शोध किया है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) और अन्य संस्थानों के अध्ययन बताते हैं कि गोबर में एंटी-माइक्रोबियल गुण होते हैं, जो इसे एक प्राकृतिक कीटाणुनाशक बनाते हैं। इसके अलावा, इसके इंसुलेशन गुणों पर भी काम हो रहा है, ताकि इसे आधुनिक निर्माण में शामिल किया जा सके।
गाय पालकों के लिए अतिरिक्त आय का स्रोत
गोबर का उपयोग न केवल घरों के लिए फायदेमंद है, बल्कि यह समाज और पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव डालता है। यह गाय पालकों के लिए अतिरिक्त आय का स्रोत बनता है और इसके जरिए कचरे का प्रबंधन भी संभव है। इससे जैविक खेती को बढ़ावा मिलता है, क्योंकि गोबर को खाद के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। यह एक चक्रीय अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन सकता है, जो प्रकृति और मानव जीवन के बीच संतुलन बनाए रखता है।
घर की दीवारों पर गोबर पोतने की परंपरा वैदिक काल से शुरू होकर आज तक जीवित है और इसके पीछे विज्ञान और संस्कृति का अनोखा मेल है। यह न केवल घर को स्वस्थ, मजबूत और ठंडा रखता है, बल्कि हवा को शुद्ध कर पर्यावरण को भी लाभ पहुंचाता है। सांस्कृतिक रूप से इसे शुद्धता का प्रतीक माना जाता है, जबकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह एक प्राकृतिक उपाय है।