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चैत्र मास की गुड़ी पड़वा में इस पेड़ का है बड़ा महत्व

चैत्र मास की गुड़ी पड़वा में इस पेड़ का है बड़ा महत्व
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ग्वालियर/स्वदेश वेब डेस्क। हिन्दू नववर्ष और चैत्र माह की शुरुआत (6 अप्रैल) यानी आज से होने जा रही है। चैत्र माह का हिन्दू कैलेण्डर में विशेष महत्व है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा जाता है। इस दिन हिन्दु नववर्ष का आरम्भ होता है। 'गुड़ी' का अर्थ 'विजय पताका' होता है। गर्मियों के आगमन की खनक शुरू हो जाती है। मौसम के इस बदलाव के दौर में स्वास्थ्य पर ध्यान देना जरूरी होता है।

हम आपको बता दें कि 6 अप्रैल 2019 दिन चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि यानी की शनिवार से गुड़ी पड़वा हिन्दू नववर्ष का आरंभ होगा, आयुर्वेद के अनुसार गर्मियों के आगमन के साथ ही मौसम के इस बदलाव के दौर में स्वास्थ्य पर ध्यान देना जरूर देने चाहिए । इसलिए हमारे ऋषियों ने चैत्र मास के 30 दिनों तक कड़वे स्वाद वाली नीम के कम से कम 5 पत्ते एवं अधिक से अधिक 108 पत्तियां खाने को कहा है कि जो भी चैत्र मास में नीम की पत्तियों का सेवन करेगा पूरे साल भर सैकड़ों बीमारियों से दूर रहेगा । जाने नीम के फायदे ।

चैत्र मास यानी मार्च-अप्रैल के माह में लगातार 30 दिनों तक नीम की पत्तियों का सेवन से अनेक बीमारियों का खात्मा हो जाता है और उत्तम स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है-

– चैत्र मास में नीम की पत्तियों का सेवन करने से त्वाचा के कई सुक्ष्म रोग स्वतः ही नष्ट हो जाते है ।

– चैत्र मास में सुबह-सुबह नीम की पत्ती चबाने से इम्यून सिस्टम मजबूत बनता है ।

– चैत्र मास में सुबह उठकर नीम की पत्ती चबाने से कैंसर और हॉर्ट अटैक का खतरा भी कम होता है ।

– चैत्र मास में नीम की पत्तियां खाने से साल भर पाचन क्रिया मजबूत रहती है ।

– चैत्र मास में नीम के डंठल से दातुन करने से दातों में मौजूद कीटाणु खत्म हो जाते हैं ।

– चैत्र मास में नीम की पत्तियों को उबालकर, पूरी तरह से ठंडाकर इससे दिन में तीन बार आंखें धोने से आंखों की रोशनी अच्छी होने लगती है ।

– चैत्र मास में बदलते मौसम में होने वाले गले में दर्द का भी नीम की पत्तियों का सेवन से दूर हो जाता है ।

– अगर चैत्र मास में डायबिटीज के मरीज नीम की पत्तियों का सेवन करते है तो फायदा होता है ।

– नीम के पत्ते और मकोय के फलों का रस समान मात्रा में लेकर पलकों पर लगाने से आंखों का लालपन दूर हो जाता है ।

– पानी में थोड़ी सी नीम की पत्तियां डालकर नहाने से भी घमौरियां दूर हो जाती है ।

– बवासीर जैसे कष्टकारी रोग के इलाज के लिए नीम तथा कनेर के पत्ते की समान मात्रा लेकर प्रभावित अंग में लेप लगाने से एक हप्ते में कष्ट कम होता जाता है । नीम के पत्तों तथा मूंग दाल को हल्के से तेल के साथ तलकर बवासीर के रोगी को खिलाने ठीक हो जाता है ।

– मलेरिया में नीम के तने की अन्दर की छाल को कूटकर कांसे के बर्तन में पानी के उबालने के बाद ठंडा होने पर इस पानी को दिन में तीन बार मलेरियाग्रस्त रोगी को दिया जाए तो मलेरिया दूर हो जाता है ।

देश के अनेक ग्रामीण हिस्सों में नीम वृक्ष की महत्व को लेकर कई जानकारियां सुनने को मिलती है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने तो इसे बाकायदा इक्कीसवीं शताब्दी का वृक्ष घोषित किया है। चैत्र माह में नीम के खास उपयोग और इसके औषधीय गुणों की जानकारी पेश है। सालभर निरोगी रहने व रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए नीम के ताजी कोमल पत्तियों के रस का सेवन प्रतिदिन पूरे चैत्र मास में करते हैं। गुजरात प्रांत में लगभग हर कस्बे और गांव में लोग नीम की पत्तियों का रस चैत्र माह में रोज सुबह पीते हैं। इनकी मान्यतानुसार नीम का रस सालभर के लिए शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करता है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि नीम की पत्तियों को जोर-जोर से कुछ देर के लिए हथेली पर रगड़ लिया जाए और साफ पानी से हथेली धो लिया जाए तो हथेली से सूक्ष्मजीवों का नाश हो जाता है यानि नीम एक हैंडवाश की तरह भी काम करता है। नीम का वानस्पतिक नाम 'अजाडिरक्टा इंडिका' है। नीम में मार्गोसीन, निम्बिडिन, निम्बोस्टेरोल, निम्बिनिन, स्टियरिक एसिड, ओलिव एसिड, पामिटिक एसिड, एल्केलाइड, ग्लूकोसाइड और वसा अम्ल आदि पाए जाते हैं।

आदिवासियों के अनुसार नीम के पत्ते और मकोय के फलों का रस समान मात्रा में लेकर पलकों पर लगाने से आंखों का लालपन दूर हो जाता है। नीम की निबौलियों को पीसकर तैयार किए गए रस से जुएं मर जाते हैं। घमौरियों से छुटकारा पाने के लिए नीम की छाल को घिसकर लेप तैयार कर लिया जाए और उन हिस्सों पर लगाया जाए जहां घमौरियां और फुंसियां हो, आराम मिल जाता है। पानी में थोड़ी सी नीम की पत्तियां डालकर नहाने से भी घमौरियां दूर हो जाती है।

गले की सूजन दूर करने के लिए पातालकोट के आदिवासी नीम की पत्तियां (5 ग्राम, 4 काली मिर्च, 2 लौंग और चुटकीभर नमक) को मिलाकर काढ़ा बना लेते है और रोगी को दिन में तीन बार सेवन की सलाह देते हैं। डाँग. गुजरात के आदिवासियों के अनुसार नीम के गुलाबी कोमल पत्तों को चबाकर रस चूसने से मधुमेह रोग मे आराम मिलता है। डाँग में आदिवासी लगभग 200 ग्राम नीम की पत्तियों को दो लीटर पानी में उबालते हैं और जब पानी का रंग हरा हो जाता तब उस पानी को बोतल में छान कर रख लेते है। नहाते वक्त बाल्टी में 75 से 100 मिलीलीटर इस पानी को डाल दिया जाता है। इन जानकारों के अनुसार नहाने का पानी संक्रमण, मुंहासे और शरीर से पुराने दाग-धब्बों से छुटकारा दिलाता है।

कुछ दो बरस पहले न्यूजीलैंड के माओरी आदिवासियों से चर्चा में मुझे जानने मिला कि ये आदिवासी नीम की पत्तियों के रस में दालचीनी का चूर्ण मिलाकर मधुमेह के रोगियों को देते हैं और उसके परिणाम भी काफी चौंकाने वाले हैं हालांकि इसके कोई भी क्लीनिकल और वैज्ञानिक प्रमाण अब तक मुझे देखने नहीं मिले।

बुंदेलखंड में आदिवासी हर्बल जानकार बवासीर जैसे कष्टकारी रोग के इलाज के लिए नीम तथा कनेर के पत्ते की समान मात्रा लेकर प्रभावित अंग में लेप की सलाह देते हैं। इनका मानना है कि ये लेप एक हप्ते तक लगाने से कष्ट कम होता जाता है। झारखंड में जड़ी-बूटी जानकार नीम के पत्तों तथा मूंग दाल को मिलाकर पीसने की सलाह देते है और इसे हल्के से तेल के साथ तलकर बवासीर के रोगी को खिलाया जाता है। जिससे अतिशीघ्र आराम मिलने लगता है। रोज सुबह निबौलियों के सेवन से आराम मिलता है। प्रभावित अंग पर नीम का तेल भी लगाया जा सकता है। मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के कोरकु आदिवासी मलेरिया में नीम के तने की अन्दर की छाल को कूटकर कांसे के बर्तन में पानी के साथ खौलाते हैं और फिर इसे छान लेते हैं। इस पानी को दिन में तीन बार मलेरियाग्रस्त रोगी को दिया जाए तो मलेरिया दूर हो जाता है।

Updated : 6 April 2019 6:07 AM GMT
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Swadesh Digital

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