“कन्वर्जन भी एक तरह की हिंसा ही है”: 'कार्यकर्ता विकास वर्ग’ द्वितीय के समापन पर सरसंघचालक ने कहा -

नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन राव भागवत ने गुरुवार को कहा कि कन्वर्जन भी एक तरह की हिंसा ही है। खासतौर से अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों में जिस तरह से ये गतिविधियां हो रही हैं वो पूरे समाज के लिए खतरनाक हैं।
नागपुर में स्वयंसेवकों के प्रशिक्षण कार्यक्रम 'कार्यकर्ता विकास वर्ग’ द्वितीय के समापन अवसर पर डॉ. भागवत ने पहलगाम में आतंकवादी हमले के बाद भारत की ओर से की गई कार्रवाई का उल्लेख करते हुए कहा कि देश की राजनीतिक बिरादरी ने जो आपसी समझ दिखाई, वह बनी रहनी चाहिए और इसे स्थायी रूप ले लेना चाहिए।
उन्होंने कहा कि इस नृशंस हमले से देश में दुख और गुस्सा था। हमने दोषियों को सजा दी। सेना ने एक बार फिर पराक्रम दिखाया। समाज ने एकता का संदेश दिया। अब भारत को अपने सुरक्षा मामलों में आत्मनिर्भर बनना होगा। पाकिस्तान का नाम लिए बिना उन्होंने कहा, जो देश भारत से सीधे युद्ध में नहीं जीत सकते, वे 'हजार जन्मों की नीति’ के तहत परोक्ष युद्ध छेड़कर भारत को कमजोर करने की कोशिश करते हैं।
पेसा अधिनियम ढंग से लागू नहीं किया
समारोह में छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ आदिवासी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम मुख्य अतिथि थे। उन्होंने कहा कि अब तक किसी भी राज्य सरकार ने धर्मांतरण के मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया है। मुझे लगता है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ही एकमात्र संस्था है जो इस दिशा में मदद कर सकती है।
नक्सलवाद खत्म होने के बाद केंद्र सरकार को एक ठोस कार्य योजना बनानी चाहिए, ताकि यह फिर से सिर न उठा सके। नेताम ने आरोप लगाया कि 1996 का पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम (पेसा) आज तक किसी भी सरकार ने सही ढंग से लागू नहीं किया है। इस अधिनियम का मकसद अनुसूचित जनजातीय इलाकों में ग्राम सभाओं को अधिकार देना है, ताकि वे अपने संसाधनों का प्रबंधन कर सकें और समुदाय से जुड़े फैसले खुद ले सकें।
