अरावली विवाद: मंत्री भूपेंद्र सिंह ने बताया सरकार का प्लान, बोले-100 मीटर ऊंचाई पर खनन की अफ़वाहें खोखली

अरावली विवाद: मंत्री भूपेंद्र सिंह ने बताया सरकार का प्लान, बोले-100 मीटर ऊंचाई पर खनन की अफ़वाहें खोखली
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जैसे ही अरावली की पहाड़ियाँ सोशल मीडिया पर सुर्खियों में आईं और खबरें उड़ीं कि 100 मीटर ऊँचाई पर खनन को मंज़ूरी दी जा रही है, लोगों के मन में सवाल और चिंता दोनों ने जन्म ले लिया। कुछ ने सोचा कि सरकार यहाँ के पहाड़ों को काटने की तैयारी कर रही है, तो कुछ की नजरें पर्यावरण के कमजोर होने पर टिकी रहीं।लेकिन केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने इन सभी अटकलों को एकदम सीधे शब्दों में खारिज कर दिया है। उन्होंने बताया है कि सरकार का मुख्य लक्ष्य क्या है और असल में कानून और नियम किस दिशा में काम कर रहे हैं।

“अरावली सिर्फ पहाड़ नहीं, हमारी ज़िन्दगी है”

अरावली की पहाड़ियों को लेकर मंत्री भूपेंद्र यादव का कहना है कि इसे बचाना केवल पहाड़ों के बचाव का मामला नहीं है। यह हमारे पानी, हवा, खेती और प्राकृतिक संतुलन से जुड़ा है। इसी वजह से सरकार, विशेषज्ञों और सुप्रीम कोर्ट सभी इस दिशा में सक्रिय हैं।

भूपेंद्र यादव ने साफ कहा, “हम अवैध खनन को पूरी तरह रोकना चाहते हैं। जब तक विशेषज्ञ वैज्ञानिक समीक्षा पूरी नहीं हो जाती, किसी भी नई खुदाई की अनुमति नहीं दी जाएगी।”

सुप्रीम कोर्ट ने ढील नहीं, दिशा निर्देश दिए हैं

भूपेंद्र यादव ने यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने किसी प्रकार की ढील नहीं दी है। बल्कि, कोर्ट ने स्पष्ट रूप से दो महत्वपूर्ण दिशा निर्देश दिए हैं:पहला, सरकार के ‘ग्रीन अरावली प्रोजेक्ट’ को आगे बढ़ाने की मंज़ूरी।दूसरा, वैज्ञानिक संस्थान ICFRE को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वे अरावली का विस्तृत नक्शा और वैज्ञानिक सुरक्षा प्लान तैयार करें।जब तक यह रिपोर्ट तैयार नहीं होती, नई खुदाई को अनुमति नहीं दी जाएगी यह व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट मंशा है।

100 मीटर पर खनन? ये अफ़वाहें हैं गलत

सबसे ज़्यादा फैलने वाली खबर यही थी कि अब 100 मीटर ऊँची पहाड़ियों पर खनन की अनुमति दे दी गयी है। इस पर भूपेंद्र यादव ने सीधी बात कही: यह पूरी तरह गलत है।उनके मुताबिक इस तरह कोई अलग अनुमति नहीं दी गई और न ही सरकार का कोई ऐसा इरादा है।असल नियम यह है कि अगर कोई पहाड़ी 200 मीटर से ऊपर है, तो उसके आसपास के 500 मीटर के क्षेत्र को भी अरावली का हिस्सा माना जाता है, और ऐसी जगहों पर खनन नहीं होगा।संयोग से, अरावली की ज़मीन का लगभग 90% हिस्सा खेती और बस्तियों से जुड़ा हुआ है — और उसे अब खनन से पूरी तरह बाहर रखा गया है।

सरकार का असली प्लान

भूपेंद्र यादव ने दोहराया कि सरकार का ध्यान खनन की सीमा खोजने से ज़्यादा यह सुनिश्चित करने पर है कि अरावली की प्रकृति, पानी और पारिस्थितिकी को संरक्षित रखा जाए।उन्होंने कहा कि अफ़वाहों की वजह से लोगों के मन में डर पनप जाता है, लेकिन अगर वह वैज्ञानिक तथ्यों और योजनाओं को समझें, तो उन्हें स्पष्टता मिल जाएगी।

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