बिहार में करारी हार के बाद खड़गे के घर बंद-दरवाज़ा बैठक, पार्टी बोली दो हफ्तों में सबूत देंगे

बिहार चुनाव नतीजे कांग्रेस के लिए सिर्फ हार नहीं थे। यह एक ऐसा झटका था जिसने दिल्ली तक सन्नाटा खींच दिया। शनिवार रात पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास पर हुई बैठक में यह बेचैनी साफ दिखाई दी। कमरे में माहौल भारी था सिर्फ यह सवाल कि आखिर बिहार में ऐसा क्या हुआ कि पार्टी छह सीटों पर सिमट गई।
बैठक में उठा सबसे बड़ा सवाल: हार क्यों हुई?
नेताओं ने सीटों, उम्मीदवारों, गठबंधन और जमीन पर हुई गलतियों की समीक्पषा कीरतें खोलकर देखीं। हर बार एक ही बात उभरकर सामने आई कि नतीजे उम्मीद से ज्यादा खराब रहे। संगठन से लेकर रणनीति तक सबकी समीक्षा हुई। खड़गे ने नेताओं से सीधे पूछा कि जहां कांग्रेस ने 60 सीटों पर उम्मीदवार दिए, वहां सिर्फ छह ही क्यों जीते। पिछले चुनाव में 19 सीटें मिली थीं। वोट शेयर भी गिर गया।
कांग्रेस का आरोप: चुनाव में गड़बड़ी हुई
बैठक के बाद केसी वेणुगोपाल बाहर आए तो शब्द कम थे पर आरोप बड़े। उन्होंने कहा कि पार्टी चुनाव में हुई अनियमितताओं के सबूत इकट्ठा कर रही है और अगले दो हफ्तों में देश के सामने रखेगी। अजय माकन ने भी इसी चिंता को दोहराया। उन्होंने कहा कि कई बूथों से कार्यकर्ताओं ने लगातार शिकायतें भेजीं, और यह सब यूं ही अनदेखा नहीं किया जा सकता। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह नतीजे सामान्य नहीं थे। गठबंधन के कई दलों ने भी यही माना है कि यह परिणाम अप्रत्याशित हैं और इनकी जांच जरूरी है।
कहां फंसा महागठबंधन
तेजस्वी को चेहरा बनाने में देरी और विवाद
टिकट बंटवारे पर खींचतान
अंतिम समय तक सीटों का स्पष्ट फैसला नहीं
नौ सीटों पर सहयोगी एक-दूसरे के खिलाफ
प्रचार की धार कमजोर
जमीन पर संगठन का कमज़ोर होना
गठबंधन में खामियां भी कम नहीं थीं
बिहार में महागठबंधन की कहानी शुरू से ही उलझी रही। तेजस्वी को चेहरा घोषित करने में देर हुई, बीच में तकरार की अफवाह फैल गई। कांग्रेस और आरजेडी के बीच खिंचाव की खबरें पहले ही माहौल बिगाड़ चुकी थीं। टिकट बंटवारा आखिरी समय तक अटका रहा। उम्मीदवार मैदान में उतार दिए गए थे, पर यह साफ ही नहीं था कि कौन किस सीट पर लड़ेगा। इससे प्रचार कमजोर हुआ और मतदाता भ्रमित हो गए। गठबंधन की सबसे बड़ी चूक तब दिखी जब नौ सीटों पर सहयोगी दल एक-दूसरे के सामने लड़ गए। कई जगह वोट बंटे, और इन बिखरे हुए वोटों के कारण जीत भाजपा और जेडीयू की झोली में चली गई। कुछ सीटों पर तो यह अंतर बेहद कम था। जैसे बछवाड़ा में कांग्रेस और सीपीआई को मिले वोट जोड़ दिए जाएं तो वे भाजपा से आगे निकल जाते। पर दोनों अलग-अलग लड़े, और नतीजा साफ दिखा।
