स्वदेश विशेष: सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भारत का समवेत स्वर है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैश्विक स्तर पर ऑपरेशन सिंदूर का संदेश देने के लिए सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल गठित करके न केवल विश्व को अपितु देश के अंदर भी भारत की एकात्मता का संदेश देकर अभिनंदनीय निर्णय लिया है। ऐसी ही पहल वर्ष 1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी. व्ही. नरसिम्हा राव ने की थी। इतिहास साक्षी है विपक्ष के तत्कालीन नेता अटल बिहारी वाजपेयी की गूंज से संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान अलग-थलग पड़ा और उसका प्रस्ताव गिरा। आज यही पहल, श्री मोदी ने की है और सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल को एक राष्ट्रीय दायित्व देकर भारत का पक्ष रखने का अवसर दिया है।
वर्ष 1994 और 2025 में तीन दशक का अंतर है। भू राजनीतिक परिस्थिति बदली हैं, विश्व के शक्ति केंद्र बदले हैं और समीकरण भी। चुनौती पहले से भी अधिक है। आज से तीन दशक पहले, भारत की वैश्विक उपस्थिति आज की तरह प्रभावशाली नहीं थी। आज है।
तब अमेरिका के साथ साथ सोवियत रूस का भी दबदबा बना हुआ था। यूरोपीय संघ, उस समय बड़ी ताकत नहीं था। चीन, ताकतवर बनने का प्रयास कर रहा था। आज है। इसी तरह, भारत भी एक महाशक्ति बनने की दिशा में है। कोई भी अंतर्राष्ट्रीय शक्ति, भारत के प्रभुत्व को नजरअंदाज करने की स्थिति में भी नहीं है, पर निहित स्वार्थ उसे स्वीकार करने से भी रोक रहे हैं। अमेरिका राष्ट्रपति ट्रंप, विश्व के अब तक के सर्वाधिक अस्थिर नेता के रूप में इतिहास में अपना नाम लिखाने के लिए उतावले हैं। रशिया यूक्रेन, इजराइल फिलिस्तीन, खाड़ी संकट, और तेज़ी से बदलते आर्थिक चक्र ने विश्व के सामने नई चुनौतियां पेश की हैं। ऐसे, संकट और विषम काल में भारत ही है जिसे विश्व को दिशा देनी है, यह तय है। पर भारत के सामने पड़ोसी का आतंक,चीन की साम्राज्यवादी नीति जहां वैश्विक स्तर पर एक बड़ी चुनौती है, वहीं भारत के अंदर भी नापाक मानसिकता और हर किसी मुद्दे पर नेतृत्व को अपमानित और अविश्वास की घातक परंपरा आंतरिक चुनौती है।
भारत सरकार ने, प्रधानमंत्री ने ऐसे समय सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल बना कर अच्छा संदेश दिया है और विपक्ष ने भी सहभागिता दिखा कर अपने कर्तव्य का पालन किया है।
शुभकामनाएं प्रतिनिधिमंडल को और अपेक्षा देश के कथित बुद्धिजीवियों से कि वह इनमें भारत की आत्मा देखें। उनका न दल देखें, न उनका धर्म, न उनकी जाति न ही उनका प्रांत। वह समवेत भारत का स्वर हैं और यही भारत की ताकत है।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पत्रकार वार्ता में भी भारत का ही तत्व परिलक्षित हो रहा था, पर दुर्भाग्यवश देश की कुत्सित राजनीति ने उस भाव के विपरीत ही कार्य किया।
अब इस समय फिर एक अवसर है, भारत बोध का। अच्छा हो, देश का राजनीतिक नेतृत्व, समाज वैज्ञानिक भारत के अंदर भी एक सामूहिक शिष्ट मण्डल गठित कर युद्ध काल में भी देश के ख़िलाफ़ विष उगलने वाली ताकतों के खिलाफ एक वातावरण बनाये और नकारात्मक शक्तियों को मजबूत करे।
ध्यान रहे हम युद्ध में ही हैं और युद्ध सिर्फ़ सीमा पर नहीं है। भारतीय सेना ने फिर आश्वस्त किया है, उसे नमन।
हम सब अपने दायित्व को भी समझें।
यह आग्रह।
