विशेष साक्षात्कार: ‘मैं सत्ता की नहीं, दायित्व की राजनीति करता हूं, सिर्फ एक कार्यकर्ता हूं, पद के पीछे नहीं भागता’ - केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी

वे सडक़ों के शिल्पकार हैं, लेकिन उनका रास्ता केवल डामर और कंक्रीट से नहीं बना - वो रास्ता दृष्टि, दायित्व और धरती से जुड़ी संवेदनाओं से होकर गुजरता है। नितिन गडकरी, जिन्हें भारत में ढांचागत विकास का चेहरा कहा जाता है, उनके काम की गूंज केवल पुलों, सुरंगों और एक्सप्रेसवे तक सीमित नहीं है; वह किसानों, श्रमिकों, युवाओं और कार्यकर्ताओं के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने तक जाती है।
पार्टी में एक समर्पित और निष्ठावान कार्यकर्ता की तरह काम करना उनकी तासीर है। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष रह चुके गडकरी भाजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से लेकर अपनी अन्य भूमिकाओं के बारे में पूरी दृढ़ता, स्पष्टता और विनम्रता से कहते हैं - ‘मैं सिर्फ एक कार्यकर्ता हूं। जो संगठन कहेगा, करूंगा। पद नहीं, दायित्व जरूरी है।
स्वदेश के समूह संपादक अतुल तारे और दिल्ली ब्यूरो की वरिष्ठ विशेष प्रतिनिधि (राजनीतिक) अनिता चौधरी के साथ गडकरी जी ने अपने दिल्ली स्थित आवास पर विशेष बातचीत की। इस अवसर पर दिल्ली ब्यूरो के वरिष्ठ सहयोगी डॉ. राकेश शर्मा भी उपस्थित थे।
गडकरी जी ने अपनी सोच, जिम्मेदारियों और राजनीति के बदलते स्वरूप पर जिस स्पष्टता से बात की, वह दुर्लभ है। उनका कहना है, ‘काम से संतुष्ट हो जाना, रुक जाने जैसा है। मैं जब तक हूं, चलता रहूंगा।’ यह कथन केवल एक मंत्री का नहीं, बल्कि उस व्यक्ति का है जो सत्ता से ज्यादा सेवा और नीति से ज्यादा नीयत पर विश्वास करता है।
अपने बयानों पर चर्चा हो या गिरते राजनीतिक मूल्य, मीडिया की भूमिका पर टिप्पणी हो या लोकतंत्र की गुणवत्ता की बात, गडकरी टालते नहीं, टकराते भी नहीं, बल्कि ठोस और संतुलित बात रखते हैं। सडक़ों पर खर्च हुए हर एक रुपए से 3.21 रुपए का जीडीपी में इजाफा, ई-रिक्शा योजना से डेढ़ करोड़ लोगों को सम्मानजनक आजीविका और लॉजिस्टिक्स लागत में ऐतिहासिक गिरावट हर जगह उनका काम आंकड़ों में भी बोलता है और ज़मीन पर भी। यहां प्रस्तुत है गडकरी जी से हुई लंबी बातचीत के प्रमुख अंश...
सवाल: मूल्य आधारित राजनीति के लिए देश में क्या प्रयास होने चाहिए?
जवाब: यह अच्छा सवाल है। न सिर्फ भारतीय राजनीति बल्कि संपूर्ण विश्व की राजनीति में गिरते मूल्यों को बचाने की आवश्यकता है। यह सामूहिक जिम्मेवारी का विषय है। मीडिया भी इससे अछूता नहीं है। उसे भी टीआरपी का चक्कर छोडक़र मिशन के रूप में ही काम करना होगा। सबसे जरूरी यह है कि राजनीति में अधिक से अधिक नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए। इसके लिए उनको प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
इसमें राजनीतिक दलों और राजनेताओं की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो जाती है। वह अपने आचरण और कार्य प्रणाली को ऐसा बनाएं कि लोग उनसे प्रेरणा लेकर न सिर्फ राजनीति में आने के लिए प्रोत्साहित हो बल्कि उनके जैसा बनने के लिए प्रयास करें, वहीं परिवार नाम की संस्था के माध्यम से नागरिकों में नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने के साथ राजनीतिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए।
सवाल: आप संगठन शिल्पी माने जाते है। ऐसे में संगठन को मजबूत करने के लिए आप क्या करना चाहेंगे?
जवाब: संगठन कमजोर हुआ है। ऐसा तो कहीं लगता नहीं उल्टा आज हम संगठनात्मक दृष्टि से विश्व की तीसरी बड़ी पार्टी हैं। विश्व में भारतीय जनता पार्टी को मान्यता है। यही हमारी उपलब्धि है। जहां तक संगठन को मजबूत करने की बात है तो वह अभी भी मजबूत ही है। और अधिक मजबूती के लिए कार्यकर्ताओं से संवाद की प्रक्रिया को गति देनी चाहिए। उनकी मनोस्थिति को समझ कर उनके साथ संवेदनशीलता से व्यवहार करना चाहिए। यह कहना ही नहीं, बल्कि मानना भी होगा की कार्यकर्ता की बदौलत ही आप हैं।
सवाल: आप अपने आप को संगठन के लिए उपयुक्त मानते हैं या पार्टी के लिए?
जवाब: ऐसा कुछ नहीं है। मैं एक कार्यकर्ता हूँ। हजारों लोगों ने संगठन के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर किया मैं तो बहुत छोटा सा कार्यकर्ता हूँ। संगठन जो आदेश करता है वहीं कार्य करता हूं। मेरे लिए पद कभी महत्व का नहीं रहा। मैं पहले भी एक कार्यकता था, आज भी हूँ। हमारे यहां पद नहीं होते, दायित्व होते हैं। जो काम मिलेगा करेंगे।
सवाल: विदेश नीति को लेकर अक्सर अगंभीर, अपरिपक्व रहने का आरोप लगता रहा है। आपकी राय।
जवाब: यह आरोप ही अगंभीर एवं अपरिपक्व है। सच तो यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेश नीति के जरिए अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराई है। इन 11 वर्षों में उन्होंने भारतीय विदेश नीति को ऐसा रूप दिया, जिसके बारे में पहले शायद ही किसी ने कल्पना की हो। नेतृत्वहीनता के दौर में गुजर रही दुनिया में मोदी के नेतृत्व ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अलग छाप छोड़ी है।
सवाल: क्या भाजपा संगठन पर सत्ता का अंकुश बढ़ रहा है?
जवाब: यह कहना पूरी तरह ठीक नहीं होगा कि भाजपा संगठन सत्ता के अंकुश में है। इसे सत्ता की विसंगति जरूर कह सकते हैं जो कहीं भी किसी में भी आ सकती है और यह स्वाभाविक भी है। बावजूद इसके भाजपा का संगठन प्रभावशाली बना हुआ है। मंडल से लेकर जिला और जिला से लेकर राज्य और राज्य से लेकर केंद्र तक निर्णय संगठन की सहमति से ही हो रहे हैं।
सवाल: केंद्र से लेकर कई राज्यों के संगठन चुनाव में देरी हो रही है क्या वजह है?
जवाब: यह सवाल आप गलत व्यक्ति से कर रहे हैं। बेहतर होता कि यह प्रश्न आप हमारे संगठन नेतृत्व से करते। अभी यह मेरा विषय नहीं है। मुझे जो जिम्मेदारी अभी दी गई है। मैं उसे निभाने की कोशिश कर रहा हूं। संगठन स्तर पर इसको लेकर चिंता हो रही होगी, ऐसा मेरा मानना है।
सवाल: भाजपा में आयातित नेता काफी हो गए हैं। संस्कृति बदल रही है। क्या पथ्य परहेज होना चाहिए?
जवाब: पहली बात तो यह की जो भाजपा में आ रहे हैं। उनके लिए आयातित शब्द का इस्तेमाल करना ठीक नहीं है। वह भाजपा के विचार से प्रभावित होकर पार्टी में आ रहे हैं। हमें भी बड़ा मन कर उनका स्वागत करना चाहिए। जहां तक संस्कृति बदलने का सवाल है तो जब परिवार बढ़ता है तो इस तरह की समस्या सामने आती ही है। यह अधिक चिंता का विषय नहीं है।
सवाल: नितिन जी को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के लिए कहा जाए तो उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी?
जवाब: मैं पहले ही आपसे कह चुका हूं मैं सिर्फ एक कार्यकर्ता हूं और जो संगठन कहता है, वही मैं करता हूं। वैसे मैं आपको अभी बता ही चुका हूं कि मैं राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुका हूं। 52 साल की उम्र में सबसे कम आयु का मैं भाजपा अध्यक्ष बना था। 2010 से 2013 तक।
सवाल: आपके बयानों को लेकर अक्सर सवाल खड़े होते रहते हैं,ऐसा क्यों?
जवाब : मैं यह तो नहीं कहूंगा कि मेरे बयानों को तोड़ मरोडक़र प्रस्तुत किया जाता है। इतना जरूर है कि मेरे बयान सच के काफी करीब होकर चुभने वाले होते हैं। इसलिए आसानी से हजम नहीं होते। आप भी अगर मेरे बयानो को देखेंगे तो समझ आएगा कि इसमें गलत कुछ भी नहीं है। बेबाक बोलना मेरे स्वभाव में है।
सवाल: मोदी सरकार के 11 साल के कार्यकाल में सडक़ परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को उपलब्धि के दृष्टिकोण से आप कैसे देखते हैं?
जवाब: देखिए अगर हम अपने काम से संतुष्ट हो जाएंगे तो काम होना ही बंद हो जाएगा। काम से कभी संतुष्ट नहीं होना चाहिए। काम करते रहना चाहिए। हमारा देश और समृद्ध, संपन्न बने। देश का ढांचागत आधार और मजबूत हो। इसके लिए हमें अनेक सालों तक काम करने की जरूरत है। मैं जब तक हूँ तब तक पूरी ताकत से काम करता रहूंगा। मेरे बाद कोई और आएगा वह काम करेगा। यह एक नियमित प्रक्रिया है।
सवाल: केंद्रीय मंत्री बनने से पहले राष्ट्रीय राजमार्ग परिवहन मंत्रालय के कामकाज को लेकर क्या दृष्टि थी?
जवाब: मैं यहां आने से पहले महाराष्ट्र में मंत्री था। तब मुंबई पुणे हाईवे बनाने सहित अन्य विकास कार्य करने का मौका मिला। सडक़ और राजमार्ग मेरे रुचि के विषय थे ही। एक दिन प्रधानमंत्री अटल जी ने मुझे बुलाया और गांव की सडक़ से जोडऩे के लिए योजना बनाने को कहा था। मैंने प्रधानमंत्री ग्रामीण सडक़ योजना बनाई। पीपीपी योजना से हाईवे पर कई काम हुए हैं।
सवाल: निश्चित रूप से परिवहन मंत्रालय में जो सफलताएं हैं, वह अपने आप में कई अध्याय हैं, किंतु ऐसे तीन कार्य, जिन्हें करने से विभाग में आप खुद को संतुष्ट पाते हैं और तीन ही जो शेष रह गए हैं?
जवाब: मेरे मंत्रालय के खाते में सात विश्व रिकॉर्ड हैं। मुझे 13 डिलिट मिले हैं। डॉक्टरेट से भी ऊपर के। काम तो बहुत हुए, कई पुरस्कार भी मिले और जनता ने समर्थन भी मिला, किन्तु मेरे जीवन में कोई अगर सबसे अच्छा काम हुआ है, तो वह यह है कि मैं बचपन से देखता था कि आदमी-आदमी को साइकिल रिक्शा से खींचने का काम करता है।
कुछ जगह तो मैंने देखा कि कंधे पर लेकर खींचा जाता था और कहीं देखा कि एक आदमी अपनी पीठ पर एक क्विंटल का बोरा लेकर चल रहा है। तब मुझे लगता था कि ये प्रथा बंद होनी चाहिए।
मैं 2014 में मंत्री बना मैकेनाइज्ड ई-रिक्शा का बिल लेकर आया। आज अंदाजन डेढ़ करोड़ लोगों को इसका फायदा हुआ। जो बोझा आदमी खींच रहा था उसमें बड़ा बदलाव आया। लोगों की जीवन शैली में अभूतपूर्व बदलाव आए।
यह मेरी जीवन की सबसे बड़ी और बेहद खास उपलब्धि है। मानवता के आधार पर इन डेढ़ करोड़ लोगों को नई स्वतंत्रता मिली है। जो मेरे संवेदनशील मन के लिए सबसे अच्छा समाधान देने वाला काम है। बाकी रोड टनल्स तो खूब बन रहे हैं। दिल्ली-मुंबई एक लाख करोड़ का रोड बन रहा है।
सवाल : इन 11 सालों में ऐसे कोई कार्य जो आपको लगता हो अब तक पूरे हो जाने चाहिए थे?
जवाब: अभी मैं हवा में उडऩे वाली बस ला रहा हूँ। 360 रोपवे रेलवे बना रहा है। अभी नागपुर में फ्लैश चार्र्जिंग बस ला रहा हूँ। यह भारत में आने वाली पहली टेक्नोलॉजी है। मैं इनोवेशन और फ्यूचरिस्टिक टेक्रोलॉजी में विश्वास रखता हूँ।
अनेक प्रयोग करते रहता हूँ और एक प्रयोग करने के बाद अपग्रेड करने के लिए फिर एक और प्रयोग करता हू। चरैवेति चरैवेति करके हमें चलते रहना चाहिए। इंसान कभी संतुष्ट नहीं होता, मलाल कभी खत्म नहीं होते, पहले हम साइकिल से चलते थे और खुश थे, फिर स्कूटर मिला, उसके बाद कार, मर्सिडीज, हवाई जहाज और अब पर्सनल हेलिकॉप्टर।
कहने का आशय यह है कि आकांक्षा महत्वाकांक्षा कभी खत्म नहीं होती। हमें उसका समाधान भी नहीं ढूँढना चाहिए । हमेशा आगे चलते रहना चाहिए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से मिली प्रेरणा के अनुरूप लोगों के हित के लिए एक सस्टेनेबल डेवलपमेंट के लिए मुझे एक भूमिका मिली है और मुझे कार्य करते रहना चाहिए।
सवाल: यह सडक़ों का जाल, टनल, सुरंग, इनको लेकर पर्यावरण की चिंता खास कर हिमालय क्षेत्र में विशेष चिंता बढ़ गई है?
जवाब: पहाड़ी क्षेत्रों में इन नए डेवलपमेंट्स की वजह से पर्यावरण को नुकसान नहीं हुआ है। उल्टा पर्यावरण सुरक्षित हुआ है। इलेक्ट्रिक, एथनॉल, मिथेनॉल, बायोडीजल, एलएनजी, सिथेनॉल पर चलाने वाली गाड़ी भी हम लेकर आए।
साढ़े चार करोड़ पेड़ लगाए। सौ साल पुराने अस्सी हज़ार पेड़ ट्रांसप्लांट किए। यह सभी काम हम पर्यावरण की रक्षा के लिए कर रहे हैं। अभी हम लोग एक नया कॉन्सेप्ट लेकर आए है ट्री बैंक। जिससे फारेस्ट निर्माण होगा। यह सब पर्यावरण की रक्षा के लिए काम हो रहा है।
सवाल: समग्रता में 11 सालों में जो केंद्र सरकार का कार्य रहा उसे आप कैसे आंकते हैं?
जवाब: 60 सालों में कांग्रेस नहीं कर सकी वो 11 साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने कर दिखाया है। यह हमारी सरकार की बहुत बड़ी उपलब्धि है।
सवाल: देश में एक परसेप्शन बन रहा है कि केंद्र सरकार पीएमओ तक सीमित हो गई है?
जवाब: स्वाभाविक रूप से देश का नेतृत्व देश के प्रधानमंत्री कर रहे हैं तो दिशा निर्देश भी उन्हीं के होने ही चाहिए।
सवाल : ऑपरेशन सिंदूर के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के बयान से क्या भारत सरकार थोड़ी असहज हुई ?
जवाब: मैं इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहता। कारण यह मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं है। इस पर टिप्पणी करने का अधिकार पीएमओ या विदेश मंत्रालय को है।
सवाल: आपको एक अध्ययनशील नेता माना जाता है। चलते चलते उसी से जुड़ा एक सवाल... राजनीति साहित्य से दूर होगी तो संवेदना शून्य होगी अटल जी ने कहा था। क्या आज यही परिदृश्य है ?
जवाब: हां, अटल जी ने यह कहा था। कारण वह खुद एक कवि और राजनेता थे। इसलिए यह समझ पाए कि बिना साहित्य के राजनीति संवेदना शून्य है। मेरा भी यही मानना है कि राजनीति और साहित्य के बीच गहरा संबंध है। राजनीति को साहित्य से प्रेरणा लेनी चाहिए। राजनेता प्रैक्टिकल हो गए हैं। वह साहित्य पडऩा तो दूर उसे पलट तक नहीं रहे हैं।
इसलिए उनमें संवेदना पनप ही नहीं पा रही है, जबकि आप हमारे पूर्व के राजनेताओं को देखेंगे तो अधिकांश साहित्य से गहरी रुचि रखने वाले ही निकलेंगे। वह कविताएं कहने के साथ किताबें भी लिखते थे। अखबार भी उन्होंने निकाले हैं। यह परंपरा बनी रहनी चाहिए।