AI कंटेंट पर अब लगेगा ‘लेबल’ सच और झूठ की पहचान आसान होगी

भारत सरकार ने उठाया बड़ा कदम हर AI कंटेंट पर लगेगा लेबल
नई दिल्ली की सर्द हवाओं में इस बार एक और ‘गरम खबर’ चल रही है भारत सरकार ने आखिरकार AI और Deepfake कंटेंट पर बड़ी कार्रवाई का ऐलान कर दिया है। अब इंटरनेट पर जो भी सामग्री आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से बनाई जाएगी, उस पर एक स्पष्ट ‘लेबल’ या पहचान चिन्ह लगाना अनिवार्य होगा।
सरकार के मुताबिक, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे Facebook, Instagram, X (Twitter), YouTube और बाकी डिजिटल स्पेस को यह सुनिश्चित करना होगा कि जो भी वीडियो, फोटो या टेक्स्ट AI द्वारा बनाया गया है वह साफ़ तौर पर जनता को बताया जाए।
डीपफेक का खतरा क्यों बढ़ा?
पिछले कुछ महीनों में भारत में डीपफेक वीडियो की बाढ़ सी आ गई है। कई सेलेब्रिटीज़ और नेताओं के चेहरे मॉर्फ करके सोशल मीडिया पर वायरल किए जा रहे हैं। कुछ वीडियो इतने असली लगते हैं कि आम इंसान के लिए सच और झूठ के बीच फर्क करना लगभग नामुमकिन हो गया है।
हाल ही में सोशल मीडिया पर कई फर्जी वीडियो फैलाए गए थे, जहाँ लोगों की आवाज़ और चेहरों को AI से बदल दिया गया था। इन वीडियो ने समाज में गलतफहमी, नफरत और भ्रम पैदा किया। इसी तरह की घटनाओं ने सरकार को मजबूर किया कि वह IT नियमों में संशोधन करे और इस डिजिटल खतरे पर लगाम लगाए।
सरकार की नई गाइडलाइन क्या कहती है?
सरकार द्वारा प्रस्तावित संशोधन के मुताबिक, हर AI-generated कंटेंट को लेबल करना अनिवार्य होगा जैसे “AI द्वारा निर्मित”, “Synthetic Media”, या “Deepfake” लिखा जाएगा।
यह नियम न सिर्फ वीडियो या फोटो पर, बल्कि AI चैटबॉट्स, लेखों, और डिजिटल विज्ञापनों पर भी लागू होगा। मंत्रालय का कहना है कि लोगों को यह जानने का अधिकार है कि जो कंटेंट वे देख रहे हैं वह इंसान ने बनाया है या मशीन ने।
10 नवंबर तक इस प्रस्ताव पर सार्वजनिक सुझाव मांगे गए हैं। सरकार का उद्देश्य स्पष्ट है टेक्नोलॉजी की ताकत जनता की मदद करे, न कि उन्हें भ्रमित करे।
एक कदम पारदर्शिता की ओर
यह फैसला सिर्फ एक तकनीकी बदलाव नहीं है, बल्कि डिजिटल ईमानदारी की दिशा में उठाया गया एक ऐतिहासिक कदम है। जब सच्चाई और फेक न्यूज़ के बीच की दीवार गिरने लगी थी, तब यह लेबल एक “डिजिटल दीया” बन सकता है जो अंधेरे में भी सच्चाई की रोशनी दिखाएगा।
क्योंकि इस दौर में, जहाँ हर तस्वीर बोलती है और हर वीडियो झूठ भी हो सकता है, वहाँ “सच” की पहचान सिर्फ कानून नहीं जिम्मेदारी बन चुकी है।
