मीडिया की दुकान में चीनी सामान की बिक्री…! न्यूजक्लिक के बहाने फिर बेनकाब हुआ भारत विरोधी मीडिया

नईदिल्ली। न्यूज क्लिक के 30 से अधिक स्थानों पर दिल्ली पुलिस की छापेमारी ओर कुछ पत्रकारों की गिरफ्तारी महज एक संयोग भर नही है। बल्कि भारत के विरुद्ध सुगठित प्रयोग की बानगी भर है।भारत विरोधी वैश्विक ताकतों,मीडिया और एनजीओज के इस गिरोह को सतर्कतापूर्वक समझने की आवश्यकता है।क्योंकि मामला अभिव्यक्ति और प्रेस की स्वतंत्रता से जोड़ा जाएगा जबकि इन पत्रकारों का काम केवल सरकार की आलोचना तक सीमित नही हैं बल्कि सरकार और मोदी की आलोचना की आड़ में भारत विरोधी वैश्विक शक्तियों के इशारों पर चीन जैसे देशों के एजेंट बनकर काम करने का भी है।
न्यूज़क्लिक के साथ इस मामले को विस्तृत फलक पर देखने की आवश्यकता है क्योंकि भारत में जिसे मुख्यधारा की मीडिया कहा जाता है टाइम्स ऑफ इंडिया, इंडियन एक्सप्रेस, द हिन्दू, जनसत्ता, टेलीग्राफ, एनडीटीवी जैसे मीडिया घरानों ने भी पिछले कुछ समय मे चीन के यशगान में कोई कोर कसर नही छोड़ी है। न्यूज क्लिक के जिन पत्रकार को आज हिरासत में लिया गया है उनके ऊपर मनी लॉन्ड्रिंग के गंभीर आरोप है। चीनी एजेंडे पर नाचने वाले इन पत्रकारों के अलावा उपर उल्लेखित मीडिया घरानों के चीनी कनेक्शन की भी जांच की जाना चाहिए क्योंकि टाइम्स, एचटी ओर एक्सप्रेस समूह ने चार चार पेज चीन के वैभव को प्रदर्शित करते हुए पिछले दिनों प्रकाशित किये थे। सवाल यह कि ये मीडिया घराने भारत के दुश्मन देश चीन की नीतियों और वहां की उपलब्धियों को किस कीमत पर भारत में प्रचारित कर रहे है? इन अंग्रेजी घरानों को कितनी रकम चीन से न्यूज क्लिक की तरह तो नही मिली है?
स्वदेश ने पहले किया एक्सपोज
स्वदेश ने अपने 13 अगस्त के रविवारीय अंक में न्यज क्लिक के चीनी राग ओर रिश्तों को सिलसिलेवार पाठकों के सामने रखा था।आज दिल्ली पुलिस की अभिसार शर्मा,उर्मिलेश समेत न्यूज क्लिक के मालिक पर हुई कारवाई न केवल विधि सम्मत है बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से भी आवश्यक थी।सरकार को तीस्ता सीतलवाड़ के मामले को भी नए सिरे से खोलने की आवश्यकता है क्योंकि न्यूज़क्लिक को मिली चीनी फंडिंग का बड़ा हिस्सा तीस्ता को भी मिला है और तीस्ता के एनजीओ के कारनामे इस देश की सुप्रीम कोर्ट तक मे राष्ट्र विरोधी ओर मनगढ़ंत साबित हो चुके हैं।
भारत विरोधी प्रोपेगैंडा -
वस्तुतः 2014 के बाद प्रोपेगैंडा न्यूज पोर्टल्स जिनमें न्यूज क्लिक के अलावा जनज्वार, क्विंट, वायर, जनचोक, तहलका, सत्य हिंदी आदि ने एक सूत्रीय एजेंडा मोदी सरकार की प्रायोजित खिलाफत अपने हाथ मे ले रखी है। इसके लिए चीन समेत दूसरे भारत विरोधी देश तमाम पत्रकार को फंडिंग कर रहे है। यह फंडिंग न्यूज़क्लिक जैसे माध्यम के अलावा एनजीओज के रास्ते भी आ रही है जिसमें जॉर्ज सोरोस जैसे भारत विरोधी चेहरे खुलेआम भारत के विरुद्ध अभियान का खम्ब ठोक रहे है।
सवाल यह है कि आखिर सत्ता के विरोध में पत्रकारिता का यह कौन सा संस्करण देश में प्रस्तुत किया जा रहा है जो मीडिया को चीन और भारत के दुश्मनों की कठपुतली बना रहा है? ताज्जुब यह कि देश विरोधी इस कबीलेबन्दी के पक्ष में एडिटर गिल्ड से लेकर उन पार्टियों के नेता भी साथ खड़े हैं जिन्होंने दशकों तक इस देश के शासन को चलाया है या केंद्रीय सत्ता में भागीदार रहे हैं।आज राहुल गांधी मोहब्बत की दुकान सजाने की बात करते है लेकिन इस दुकान में चीनी सामान की बिक्री की वह जिस बेशर्मी से वकालत कर रहे है वह कांग्रेस के वैचारिक अधोपतन को ही प्रमाणित करता है।
