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आमेठ किले में एक रात रहकर इंसान की भाषा सीख लेते हैं बेजुबान तोते

विज्ञान को चौंका देने वाला सच

आमेठ किले में एक रात रहकर इंसान की भाषा सीख लेते हैं बेजुबान तोते
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कराहल। विज्ञान के युग में आज दुनिया भले ही चांद पर पहुंच गई हो लेकिन श्योपुर जिले के आदिवासी विकासखंड कराहल के आमेठ किले का सच आज भी आमजनों को विचार करने के लिए विवश कर देता है। स्थानीय ग्रामीणों सहित आमेठ किले की हकीकत देख चुके लोगों का ये दावा है कि आमेठ का खंडहर किला उन बेजुबान तोतों के लिए किसी पाठशाला से कम नहीं है। जो तोते मनुष्यों की तरह हिन्दी बोलना तो दूर की बात है ठीक से चहक भी नहीं पाते हैं उन्हीं तोतों को यदि इस किले में एक रात के लिए छोड़ दिया जाए तो वह इंसानों की भाषा बोलने लगते हैं। आमेठ गांव के लोग बताते हैं कि यहां स्थित किले में यदि किसी अच्छी नस्ल के तोते को रात भर के लिए छोड़ दिया जाए तो वह अगले दिन से बेबाक हिन्दी बोलने लगता है। यही इस किले का चमत्कार माना जाता है।

आमेठ किले को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करेगा पुरातत्व विभाग

घनघोर जंगल में खण्डहर के रूप में बचे आमेठ के किले के बारे में कई किवदंतियां प्रचलित हैं। चारों ओर फैली प्राकृतिक सुंदरता को देखते हुए मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग ने इस खण्डहर किले को पर्यटन स्थल के रूप में विसकित करने की कार्ययोजना योजना बनाई है। आमेठ किले की तलहटी में कई स्थान ऐसे हैं जहां प्राकृतिक रूप से जल स्त्रोतों से पानी अनवरत बहता रहता है इसलिए यहां पर भीषण गर्मी के समय भी पानी की कभी कोई कमी नहीं रहती है।

अपने तोतों को बोलना सिखाने के लिए किले में छोड़ते हैं लोग

अपने पालतू तोतों को इंसानी भाषा सिखाने के लिए लोग उन्हें पिंजरों सहित आमेठ के किले में छोड़ देते हैं। ऐसी मान्यता है कि किले में मौजूद तोतों के साथ रहते हुए पालतू तोते भी इंसानों की भाषा बोलने लगते हैं।

भोपाल, दिल्ली, राजस्थान सहित उत्तरप्रदेश तक है डिमांड

आमेठ में मिलने वाले तोतों की स्थानीय स्तर पर ही नहीं अपितु अन्य राज्यों तक डिमांड है। स्थानीय लोगों के अनुसार आमेठ किले से तोतों को शिवपुरी, दतिया, मुरैना, गुना, ग्वालियर, भोपाल, दिल्ली, राजस्थान के बारां, जयपुर, माधौपुर, कोटा, उत्तर प्रदेश के झांसी, ललितपुर, प्रयागराज सहित अन्य प्रांतों में भी ले जाया जाता है।

ऐसे की जा सकती है बोलने वाले तोते की पहचान

इंसानी भाषा बोलने वाले तोते आम तोतों के मुकाबले बड़े सिर वाले होते हैं। उनके पंखों के बीच लाल रंग के निशान होते हैं। यही बोलने वाले तोतों की मुख्य पहचान हैं। बोलने वाले तोतों की कीमत दो हजार से पांच हजार रुपए के लगभग होती है।

इनका कहना है

हमारे किले को यह वरदान है कि कोई भी व्यक्ति एक रात के लिए अपने तोते को किले में छोड़ देता है तो वह तोता इंसानों की तरह बोलने लगता है।

युवराज यादव, ग्रामीण

Updated : 9 Jun 2023 8:29 PM GMT
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City Desk

Web Journalist www.swadeshnews.in


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