डिजिटल लेन-देन के बढ़ते चलन के बीच पाकिस्तान में नोटों की जबरदस्त छपाई, ये पड़ेगा प्रभाव
डॉ. प्रभात ओझा
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ई-कॉमर्स और डिजिटल लेन-देन के बढ़ते चलन के बीच पाकिस्तान में नोटों की छपाई का बेतहाशा बढ़ना वहां के आर्थिक जगत में चिंता का कारण है। पूरी दुनिया को पता है कि नोट छापने के तय मानकों के उल्लंघन का क्या मतलब होता है। मानकों के पालन के साथ भी नोट औसत से अधिक छपें तो कम से कम देश में मुद्रा स्फीति और इसके कारण महंगाई में तेजी से वृद्धि होती ही है।
पाकिस्तान सरकार और वहां की सरकारी एजेंसियां भले नोटों की छपाई के मामले में चुप हों, पर कुछ सरकारी संस्थाओं के आंकड़े इस असंतुलन की पुष्टि कर रहे हैं। और तो और विदेशी संवाद एजेंसियां, विशेषकर बीबीसी ने इस ओर दुनिया का ध्यान आकृष्ट किया है। पाकिस्तान में नोट छापने और प्राइज बांड के लिए पेपर बनाने वाली 'सिक्योरिटी पेपर्स लिमिटेड' के वित्तीय नतीजे इस बात पर मुहर लगाते हैं कि वहां नोटों की छपाई अचानक बढ़ी है। पाकिस्तान में वित्तीय वर्ष 01 जुलाई से प्रारम्भ होता है। इस साल 30 जून को समाप्त वित्तीय वर्ष के आंकड़ों के मुताबिक वहां पिछले आठ वर्षों में नोटों के चलन में इस वित्तीय वर्ष में सबसे अधिक बढ़ोतरी हुई है। अकेले इस एक वर्ष करेंसी नोटों की संख्या में 1.1 ट्रिलियन तक बढ़ी।
पाकिस्तान का आर्थिक जगत मानता है कि नोटों की संख्या बढ़ने का मतलब पुराने नोटों को नए नोटों में बदलना हो सकता है। मुमकिन है कि इसके अलावा बड़ी संख्या में नये नोट भी छापे गए हैं। फिर भी बाजार की जरूरतों के हिसाब से संतुलन के लिए कुछ अधिक नोट तो छापे जा सकते हैं। इसमें असामान्य बढ़ोतरी का मतलब बहुत अधिक नोट छापना ही है। पाकिस्तान में ऐसा ही हुआ है। पाकिस्तान में एकेडी सिक्योरिटीज के हेड ऑफ रिसर्च फरीद आलम भी मानते हैं कि पिछले आठ साल में पिछले वर्ष की मुद्रा छापने का औसत सबसे अधिक है। पिछली सरकार के मुकाबले यह भी देखने में आया है कि नई सरकार ने पहले के मुकाबले दोगुना अधिक नोट छापे हैं।
बहरहाल, देखने वाली बात यह है कि पाकिस्तान में नोट छापने का असंतुलन ऐसे समय देखा जा रहा है, जब वहां की सरकार आईएमएफ की शर्तों के मुताबिक, स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान से उधार नहीं ले पा रही है। शर्तें बाध्य करती हैं कि पाकिस्तान सरकार अपना बजट घाटा पूरा करने के लिए कमर्शियल बैंकों से ओपन मार्केट ऑपरेशन के जरिए धन हासिल करे। करेंसी नोटों के मामले में पाकिस्तान में यह व्यवस्था है कि सरकार अपने केंद्रीय बैंक (स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान) से कर्ज लेती है, तब यह केंद्रीय बैंक नई करेंसी छापता है।
अब प्रश्न यह है कि आईएमएफ की शर्तों के कारण सरकार केंद्रीय बैंक से ऋण नहीं ले रही है तो चल कैसे रहा है। जवाब में कह सकते हैं कि पाकिस्तान में सबकुछ मुमकिन है। वहां कुछ भी पारदर्शी नहीं हुआ करता है। वहां के अर्थशास्त्री डॉ. कैसर बंगाली याद दिलाते हैं कि बजट के समय उन्होंने स्टेट बैंक से कर्ज लेना बंद होने के हालात में भी करेंसी नोट बढ़ने पर चिंता जताई थी। तब सरकार ने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया था।
पाकिस्तान वैसे भी पिछले 5-6 साल से मुद्रा स्फिति से जूझ रहा है। करीब 5 साल पहले जब सरकार ने बैंकों से लेनदेन पर चार्जेज बढ़ा दिए तो लोगों ने अधिक नकदी घर में ही रखना शुरू कर दिया। अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से नए समझौते के मुताबिक केंद्रीय बैंक से सरकार ऋण नहीं ले रही है। फिर आम लोगों के बैंकिंग कार्य पर भी कई तरह के टैक्स बढ़ाए गए हैं। ऐसा सरकारी राजस्व में वृद्धि के लिए किया गया, पर लोगों ने घर में ही नकदी और बढ़ा ली है। सरकार की मुसीबत यह है कि कोरोना काल में कई जरूरी खर्च करने ही हैं। ऐसे में भी करेंसी छपाई में बढ़ोतरी हुई होगी।
जो भी हो, अधिक करेंसी का परिणाम यह है कि बाजार में भी नकदी अधिक आई। लोग बैंक में जमा नहीं कर नकदी रख रहे हैं तो जरूरत के मुताबिक खर्च भी कर रहे होंगे। अधिक खर्च से महंगाई की आशंका रहती है। आर्थिकी का सामान्य नियम है कि कम उत्पादन के बदले बाजार में अधिक नकदी महंगाई बढ़ने का कारण बनती है। फिर अधिक नकदी से कालाबाजारी को भी बढ़ावा मिलता है। प्रचलन में बहुत अधिक नकदी हो तो काला धन जमा करने वाले गोरखधंधे में लग जाते हैं।
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